वर्तमान समय में भारत में बढ़ता जल संकट आम सी बात हो गयी है। कई शहरों में पीने योग्य पानी के लिये भी लोगों को भारी कीमत चुकानी पड़ रही है। इसका मुख्य कारण जल का अत्यधिक दोहन है जो हम मानवों द्वारा किया जा रहा है।
रेन वाटर हार्वेस्टिंग (Rain Water Harvesting) या वर्षा जल संचयन इस समस्या से निजात पाने का एक प्रमुख समाधान है। किंतु इसकी अनदेखी तथा इसके प्रति कम जागरूकता के कारण इससे होने वाले लाभ से मनुष्य आज भी वंचित है। इसके सही उपयोग के लिये इसे समझना बहुत आवश्यक है तो आईये जानते हैं कि आखिर वर्षा जल संचयन क्या है?
वर्षा जल संचयन वर्षा के जल को संग्रहित करने की एक विधि है जिसमें वर्षा के जल को एकत्रित करके उसका उपयोग किया जाता है। किसी क्षेत्र में वर्षा के रूप में प्राप्त होने वाले जल की कुल मात्रा को उस क्षेत्र की वर्षाजल निधि कहा जाता है। इसमें से जिस जल मात्रा को प्रभावी ढंग से संचित किया जाता है, उसे जल संचयन क्षमता कहते हैं। यह वह माध्यम है जिसके द्वारा भविष्य में होने वाले जल संकट से बचा जा सकता है।
वर्षा जल संचयन निम्न कारकों पर निर्भर करता है:
• वर्षा की मात्रा
• वार्षिक वर्षा के दिनों की संख्या
• वर्षा की मात्रा का संग्रहण
भारत लगभग पूरी तरह से वार्षिक मानसून (Monsoon) पर निर्भर है और इसलिए छतों पर जल संचयन के लिये केंद्रीय भूजल प्राधिकरण ने भारत में बुनियादी डिज़ाइन (Design) और दिशानिर्देश निर्धारित किए हैं। लेकिन फिर भी इस योजना को सही रूप नहीं मिल पाया है। नीति (NITI) आयोग की एक रिपोर्ट के अनुसार देश के 21 शहरों में 2020 तक भूजल की कुल कमी दिखाई देने लगेगी। और इसलिए बैंगलोर, तमिलनाडु, और दिल्ली जैसे शहरों में जल संचयन के विकास हेतु प्रयास किये जा रहे हैं। बैंगलोर वाटर सप्लाई एंड सीवरेज बोर्ड (Bangalore Water Supply and Severage Board - BWSSB) ने 30x40 वर्ग फुट और उससे ऊपर बनी इमारतों और 40x60 वर्ग फुट पर बनी पुरानी इमारतों में वर्षा जल संचयन को स्थापित करना अनिवार्य कर दिया है। तमिलनाडु का चेन्नई शहर वर्षा जल संचयन में अग्रणी है और यहां वर्षा जल संचयन संरचनाओं के लिए नए डिज़ाइनों को तमिलनाडु संयुक्त विकास और भवन नियमावली 2019 में शामिल किया गया है तथा इसे शहर में अनिवार्य कर दिया गया है। ग्रामीण क्षेत्रों में छतों पर वर्षा जल संचयन सबसे आम समाधानों में से एक है क्योंकि यह एक बुनियादी और सस्ती पद्धति है जिसके कार्यान्वयन के लिए न्यूनतम विशेषज्ञता की आवश्यकता होती है।
जौनपुर में भी लगातार गिर रहा जलस्तर चिंता का विषय बन गया है। जिले की औसत वार्षिक वर्षा 987 मिमी है तथा लगभग 88% वार्षिक वर्षा दक्षिण-पश्चिम मानसून पर निर्भर है। भूजल का विकास मुख्य रूप से खोदे गए कुओं, हैंड पंप (Hand Pump), और ट्यूबवेलों (Tubewells) के माध्यम से होता है। यहां सिंचाई विकास के लिए शुद्ध भूजल उपलब्धता को 241.89 एमसीएम (मिलियन क्यूबिक मीटर / Million Cubic Metre - MCM ) आंका गया है और भूजल विकास का चरण 77.72% है। यहां के भूजल स्तर में 15 से 20 सेंटीमीटर की दर से कमी आयी है। जिले में तकरीबन 35,000 ट्यूबवेल हैं और एक ट्यूबवेल से एक घंटे में औसतन 10,000 लीटर पानी स्रावित होता है। इस तरह लाखों लीटर जलदोहन महज ट्यूबवेल से किया जा रहा है। इसके अलावा तकरीबन 1,40,000 हैंडपंप व अन्य स्त्रोतों से भी जल का दोहन किया जा रहा है। जल स्तर गिरने की वजह से महाराजगंज, बक्शा, करंजाकला, धर्मापुर, मुफ्तीगंज, केराकत, डोभी, बरसठी व सिकरारा को डार्क ज़ोन (Dark Zone) घोषित किया जा चुका है।
जल स्तर में सुधार के लिये शाहगंज, रामनगर, मुगराबादशाहपुर और मछलीशहर ब्लॉक (Block) में उचित प्रबंधन और नियंत्रण के साथ भूजल विकास के प्रयास किये जा रहे हैं। केंद्रीय भूजल बोर्ड छत की शीर्ष वर्षा जल संचयन योजनाओं के कार्यान्वयन के लिए मुफ्त तकनीकी मार्गदर्शन प्रदान कर रहा है। इस समस्या से निजात पाने हेतु वर्षा जल संचयन पर विशेष ज़ोर दिया जा रहा है।
जौनपुर में इसके विकास के लिये कुछ महत्वपूर्ण कदम उठाये गये हैं जो निम्नलिखित हैं:
• बिना रेन वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम के किसी भी घर का नक्शा पास (Pass) नहीं किया जाएगा।
• गांवों के सूखे तालाबों को नहरों से जोड़ने का प्रयास किया जा रहा है।
• सरकारी विभागों व कार्यालयों में रेन वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम लगवाने की मुहिम भी चलाई जा रही है।
• बच्चों को जल संकट के प्रति जागरूक किया जा रहा है।
वर्षा जल संचयन की इस पारंपरिक विधि को अपनाकर भविष्य में अवश्य ही इस समस्या से उभरा जा सकता है।
संदर्भ:
1. https://bit.ly/2XB5Wp0
2. http://cgwb.gov.in/District_Profile/UP/Jaunpur.pdf
3. https://bit.ly/2X5d9sY
4. http://www.rainwaterharvesting.org/Urban/ThePotential.htm
5. https://bit.ly/2ZT6Ivg
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