आज हमारे पास मनोरंजन के लिए अनगिनत साधन उपलब्ध हैं, किंतु पुराने दिनों के दौरान स्थिति कुछ और थी। बच्चों के पास मनोरंजन के लिए सीमित साधन ही उपलब्ध हुआ करते थे, जिनमें से कॉमिक्स (Comics) सबसे ज्यादा लोकप्रिय साधन हुआ करती थी, जो बच्चों और युवाओं के मध्य काफी प्रसिद्ध थी तथा विश्व स्तर पर इनका व्यापक प्रचलन था। भारत में भी भिन्न-भिन्न भाषाओं में कॉमिक्स के समान ही विभिन्न पत्रिकाएं प्रकाशित हुयीं। जिनमें कुछ काफी प्रसिद्ध भी हुईं। ‘चन्दामामा’ भी इनमें से एक थी।
चंदामामा को पहली बार जुलाई 1947 में तेलुगु (चंदामामा के रूप में) और तमिल (अंबुलीमा के रूप में) भाषा में प्रकाशित किया गया था। इस पत्रिका की शुरूआत तेलुगु फिल्म निर्माता बी. नागी रेड्डी और चक्रपाणी द्वारा की गई थी तथा इसका संपादन चक्रपाणी के करीबी मित्र और तेलुगु साहित्य के एक श्रेष्ठ पण्डित कोडवातिगंती कुटुम्बराव द्वारा किया गया। इन्होंने अपनी मृत्यु से पूर्व 28 वर्षों तक इस पत्रिका का संपादन किया। यह एक सचित्र पत्रिका थी, जो मुख्यतः बच्चों और युवाओं पर केंद्रित थी। इस मासिक पत्रिका ने अपने उत्कृष्ट दृष्टांतों के कारण कुछ ही समय में भारत भर में काफी लोकप्रियता हासिल कर ली थी। चन्दामामा में विशेषकर पौराणिक/जादुई कहानियां हुआ करती थीं, जो कई-कई वर्षों तक चलती थीं। दादा-दादी की कहानियों की परंपरा को इन्होंने अपनी पत्रिका के माध्यम से एक नया रूप देते हुए पुनः जीवित कर दिया था। विक्रम बेताल की कहानियों, जिन्हें संस्कृत साहित्य ‘बैताल पचीसी’ से लिया गया था, ने इसे विशेष ख्याति दिलवायी।
कुटुम्बराव ने इन पत्रिकाओं में भारतीय पौराणिक कथाओं की समस्त विशेषताओं को लिखा था, साथ ही युवा लेखकों को प्रोत्साहित करने के लिए भी इस पत्रिका को तैयार किया गया था। इस पत्रिका की कुछ कहानियां दसारी सुब्रह्मण्यम द्वारा लिखी गईं, जिन्होंने लोकप्रिय ‘पाताल दुर्गम’ जैसे धारावाहिक बनाए थे। 2008 में इस पत्रिका में कुछ उल्लेखनीय परिवर्तन किए गए, अब इसमें पौराणिक कथाओं के साथ-साथ समकालीन कहानियों, साहसिक धारावाहिक, खेल, प्रौद्योगिकी, समाचार पृष्ठों आदि को भी जोड़ दिया गया। एक सबसे पुरानी पत्रिका होने के नाते इसने युवाओं को मनोरंजन के साथ-साथ संवेदनशील और शैक्षिक साहित्य से रूबरू कराने का उत्तरदायित्व उठाया। बच्चों के साहित्य में और अकादमिक अध्ययन और उसके विश्लेषण में बढ़ते रुझानों को देखते हुए, चंदामामा ने अपनी संपादकीय नीतियों को समय के अनुरूप बनाए रखने का प्रयास भी किया था।
इस पत्रिका को अंग्रेजी सहित 12 भारतीय भाषा में संपादित किया गया था, तथा इसके लगभग 2,00,000 पाठक थे। 2007 में, चंदामामा को मुंबई स्थित सॉफ्टवेयर (Software) सेवा प्रदाता कंपनी जियोडेसिक (Geodesic) द्वारा खरीदा गया। इन्होंने तत्कालीन 60 वर्षीय पत्रिका का डिजिटलीकरण (Digitization) करने की योजना बनाई। जुलाई 2008 में, प्रकाशन ने तेलुगु, अंग्रेजी, हिंदी और तमिल में अपना ऑनलाइन पोर्टल (Online portal) शुरू किया।
लगभग छः दशकों का खूबसूरत सफर तय करने के बाद, मार्च 2013 से चंदामामा ने ग्राहकों को किसी भी प्रकार की सूचना दिए बिना तथा ग्राहकों की धनवापसी किए बिना सभी भाषाओं में प्रकाशन बंद कर दिया। जुलाई 2016 में, चंदामामा कंपनी द्वारा पत्रिका की मूल वेबसाइट (Website) को बंद करने की अनुमति दे दी गई तथा इसे हटा दिया गया। कंपनी के बंद होने का मुख्य कारण वित्तीय संकट बताया गया। इंडियन एक्सप्रेस (Indian Express) की रिपोर्ट के अनुसार जून 2014 में, बॉम्बे उच्च न्यायालय के आधिकारिक परिसमापक ने कंपनी की संपत्ति पर कब्ज़ा कर लिया था, क्योंकि फर्म अप्रैल 2014 में अपने विदेशी मुद्रा परिवर्तनीय बॉन्ड (FCCB) धारकों को 162 मिलियन डॉलर (लगभग 1,000 करोड़ रुपये) का भुगतान करने में विफल रही थी। इससे वसूली अभी भी जारी है।
अब इसकी आधिकारिक वेबसाइट ने अपने मूल संस्करणों को ऑनलाइन अपलोड (Upload) करना शुरू कर दिया है, जो सभी मुफ्त डाउनलोड (Download) के लिए उपलब्ध हैं। चंदामामा के विभिन्न भाषाओं में डिजिटल संस्करण को आप निम्न (https://chandamama.in/) लिंक पर जाकर पढ़ सकते हैं। वेबसाइट पर 1947 से 2006 तक की कहानियां उपलब्ध हैं।
संदर्भ:
1.https://en.wikipedia.org/wiki/Chandamama
2.https://yourstory.com/2017/12/chandamama-goes-digital
3.https://bit.ly/2wIYclT
4.https://chandamama.in/hindi/
5.https://bit.ly/2RuFYkR
© - 2017 All content on this website, such as text, graphics, logos, button icons, software, images and its selection, arrangement, presentation & overall design, is the property of Indoeuropeans India Pvt. Ltd. and protected by international copyright laws.