अकबर के नौ रत्नों में से एक बीरबल की बुद्धिमत्ता से अकबर अत्यंत प्रभावित थे तथा इन दोनों के मध्य होने वाली नोंक-झोंक के किस्से, कहानियों में काफी लोकप्रिय हैं। आज हम अकबर बीरबल की कहानियों में से बीरबल की बुद्धिमत्ता की एक रोचक कहानी चुनकर लाए हैं, जिसमें बीरबल ने अपनी चतुराई का उपयोग करते हुए मात्र एक हाथी के पदचिन्ह से 1,00,000 स्वर्ण मुद्राएं एकत्रित कर लीं।
एक बार अकबर और बीरबल के मध्य कुछ विवाद हो गया जिस कारण बीरबल दरबार छोड़कर कहीं दूर चले गये और वहां अपनी पहचान छिपाकर रहने लगे। अकबर ने अपनी धर्म पत्नी को खुश करने की मंशा से न चाहते हुए भी पत्नी के भाई को दीवान के पद पर नियुक्त कर दिया। किंतु देखते ही देखते कुछ ही समय में उनके राज्य में अव्यवस्था फैल गयी।
एक दिन अकबर ने पीर बाबा की दरगाह में जाने का निर्णय लिया। वापसी में उन्हें मार्ग में एक हाथी का पदचिन्ह दिखा, जिससे उन्होंने अपने दीवान की बुद्धिमत्ता आंकने का फैसला किया। अकबर ने दीवान से तीन दिनों तक इन पद चिन्हों की रक्षा करने को कहा और स्वयं महल की ओर लौट गए। दीवान तीन दिनों तक भूखे प्यासे पदचिन्हों की रक्षा करने लगा और चौथे दिन मूर्छित अवस्था में सम्राट के समक्ष आया और बताया कि, “देखिए मैंने आपके निर्देशों के अनुसार तीन दिनों तक हाथी के पैरों के निशान की रक्षा की”।
उसकी बुद्धिमत्ता को देखते हुए अकबर ने बीरबल को वापस बुलाने का निर्णय लिया। जिसके लिए अकबर ने एक योजना बनायी। अकबर ने यह घोषणा की कि सरकारी कुओं पर कुछ विवाद चल रहा है इसलिए आस-पास के सभी जमींदार अपने कुओं को लेकर दरबार में आएं, नहीं तो उन्हें 10,000 स्वर्ण मुद्राओं का जुर्माना देना होगा। यह आदेश सुनकर सभी जमींदार आश्चर्यचकित हो गए। यह सूचना उस गांव में भी पहुंच गयी जहां बीरबल रहते थे, बीरबल समझ गए यह उन्हें ढूंढने की योजना है। अगले दिन बीरबल गांव के जमींदार के साथ नगर के बाहर पहुंचे और वहां से एक दूत के माध्यम से संदेश भिजवाया “हुज़ूर हम अपने कुओं के साथ नगर के बाहर पहुंच गए हैं, अब आप अपने कुएं उनके स्वागत के लिए भेजें”।
यह संदेश सुनते ही अकबर समझ गए कि यह बीरबल की योजना है। उन्होंने तुरंत अपने लोगों को बीरबल को खोजने और उन्हें वापस लाने के लिए भेजा। जब बीरबल दरबार में पहुंचे, तो सम्राट ने बीरबल का उत्साह पूर्वक स्वागत किया और उन्हें अपने शाही सलाहकार के रूप में नियुक्त किया।
कुछ समय पश्चात अकबर ने हाथी के उस पदचिन्ह की रक्षा का कार्य बीरबल को सौंप दिया। बीरबल हाथी के पदचिन्ह के पास गए और उसके पास एक लोहे की छड़ लगाकर उसमें पचास गज की रस्सी बांध ली तथा आस पास के लोगों से कहा इस पदचिन्ह की सुरक्षा हेतु जो घर इसकी परिधि में आयेंगे वह तोड़ दिए जाएंगे। लोगों ने उनसे ऐसा न करने का आग्रह किया और अपने घर को बचाने के लिए बीरबल को लगभग 1,00,000 स्वर्ण मुद्राएं दीं और साथ ही हाथी के पदचिन्ह की रक्षा करने का वचन भी दिया। बीरबल ने यह पैसे शाही खज़ाने में जमा करा दिए और सम्राट को बताया कि काम हो गया है तथा उनके खज़ाने में 1,00,000 स्वर्ण मुद्राएँ जमा कर दी गई हैं।
अकबर ने अपने साले (पत्नी का भाई) को बुलाया और उससे कहा – आप तीन दिनों तक पदचिन्हों की रक्षा के लिए भूखे प्यासे रहे और कुछ भी हासिल नहीं किया, किंतु बीरबल ने एक दिन में 1,00,000 स्वर्ण सिक्के एकत्रित कर दिए। इसलिए वे ही हमारे दीवान बनने योग्य हैं। इस प्रकार बीरबल ने अपनी बुद्धिमत्ता का प्रयोग करके सम्मानपूर्वक अपना स्थान पुनः प्राप्त कर लिया।
अपने लक्ष्य को पूरा करने हेतु रचनात्मक सोच और दूसरों को प्रेरित करने की कला हमें सफल बना सकती है, भले ही कार्य कितना भी असंभव क्यों ना हो।
संदर्भ:
1. https://bit.ly/2K1uDob
2. https://myshortfables.wordpress.com/2017/01/16/footmark-of-an-elephant/
3. https://bit.ly/2WuJe2c
4. http://storiesofbravery2717.blogspot.com/p/moral-story-of-tenali-raman-and-akbar.html
5. https://theunboundedspirit.com/short-story-the-elephant-and-the-rope/
6. http://storyoftales.blogspot.com/2017/11/blog-post_25.html
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