भारत में पांच जंतर मंतर हैं जो क्रमशः जयपुर, दिल्ली, मथुरा, उज्जैन और हमारे जौनपुर के समीप वाराणसी में स्थित हैं। खगोलीय दृष्टि से भारतीय इतिहास में इन जंतर मंतर का विशेष महत्व रह चुका है। इन्हें जयपुर के महाराजा जय सिंह द्वितीय द्वारा 18वीं शताब्दी में बनवाया गया था, जो मुख्यतः 1724 से 1735 के मध्य पूरे किए गए। जयपुर के जंतर मंतर में विश्व की सबसे बड़ी सौर घड़ी मौजूद है। इसके साथ ही यह सबसे परिष्कृत प्राचीन खगोलीय वेधशालाओं में से एक है। जंतर मंतर के विशाल वास्तुशिल्प, ऐतिहासिक और खगोलीय महत्व को देखते हुए, यूनेस्को (UNESCO) द्वारा 2010 में इसे विश्व धरोहर की सूची में शामिल किया गया।
लगभग 18,700 वर्ग मीटर के क्षेत्र में फैली यह वेधशाला (जयपुर) 1800 ईस्वी तक उपयोग में थी। इस वेधशाला में लगभग 20 यंत्र हैं, जो मुख्यतः पत्थरों और संगमरमर से बने हैं। इसके अतिरिक्त इनमें चूनालेप, ईंट और कांस्य का भी उपयोग किया गया है।
जयपुर के जंतर मंतर में लगे कुछ प्रमुख यंत्र इस प्रकार हैं:
1. उन्नतांश यंत्र
2. चक्र यंत्र
3. दिशा यंत्र
4. सम्राट यंत्र
5. रामयंत्र
6. जयप्रकाश यंत्र
7. राशि वलय यंत्र
8. दिगंश यंत्र
जंतर मंतर में लगे यंत्रों का उपयोग दिन में समय का पता लगाने, आकाशीय पिण्डों, नक्षत्रों और उनके स्थान तथा गति के आंकड़े एकत्रित करने के साथ-साथ ग्रहण के समय की भविष्यवाणी करने जैसे विभिन्न कार्यों के लिए किया गया। इन उपकरणों में सबसे प्रसिद्ध 27.4 मीटर ऊंचा सम्राट यंत्र है, जो जयपुर के स्थानीय समय से मात्र 2 सेकंड के अंतर के साथ सटीक समय बताता है। जंतर-मंतर मुख्यतः यंत्र-मंत्र का अपभ्रंशित रूप है, जिसका शाब्दिक अर्थ है “गणना यंत्र”। इन वेधशालाओं का मात्र खगोलीय ही नहीं वरन् विशेष धार्मिक महत्व भी है। महाराजा स्वयं एक खगोलविद् होने के साथ-साथ कट्टर हिन्दू धर्म के अनुयायी थे। इन्होंने हिन्दू धार्मिक ग्रन्थों में अंकित खगोलीय आंकड़ों के अनुरूप ही इन वेधशालाओं का निर्माण करवाया। वेदों में कहीं भी यंत्रों का उल्लेख नहीं किया गया है, सिवाय कुछ एक के। जयसिंह ने विद्वानों को वेधशालाओं के डिज़ाइन (Design), निर्माण और प्रौद्योगिकी और प्रचलित तकनीक का अध्ययन करने के लिए कई देशों में भेजा, जिसके बाद ये पांच जंतर मंतर बनवाए गए।
जौनपुर के निकट वाराणसी का जंतर मंतर, दशाश्वमेध घाट के निकट में स्थित है। इसके केन्द्र में चक्र यंत्र (वृत्ताकार यंत्र) को ऊर्ध्वाधर अवस्था में लगाया गया है। इसकी बाईं ओर लघु सम्राट (छोटी विषुवत सूर्य घड़ी) यंत्र तथा पीछे की ओर नारी वलय यंत्र (उत्तरी गोलार्ध सौर घड़ी) और इसकी दाहिनी पृष्ठभूमि पर बड़ा गोलाकार दिगंश यंत्र लगाया गया है। ये सभी यंत्र आज भी वाराणसी के जंतर मंतर के प्रमुख आकर्षण हैं। ऊपर दिया गया मुख्य चित्र वाराणसी के जंतर मंतर का प्राचीन चित्र है।
संदर्भ:
1. https://en.wikipedia.org/wiki/Jantar_Mantar
2. https://www.worldatlas.com/articles/where-is-the-jantar-mantar.html
3. http://www.kamit.jp/02_unesco/24_jantar/xben_3eng.htm
4. https://en.wikipedia.org/wiki/Jantar_Mantar,_Varanasi
5. https://bit.ly/2Y6Vz9o
6. http://www.varanasi.org.in/jantar-mantar-varanasi
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