एक प्राचीन वैदिक पाठ के अनुसार हाथीदांत नक्काशी एक शानदार शिल्प है। महाकाव्य जैसे कि रामायण और महाभारत में हाथी दांत, हाथीदांत व्यापारी और साथ ही पूर्वी भारत से आते हाथी दांत से जड़े हथियारों का वर्णन मिलता है। 7 वीं शताब्दी के प्रसिद्ध लेखक ‘बाना’ ने अपने विभिन्न लेखों में हाथीदांत से बनी वस्तुओं जैसे तोरण, ताबूत और झुमके आदि का वर्णन किया है। जैन साहित्य हाथी दांत को कला का एक उच्च रूप मानता है और डेक्कन (Deccan) में हाथीदांत बेचने वाले तराई क्षेत्र के व्यापारियों का भी वर्णन करता है।
कई ग्रंथो में शाही हाथीदांत सिंहासन, मानव आकृतियों, नक्काशीदार हाथी दांत की पालकी, हाथी दांत से बने महंगे फर्नीचर (Furniture) व आभूषणों का विवरण मिलता है। भारत ने प्राचीन काल में यूरोप के साथ हाथीदांत का कारोबार किया और इतिहास बताता है कि 10 वीं शताब्दी ईसा पूर्व में, राजा सोलोमन ने भारतीय हाथीदांत प्राप्त किया और 6 ठी शताब्दी ई.पू. में भारतीय हाथीदांत का उपयोग डारियस (Darius) द्वारा निर्मित सुसा के शाही महल को सजाने में किया गया था। प्रारंभिक ईसाई युग में, भारतीय और अफ्रीकी हाथीदांत का उपयोग रोम में मूर्तियों और संगीत वाद्ययंत्र बनाने के लिए किया जाता था। भारतीय हाथी दांत के लिए अरब और चीन के साथ हमारा व्यापार 13 वीं शताब्दी तक जारी रहा।
हाथीदांत की नक्काशी की प्राचीन कला पर अब प्रतिबंध लगा दिया गया है जिससे ऊँट की हड्डी की नक्काशी की कला व्यापार में बढ़ोत्री हुई है। हड्डी की नक्काशी भी एक पुरानी कला है। इसमें जानवरों की हड्डियों को तराशने की प्रक्रिया शामिल है। हड्डी की नक्काशी से एक हड्डी का अलंकरण होता है और इस तरह एक आकृति का निर्माण होता है। हड्डी का उपयोग प्राचीन काल से ही सार्थक लेखों के साथ-साथ सजावटी वस्तु बनाने के लिए भी किया जाता रहा है। ऊँट व विभिन्न जानवरों की हड्डियों को प्राचीन काल से भारत में चांदी में गढ़े गहनों और कंघी बनाने के लिय उपयोग किया जाता रहा है।
हाथी दांत की बिक्री पर प्रतिबंध के बाद, हड्डी-नक्काशी से बनी वस्तु और आभूषण को हाथीदांत के सस्ते विकल्प के रूप में एक प्रोत्साहन मिला है। नक्काशीदार बक्से, कंगन, शिल्प आदि जैसी विभिन्न वस्तुओं को हड्डियों से बनाया जाता है और वे विदेशी दुकानदारों के बीच काफी लोकप्रिय थे।
आम आदमी के लिए हाथी दांत और हड्डी से बनने वाली वस्तुओं में अंतर बताना मुश्किल है लेकिन एक प्रशिक्षित नज़र अंतर को जानती है। हड्डी में हमेशा सतह पर सूक्ष्म छिद्र होते हैं और ये छिद्र काले या भूरे रंग के दिखाई देते हैं। छिद्र उन रक्त वाहिकाओं के परिणाम हैं जो जीवों के ज़िन्दा होते हुए उनकी हड्डियों से होकर गुज़रती हैं। ये नग्न आंखों को दिखाई नहीं दे सकते हैं। इसके लिए मैग्नीफाइंग ग्लास (Magnifying Glass) का उपयोग करना होता है। हाथी दांत में आप देखेंगे कि छिद्रों के बजाय, उनपर रेखाएं दिखाई देती हैं।
ऊंट की हड्डी की कलात्मकता भारत के लिए सबसे जटिल कला रूपों में से एक है। कई प्रकार की चुनौतियों के बावजूद उत्तर प्रदेश के बाराबंकी क्षेत्र में एक 70 वर्षीय व्यक्ति ने अभी भी हड्डियों की नक्काशी की कला को जीवित रखा है। अबरार अहमद अपने कच्चे मकान में भारत के हस्तशिल्प के इतिहास को संभाल के रखते हैं। वे कहते हैं कि अधिकांश रचना, अवधी वास्तुकला से प्रेरित होती हैं, जिसमें जाली और बेल-पत्री का काम शामिल है।
ऐसे ही है एक पुरस्कार विजेता शिल्पकार ज़ाकिर हुसैन जिनके मेंटरशिप प्रोग्राम (Mentorship Program) में - ऐसे युवा शामिल हैं जो उनके साथ कला सीखते हैं तथा साथ ही मासिक वेतन भी पाते हैं। इस योजना ने कला रूप को संरक्षित करने में अविश्वसनीय रूप से मदद की है। हनुमान चौक, जोधपुर के पास कार्यशाला में काम करते ये कारीगर हमारे देश में इन शिल्प रूपों को संरक्षित कर रहे हैं।
परन्तु आज भारतीय रेगिस्तानी ऊँट के साथ कुल 8 प्रजाति के ऊँट भी लुप्तप्राय श्रेणी में शामिल हो चुके हैं। इस कारण इस कला में फिर एक बार ध्यान रखते हुए कार्य करने की ज़रूरत है।
सन्दर्भ:
1. http://www.chitralakshana.com/ivory.html
2. https://www.indianmirror.com/culture/indian-specialties/Bonecarving.html
3. http://www.differencebetween.net/object/difference-between-ivory-and-bone/
4. http://bit.ly/2XsKSku
5. http://bit.ly/2WWgkmK
6. http://bit.ly/2x7ekOn
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