भारतीय उपमहाद्वीप में प्राचीन काल से ही चित्रकला की परंपरा चली आ रही है। मानव द्वारा पाषाण काल में ही गुफा चित्रण करना शुरु कर दिया गया था। इस तथ्य की पुष्टि हम अजंता और एलोरा की उत्कृष्ट भित्ति चित्र, बौद्ध ताड़ के पत्ते की पांडुलिपियां, मुगल और कांगड़ा लघु भारतीय चित्रों आदि से कर सकते हैं। ये पारंपरिक भारतीय पेंटिंग (Painting) लोगों का प्रकृति और उसकी शक्तियों के प्रति प्रेम को दर्शाती हैं।
भारत के प्रत्येक क्षेत्र को कला के एक विशेष रूप से जोड़ा जा सकता है, जिसमें उत्तर की मिथिला पेंटिंग से लेकर दक्षिण की तंजौर पेंटिंग और पूर्व में पट्टचित्र से लेकर पश्चिम में वारली तक शामिल हैं। तो चलिए भारत में चित्रकला की कुछ प्रमुख शैलियों पर एक नज़र डालते हैं।
भित्ति चित्रकारी :- भारत के भित्ति चित्र प्रागैतिहासिक काल के हैं। इन चित्रों के बेहतरीन उदाहरणों में अजंता, एलोरा, बाग आदि के भित्ति चित्र शामिल हैं।
मधुबनी चित्रकारी :-
मधुबनी चित्रकारी की उत्पत्ति भारत के बिहार राज्य के मैथिली नामक एक छोटे से गाँव में हुई थी। सर्वप्रथम गाँव की महिलाओं द्वारा अपने विचारों, आशाओं और सपनों के चित्रण के रूप में अपनी घर की दीवारों पर इन चित्रों को चित्रित किया गया था। समय के साथ यह चित्रकारी उत्सव और शादी जैसे विशेष कार्यक्रमों का हिस्सा बनने लगीं।
लघु चित्रकारी :-
लघु चित्र सुंदर हस्तनिर्मित चित्र होते हैं, जो काफी रंगीन लेकिन आकार में छोटे होते हैं। इन चित्रों का मुख्य आकर्षण जटिल और नाज़ुक ब्रशवर्क (Brushwork) है, जो इन चित्रों को एक विशिष्ट पहचान देता है। भारत में सबसे पहले लघु चित्र ताड़ के पत्तों पर पाए गए थे। ये टुकड़े आमतौर पर जैन और बौद्ध व्यापारियों के लिए चित्रित किए गए थे, जो उन्हें 10वीं और 12वीं शताब्दी के बीच भारतीय उप-महाद्वीप में अपनी यात्रा के दौरान ले जाया करते थे। इन प्रारंभिक लघुचित्रों का बाद में राजस्थानी, मुगल, पहाड़ी और दक्कनी लघु कलाओं के विभिन्न विद्यालयों द्वारा अनुसरण किया गया।
मुगल चित्रकारी :-
मुगल चित्रकारी भारतीय, फारसी और इस्लामी शैलियों के एक विशिष्ट संयोजन को दर्शाती है। यह चित्रकारी 16वीं शताब्दी और 19वीं शताब्दी के बीच भारत में मुगल सम्राटों के शासन के दौरान विकसित हुई थीं। मुगल शासकों में दूसरे स्थान पर रहे हुमायूँ को मुग़ल चित्रकला का पहला प्रलेखित संरक्षक माना जाता है। दास्तान-ए-अमीर-हमज़ा उनके अधीन ही बनाई गई थी और इस कृति में फ़ारसी कला के पहले प्रभाव को देखा गया था। इस प्रकार, फारसी, मध्य एशियाई और भारतीय तत्व एक साथ मिल गए और इस संश्लेषण से एक नई शैली 'मुगल शैली' का जन्म हुआ।
मैसूर चित्रकला :-
मैसूर चित्रकला कर्नाटक के शहर मैसूर में शास्त्रीय दक्षिण भारतीय चित्रकला से उत्पन्न हुई सौंदर्य का प्रतीक है। इसकी उत्पत्ति के समय मैसूर वोडेयार के शासन के अधीन था और उनके संरक्षण में यह चित्रकला अपने चरम पर पहुंची।
पहाड़ी चित्रकला :-
कश्मीर में संशोधित रूप में और पंजाब और उत्तर प्रदेश के निकटवर्ती पहाड़ी क्षेत्रों में इस चित्रकला की प्राचीन परंपरा है। इन क्षेत्रों में पिछले दो से तीन पीढ़ियों के दौरान कई प्राचीन तस्वीरें सार्वजनिक हुई हैं। सबसे पहले ज्ञात पहाड़ी चित्र बशोली के राजा कृपाल पाल (1678-1693) के समय के हैं। इनमें अधिकतर क्षेत्र के राजकुमारों और हिंदू धार्मिक पुस्तकों के चित्र शामिल हैं, जैसे कि गीता गोविंद और भगवती पुराण। इन चित्रों में से अधिकांश चित्र श्री कृष्ण पर आधारित हैं।
राजपूत चित्रकला :-
राजपूत चित्रकला की शुरुआत 16वीं शताब्दी के अंत और 17वीं शताब्दी की शुरुआत में राजस्थान के शाही राज्यों में हुई थी। मुगलों ने उस समय राजस्थान की लगभग सभी रियासतों पर शासन किया और इस वजह से भारत में राजपूत चित्रकला के अधिकांश विद्यालयों में मुगल चित्रकला का गहन प्रभाव देखने को मिलता है।
तंजौर चित्रकला :- तंजौर पेंटिंग शास्त्रीय दक्षिण भारतीय चित्रकला के सबसे लोकप्रिय रूपों में से एक है। यह तमिलनाडु के शहर तंजावुर की मूल कला शैली है। भारतीय तंजावुर चित्रकला की घनी रचना, सतह समृद्धि और जीवंत रंग उन्हें अन्य प्रकार के चित्रों से अलग बनाते हैं।
मालवा, दक्कन और जौनपुर चित्रकला :-
पांडुलिपि चित्रण का एक नया चलन नासिर शाह (1500-1510) के शासनकाल के दौरान मांडू में चित्रित ‘निमतनामा’ की एक पांडुलिपि से शुरू हुआ था। लोदी खुलादार के नाम से जानी जाने वाली चित्रकला की एक और शैली दिल्ली से जौनपुर तक फैली थी।
संदर्भ :-
1. https://www.culturalindia.net/indian-art/paintings/index.html
2. https://en.wikipedia.org/wiki/Indian_painting
3. https://www.exoticindiaart.com/art_schools.php3
4. https://theculturetrip.com/asia/india/articles/5-traditional-indian-painting-styles/
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