आज सभी देश अपनी शक्ति को बढ़ाने और अन्य देशों के मन में अपनी दहशत बनाए रखने के लिए एटम बम (Atom bomb) बना रहे हैं। इसका नाम सुनते ही हम सभी आतंक के साए में आ जाते हैं और आशा करते हैं कि हमें कभी इसका सामना न करना पड़े। लेकिन जौनपुर के एटम बम को लोग खुशी-खुशी अपने दैनिक जीवन का हिस्सा बनाना चाहते हैं। वास्तव में यहां का एटम बम एक प्रकार की मिठाई है जो आकृति स्वरूप रसगुल्ले के समान दिखती है किंतु रसगुल्ला नहीं है। अपने उत्कृष्ट स्वाद के कारण यह यहां की विशेषता बना हुआ है।
यह जौनपुर जिला मुख्यालय से सिर्फ 50 किलोमीटर दूर स्थित सुजानगंज और इसके आस-पास के क्षेत्रों में बनाया जाता है तथा सुजानगंज की विशेषता है। अपने नाम और स्वाद के कारण यह मिठाई इस क्षेत्र में आकर्षण का केंद्र है। यहां की अधिकांश स्थानीय दुकानों में एटम बम का नाम बहुत सामान्य है और बड़ी मात्रा में इसका क्रय विक्रय किया जाता है।
अपनी अनोखी सामग्री के कारण यह रसगुल्लों से भिन्न हैं। बड़े, हल्के पीले रंग के इन एटम बमों को छेना और मैदा से बनाया जाता है। जबकि रसगुल्लों को सूजी, आटे और छेना के साथ बनाया जाता है। फिर इसे चीनी की चाशनी में डाल दिया जाता है। शुद्ध गाय के छेने से बनने वाले एटम बम का वजन लगभग 170 ग्राम होता है और अच्छे-अच्छे लोग इसे एक बार में नहीं खा सकते हैं। इनके गोले, आकृति में लगभग 3 इंच के होते हैं, जो काफी स्पंजी (Spongy), रसदार और स्वादिष्ट होते हैं।
एटम बम की तुलना केवल राजभोग से की जा सकती है क्योंकि दोनों में कुछ समानताएँ हैं परन्तु फिर भी इसमें और राज-भोग में बहुत अंतर है। "एटम बम" शब्द की उत्पत्ति भी सोचने का विषय है कि आख़िरकार यह शब्द आया कहाँ से और इस मिठाई को एटम बम क्यों कहा जाता है? इस का पहला कारण इस मिठाई का आकार है तथा दूसरा कारण आण्विक बम है। यह मिठाई सुजानगंज में कई वर्षों से बनाई जा रही है। इस लिये यह अनुमान लगाया जा सकता है कि इसका ताल्लुक परमाणु बम के प्रथम धमाके से है। यह मानना गलत नहीं होगा कि जिस प्रकार बिकीनी आइलैंड (Bikini Island) पर हुये परमाणु धमाके के कारण, टू पीस बिकीनी (Two Peace Bikini) को नाम मिला, वैसे ही विश्व युद्ध में एटम बम के प्रयोग के बाद ही इसका नाम एटम बम पड़ा। कह सकते हैं कि इसे खाने से मुँह में स्वाद का एक धमाका होता है इसलिए यह एक प्रकार का खाने योग्य बम ही हुआ।
एटम बम कहाँ से आया ये तो स्पष्ट है, तथा ये भी स्पष्ट है कि यह रसगुल्ले से काफी भिन्न है, किन्तु रसगुल्लों की उत्पत्ति के बारे में, कई वाद-विवाद हुये जिसमें उड़ीसा और बंगाल दोनों दावा कर रहे थे कि रसगुल्ले की उत्पत्ति उनके राज्य से हुई थी। 2015 में, ओडिशा सरकार द्वारा गठित एक समिति ने दावा किया कि रसगुल्लों की उत्पत्ति ओडिशा में हुई थी, जहां इसे जगन्नाथ पुरी मंदिर में चढ़ाया जाता है। 2016 में, पश्चिम बंगाल सरकार ने ‘बांगलार रोसोगोला’ (बंगाली रसगुल्ला) के लिए एक भौगोलिक संकेत टैग (G.I. Tag) के लिए आवेदन किया, जिसमें स्पष्ट किया गया कि बंगाल और ओडिशा के संस्करण रंग, बनावट, स्वाद, रस सामग्री और निर्माण की विधि में अलग-अलग हैं। पश्चिम बंगाल के रसगुल्ले को जीआई टैग दिया गया है।
एटम बम के साथ ऐसा कोई विवाद नहीं जुड़ा है। यह कहना बिल्कुल भी गलत नहीं होगा कि अपने स्वाद की लोकप्रियता के कारण, अगर इसको जौनपुर व अन्य क्षेत्रों में भी फैलाया जाये तथा इसका क्रय-विक्रय अन्य स्थानों पर भी किया जाये तो यह मिठाई बड़ी संख्या में रोज़गार प्रदान करने में सक्षम है। इससे इस मिठाई का विस्तार भी होगा और अधिकांश लोग इस बेमिसाल ज़ायके का लुत्फ भी उठा सकेंगे । एटम बम के विषय में और अधिक जानकारी के लिए आप हमारी वेबसाइट के इस लिंक पर भी जाकर पढ़ सकते हैं: https://jaunpur.prarang.in/posts/695/postname
संदर्भ:
1.https://www.hamarajaunpur.com/2011/02/blog-post_28.html
2.https://www.hamarajaunpur.com/2014/08/blog-post_54.html
3.http://wikimapia.org/1479089/Sujanganj
4.https://en.wikipedia.org/wiki/Rasgulla
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