इस्लाम धर्म में नमाज़ के दौरान प्रयोग किए जाने वाले कालीन या दरी का विशेष महत्व है। हालांकि इस्लाम धर्म में इसके उपयोग की कोई बाध्यता नहीं है, किंतु नमाज़ के लिए प्रयोग किए जाने वाले स्थान का स्वच्छ होना अनिवार्य है। इसी स्वच्छता को बनाए रखने के लिए तथा नमाज़ के दौरान ध्यान केन्द्रित करने हेतु दरी का प्रयोग करना एक परंपरा बन गयी है। मुस्लिम लोग इस दरी पर दण्डवत बैठकर अल्लाह का स्मरण करते हैं। नमाज़ के बाद पुनः इस दरी को एक स्वच्छ स्थान पर रख दिया जाता है।
इन आयताकार दरियों को बुनकरों द्वारा कारखानों में तैयार किया जाता है, जिनमें विशेष प्रकार के इस्लामिक डिज़ाइन (Design) और वास्तुकला जैसे- मक्का में काबा या यरूशलेम में अल-अक्सा मस्जिद की छवियां बनाई जाती हैं। इस्लाम में किसी भी चेतन वस्तु का प्रतीक के रूप में उपयोग करना वर्जित है, इसलिए मस्जिदों तथा अन्य अचेतन वस्तुओं की आकृतियां इन दरियों पर उकेरी जाती हैं। इन पर बने मस्जिद के लैंप (Lamp) कुरान की आयातों के प्रकाश को संदर्भित करते हैं।
पारंपरिक रूप से इस दरी की आकृति लगभग 2.5 फीट × 4 फीट से 4 फीट × 6 फीट तक होती है। इस दरी पर बना आला मस्जिद के मेहराब को दर्शाता है, जबकि शीर्ष हिस्सा इस्लाम धर्म के केन्द्र मक्का को चिह्नित करता है, जहां पर झुककर या माथा टेककर नमाज़ अदा की जाती है। सभी मुसलमानों को, चाहे वे कहीं भी हों, मक्का की दिशा का ज्ञान होना अनिवार्य है। इसके साथ ही इन दरियों में बनी आकृतियां जैसे- कंघा, घड़ा इत्यादि मुस्लिमों को नमाज़ से पूर्व हाथ धोने और बाल बनाने के लिए प्रेरित करती हैं या याद दिलाती हैं। अरब में नमाज़ की दरी को ‘सजदा’ नाम से जाना जाता है।
जौनपुर की जामा मस्जिद और अटाला मस्जिद में व्यापक रूप से नमाज़ के लिए दरी का उपयोग किया जाता है। जामा मस्जिद भारत की सबसे बड़ी मस्जिदों में से एक है, जिसे पंद्रहवीं शताब्दी में हुसैन शाह शर्की द्वारा बनवाया गया था। यहां हर शुक्रवार को विशेष नमाज़ का आयोजन किया जाता है तथा रोज़ पाँच बार की नमाज़ नियमित रूप से होती है।
अटाला मस्जिद 14वीं सदी में सुल्तान फ़िरोज़ शाह तुगलक III (1351–1388 ईस्वी) के सौतेले भाई इब्राहिम नईब बरबक द्वारा बनावाई गयी एक मस्जिद है। इसका निर्माण अटाला देवी के मंदिर पर किया गया था। इसके मात्र बाह्य स्वरूप को शर्की शैली के आधार पर परिवर्तित कर दिया गया, जबकि आंतरिक दीवारों और स्तंभों में आज भी हिन्दू मंदिर की संरचना को देखा जा सकता है। इस मस्जिद को भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के स्मारकों की सूची में शामिल किया गया है। इस मस्जिद में भी नमाज़ अदा करने के लिए दरी का प्रयोग किया जाता है।
जौनपुर की इन दो मस्जिदों में सालों से उपयोग की जाने वाली दरियों का उल्लेख ‘दरीस: हिस्ट्री टेकनीक पैटर्न आइडेंटिफिकेशन’ (Dhurries: History Technique Pattern Identification) नामक एक किताब में भी मिलता है। इस किताब की लेखक नाडा चालडेकोट हैं। नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक कर आप इस किताब को खरीद सकते हैं।
https://amzn.to/2XsunSeदरियों का उपयोग मात्र इस्लाम धर्म में ही नहीं किया जाता वरन् भारतीय उपमहाद्वीप के अधिकांश घरों में विभिन्न उद्देश्यों की पूर्ति के लिए इसका उपयोग किया जाता है, विशेषकर फर्श की सजावट हेतु। भारत में फर्श को सजाने की परंपरा सदियों पुरानी है, जिसके लिए विभिन्न माध्यमों का उपयोग किया जाता था, जिनमें से दरी भी एक है। इसकी प्राचीनता के साक्ष्य हमें अजंता की गुफाओं से मिलते हैं। दरियों पर विशिष्ट प्रकार की चित्रकारी की जाती है, दिखने में यह कालीन के समान होती हैं। किंतु अपनी उपयोगिता के कारण कालीन से थोड़ा भिन्न होती हैं। इनका निर्माण कपास, ऊन, जूट, रेशम आदि से किया जाता था। ये आकार, स्वरूप और सामग्री के आधार पर भिन्न-भिन्न होती हैं, जिनका उपयोग फर्श पर बिछाने के लिए, टेलीफोन (Telephone) और फूलदान की टेबल (Table) को ढकने तथा विभिन्न समारोह में भी किया जाता है। भारत के विभिन्न राज्यों में अलग-अलग तरह की दरियों का निर्माण किया जाता है, किंतु कर्नाटक की दरियों को भौगोलिक संकेतक (GI) का टैग (Tag) दिया गया है।
संदर्भ:
1. https://en.wikipedia.org/wiki/Prayer_rug
2. https://www.learnreligions.com/how-prayer-rugs-are-used-2004512
3. https://arastan.com/journey/unassuming-indian-dhurrie
4. https://en.wikipedia.org/wiki/Dhurrie
5. https://amzn.to/2XsunSe
6. https://en.wikipedia.org/wiki/Jama_Mosque,_Jaunpur
7. https://en.wikipedia.org/wiki/Atala_Mosque,_Jaunpur
© - 2017 All content on this website, such as text, graphics, logos, button icons, software, images and its selection, arrangement, presentation & overall design, is the property of Indoeuropeans India Pvt. Ltd. and protected by international copyright laws.