स्तम्भेस्वर महादेव शिव मंदिर – भगवान शिव के इस मंदिर में स्थित शिवलिंग चार फुट ऊँचा और दो फुट के व्यास वाला है। इस मंदिर की विचित्र बात ये है की ये मंदिर दिन में दो बार ज्वार (सुबह और शाम) के समय जलस्तर बढने के कारण दृष्टी से उझल हो जाता है। यह के भक्तों का कहना है कि यह मंदिर चमत्कारी है इसीलिये समुद्र भी हर दिन इसका दो बार जलाभिषेक करता है। यह मंदिर अरब सागर के किनारे गुजरात के कवी कम्बोई में स्थित है। कवी कम्बोई बड़ोदरा से 75 किलोमीटर की दूरी पर है।
बिजली महादेव मंदिर – भगवान शिव के विचित्र पवित्र स्थानों में से एक है हिमाचल प्रदेश के कुल्लू में स्थित बिजली महादेव मंदिर। कहा जाता है कि कुल्लू का पूरा इतिहास इसी मंदिर के साथ जुड़ा हुआ है। यह मंदिर कुल्लू शहर में व्यास और पार्वती नदी के संगम के पास एक ऊँचे पर्वत पर है। इस मंदिर की रहस्यमयी बात यह है की इस मंदिर की शिवलिंग पर हर बारह वर्ष में एक बार भयंकर आकाशीय बिजली गिरती है जिससे यह शिवलिंग खंडित हो जाता है, इसके बाद मंदिर के पुरोहित उस शिवलिंग के टुकडो को उठाकर मक्खन के साथ जोड़ देते हैं और कुछ ही समय बाद शिवलिंग पुन: ठोस रूप धारण कर लेती है।
निष्कलंक महादेव मंदिर – गुजरात के भावनगर में कोलियाक तट से तीन किमी. अंदर अरब सागर में निष्कलंक महादेव मंदिर स्थित है। यहां पर अरब सागर की लहरें रोज पांच शिवलिंगों का जलाभिषेक करती हैं। शिवलिंग के निकट ही एक कुण्ड स्थित है। यहाँ मान्यता है कि अक्षय तृतीया के दिन इस कुण्ड में स्वयं गंगाजी उतरती हैं। यहाँ इस दिन स्नान करने का बहुत महत्व बताया जाता है। इस मंदिर का इतिहास महाभारत काल से जुड़ा हुआ है।
श्री अचलेश्वर महादेव मंदिर – वैसे तो सम्पूर्ण भारत में ही अचलेश्वर महादेव के कई मंदिर स्थित है किन्तु आज हम बात करने जा रहे है राजस्थान के धौलपुर में स्थित अचलेश्वर महादेव मंदिर की। इस मंदिर को भगवान शिव के सबसे विचित्र मंदिरों में से एक माना जाता है क्यूंकि यहाँ स्थापित शिवलिंग दिन में तीन बार अपना रंग बदलता है। इस शिवलिंग का रंग सुबह लाल होता है, दोपहर में केसरिया और शाम होते होते ये शिवलिंग काले रंग का हो जाता है। इस शिवलिंग की एक खास बात यह भी है की इस शिवलिंग का दूसरा छोर आज तक नही मिला है। एक बार भक्तों ने इस शिवलिंग की गहराई जानने के लिए इस शिवलिंग के आसपास खुदाई की किन्तु इस शिवलिंग का छोर हजारों मीटर की खुदाई के बाद भी नही मिला पाया अंत में उन्होंने इसे भगवान का चमत्कार मानते हुए खुदाई बंद कर दी।
लक्ष्मेस्वर महादेव मंदिर – छतीसगढ़ की राजधानी रायपुर से 120 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है लक्ष्मेस्वर महादेव मंदिर। ऐसा माना जाता है कि यहाँ रामायण कालीन शबरी उद्धार और लंका विजय के निमित्त भ्राता लक्ष्मण की विनती पर श्रीराम ने खर और दूषण की मुक्ति के पश्चात 'लक्ष्मणेश्वर महादेव' की स्थापना की थी। मान्यता है कि मंदिर के गर्भगृह में श्रीराम के अनुज लक्ष्मण के द्वारा स्थापित लक्ष्यलिंग स्थित है। इसे लखेश्वर महादेव भी कहा जाता है क्योंकि इसमें एक लाख लिंग है। इसमें एक पातालगामी लक्ष्य छिद्र है जिसमें जितना भी जल डाला जाय वह उसमें समाहित हो जाता है। इस लक्ष्य छिद्र के बारे में कहा जाता है कि मंदिर के बाहर स्थित कुंड से इसका सम्बंध है। इन छिद्रों में एक ऐसा छिद्र भी है जिसमें सदैव जल भरा रहता है। इसे अक्षय कुंड कहते हैं। स्वयंभू लक्ष्यलिंग के आस पास वर्तुल योन्याकार जलहरी बनी है। मंदिर के बाहर परिक्रमा में राजा खड्गदेव और उनकी रानी हाथ जोड़े स्थित हैं। प्रति वर्ष यहाँ महाशिवरात्रि के मेले में शिव की बारात निकाली जाती है। छत्तीसगढ़ में इस नगर की काशी के समान मान्यता है कहते हैं भगवान राम ने इस स्थान में खर और दूषण नाम के असुरों का वध किया था। इसी कारण इस नगर का नाम खरौद पड़ा।
सन्दर्भ:-
1. https://bit.ly/2IuMr8d
2. https://bit.ly/2EYLns3
3. https://www.youtube.com/watch?v=5GdwBnWH6vM
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