डेनिम जींस का इतिहास एवं भारत से इसका सम्बन्ध

जौनपुर

 19-06-2019 11:02 AM
स्पर्शः रचना व कपड़े

आज फैशन के नाम पर रोज़ नए-नए डिज़ाइन (Design) के वस्‍त्र प्रचलन में आ रहे हैं, जिनकी लोकप्रियता की बात की जाए तो इसका कोई अंत नहीं। बहुत कम ऐसे वस्‍त्र हैं, जिनकी लोकप्रियता उनके निर्माण के बाद से लंबे समय तक बढ़ती ही गयी हो। जींस (Jeans) ऐसे ही वस्‍त्रों में से एक है। पश्चिमी जगत से प्रचलन में आयी जींस आज विश्‍व के अधिकांश हिस्‍सों में काफी लोकप्रिय है तथा लोगों (स्‍त्री-पुरूष सहित) के दैनिक जीवन का अभिन्‍न हिस्‍सा है।

वास्‍तव में जींस का निर्माण एक ऐसे वस्‍त्र को बनाने के उद्देश्‍य से किया गया, जो मज़बूत, टिकाऊ और लंबे समय तक चलने वाला हो। प्रारंभ में यह उत्तरी अमेरिका के पश्चिम में कारखानों के श्रमिकों, खनिकों, किसानों और पशुपालकों आदि द्वारा पहना जाने वाला मज़बूत वस्‍त्र थी। 1850 के दशक में अमेरिका में स्‍वर्ण की होड़ शीर्ष पर थी तथा सभी युवा एक बेहतर भविष्‍य की तलाश में पश्चिम की ओर रूख कर रहे थे। किंतु यहां जिस परिवेश में वे रह रहे थे, वहां उनके पारंपरिक वस्‍त्र ज़्यादा लंबे समय तक नहीं टिक पाते थे।

इस दौरान यहां आगमन हुआ एक व्‍यापारी ‘लीवाय स्ट्रॉस’ (Levi Strauss) का, जो मूलतः जर्मनी से थे। इन्‍होंने यहां अन्‍य वस्‍तुओं के साथ सूती वस्‍त्र बेचना प्रारंभ किया। इनके ग्राहकों में एक दर्जी जैकब डब्ल्यू. डेविस थे। यह टेंट (Tent), घोड़े के कंबल और वैगन कवर (Wagon cover) जैसे कार्यात्मक सामान बनाते थे। एक बार डेविस को एक ऐसी पैंट बनाने का आदेश दिया गया जो लंबे समय तक टिकाऊ हो और हर परिस्थिति का सामना कर सके। डेविस ने इस पैंट को डेनिम (Denim) से बनाया, जिसे इन्‍होंने लीवाय की कंपनी से खरीदा था। डेविस ने इस पैंट को मज़बूती प्रदान करने के लिए जेब जैसी जगहों पर तांबे का प्रयोग किया। आगे चलकर डेविस और लीवाय ने मिलकर जींस का एक बड़ा कारखाना खोला और बड़े पैमाने पर जींस का निर्माण प्रारंभ हुआ।

जीन्स का नाम इटली के जेनोआ शहर के नाम पर रखा गया था, एक ऐसी जगह जहां कपास कॉरडरॉय (Corduroy), जिसे जीन कहा जाता है, का निर्माण किया गया था। डेनिम वास्‍तव में एक इतालवी वस्‍त्र था, जिसे सरजी डे निम्स (serge de Nimes) के नाम से जाना जाता था। 1853 में लीवय ही इसे अमेरिका लाए थे। डेनिम एक सूती ट्वील (Twill- खेस की बुनाई) वस्‍त्र था, जिसे दो या दो से अधिक ताना धागों से तैयार किया जाता था। इन ताना धागों को नील से रंगा जाता था तथा बाना धागों को सफेद रंग से। जिससे यह एक ओर से नीला और एक ओर से सफेद दिखता था। डेनिम को इसके टिकाऊपन और खूबसूरत रंग के कारण लीवाय स्ट्रॉस और जैकब डब्ल्यू डेविस द्वारा जींस बनाने के लिए चुना गया।

नील को सूती वस्‍त्रों को रंगने के लिए भारत से विश्‍व के विभिन्‍न हिस्‍सों (मिस्र, यूनान, रोम, चीन, जापान, मेसोपोटामिया, मिस्र, ब्रिटेन, मेसोअमेरिका, पेरू, ईरान और अफ्रीका आदि) में आयात किया जाता था। यह एक कार्बनिक (Carbonic) रंगाई थी, जिसकी खेती भारत में की जाती थी। भारत से आयात करने के कारण इसे पश्चिमी देशों में इंडिगो (Indigo) के नाम से जाना जाता था। मध्‍य युग में यह यूरोप में एक दुर्लभ साधनों में से एक थी। औपनिवेशिक काल के दौरान भारत में बड़ी मात्रा में नील का उत्‍पादन किया गया, जो अधिकांशतः अंग्रजों के नियंत्रण में हुआ। हमारे जौनपुर शहर में भी एक नील का खेत था, जो अंग्रेजों के नियंत्रण में था। यहां तैयार नील अंधिकांशतः पश्चिमी देशों में निर्यात किया जाता था।

नीली जींस तैयार करने में इसका विशेष योगदान रहा। लीवाय स्ट्रॉस कंपनी एक सदी से अधिक के लिए जींस बाज़ार पर हावी हुई और नीली जींस का पर्याय बन गई। अब यह सिर्फ श्रमिकों के लिए ही नहीं वरन् नई-नई डिज़ाइन की जींस युवाओं के लिए भी तैयार कर रही थी। इस जींस के टिकाऊपन के कारण पोलो (Polo) के खिलाड़ी भी अभ्‍यास के दौरान नीली जींस पहनते थे तथा मैच के दौरान सफेद जींस। 1950 के दशक में जेम्स डीन ने अपनी एक फिल्‍म रिबेल विदाउट ए कॉज़ (Rebel Without a Cause) में नीली जींस पहनी थी, जिसके बाद जींस युवाओं के बीच काफी लोकप्रिय हो गयी। 1960 के दशक के दौरान जींस पहनना अधिक स्वीकार्य हो गया था। 1970 के दशक तक संयुक्त राज्य अमेरिका में यह औपचारिक वेशभूषा बन गयी। इसके निर्माण के लगभग 150 से भी ज्‍यादा समय गुज़रने के बाद आज भी डेनिम जींस विश्‍व स्‍तर पर काफी लोकप्रिय है। भारत में भी इसका बड़ी मात्रा में उत्‍पादन किया जा रहा है।

संदर्भ:-
1.http://www.historyofjeans.com/
2.https://www.racked.com/2015/2/27/8116465/the-complete-history-of-blue-jeans-from-miners-to-marilyn-monroe
3.https://en.wikipedia.org/wiki/Jeans
4.https://timesofindia.indiatimes.com/blogs/ruminations/jeans-and-india-denim-denim-ka-bandhan/



RECENT POST

  • ज्ञान, साहस, न्याय और संयम जैसे गुणों पर ज़ोर देता है ग्रीक दर्शन - ‘स्टोइसिज़्म’
    विचार 2 दर्शनशास्त्र, गणित व दवा

     26-12-2024 09:28 AM


  • इस क्रिसमस पर, भारत में सेंट थॉमस द्वारा ईसाई धर्म के प्रसार पर नज़र डालें
    विचार I - धर्म (मिथक / अनुष्ठान)

     25-12-2024 09:23 AM


  • जौनपुर के निकट स्थित काशी विश्वनाथ मंदिर के गहरे अध्यात्मिक महत्व को जानिए
    विचार I - धर्म (मिथक / अनुष्ठान)

     24-12-2024 09:21 AM


  • आइए समझें, भवन निर्माण में, मृदा परिक्षण की महत्वपूर्ण भूमिका को
    भूमि प्रकार (खेतिहर व बंजर)

     23-12-2024 09:26 AM


  • आइए देखें, क्रिकेट से संबंधित कुछ मज़ेदार क्षणों को
    य़ातायात और व्यायाम व व्यायामशाला

     22-12-2024 09:19 AM


  • जौनपुर के पास स्थित सोनभद्र जीवाश्म पार्क, पृथ्वी के प्रागैतिहासिक जीवन काल का है गवाह
    शुरुआतः 4 अरब ईसापूर्व से 0.2 करोड ईसापूर्व तक

     21-12-2024 09:22 AM


  • आइए समझते हैं, जौनपुर के फूलों के बाज़ारों में बिखरी खुशबू और अद्भुत सुंदरता को
    गंध- ख़ुशबू व इत्र

     20-12-2024 09:15 AM


  • जानिए, भारत के रक्षा औद्योगिक क्षेत्र में, कौन सी कंपनियां, गढ़ रही हैं नए कीर्तिमान
    हथियार व खिलौने

     19-12-2024 09:20 AM


  • आइए समझते हैं, जौनपुर के खेतों की सिंचाई में, नहरों की महत्वपूर्ण भूमिका
    नदियाँ

     18-12-2024 09:21 AM


  • विभिन्न प्रकार के पक्षी प्रजातियों का घर है हमारा शहर जौनपुर
    पंछीयाँ

     17-12-2024 09:23 AM






  • © - 2017 All content on this website, such as text, graphics, logos, button icons, software, images and its selection, arrangement, presentation & overall design, is the property of Indoeuropeans India Pvt. Ltd. and protected by international copyright laws.

    login_user_id