करसूलनाथ मंदिर जौनपुर जिले के कंधिकला नामक गाँव में सई नदी के किनारे स्थित है। यह मंदिर शिव को समर्पित है। आज करसूलनाथ मंदिर पूरे जिले में आस्था का एक प्रमुख केंद्र है। वर्तमान स्थापत्य के अनुसार यह मंदिर कदाचित नया प्रतीत होता है। परन्तु इसकी ऐतिहासिकता इसके सामने स्थित कुएं और उसमे लिखित पाषाणलेख से प्राप्त होती है। कुएं की वास्तुकला को देखकर यह अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि यह कुआं करीब 18वीं शताब्दी में बनाया गया था। इस कुएं के समीप एक और अन्य कुएं का निर्माण किया गया है, जिस पर लाल गेरू रंग से चित्रकारी भी की गयी है। यह कुआँ करीब 19वीं शताब्दी का है। कुओं की ऐतिहासिकता से यह कहा जा सकता है कि यह मंदिर ज्यादा नहीं तो 18वीं शताब्दी का माना जा सकता है।
जिस स्थान पर यह मंदिर बनाया गया है वह प्राचीन व्यापारिक मार्ग पर आता है तथा मछलीशहर और इलाहाबाद जाने का यह एकमात्र मार्ग था। आज भी यहाँ पर नाव की व्यवस्था है। जिसपर लोग सवार होकर नदी पार करते हैं। इस मंदिर के आस-पास नाविकों की एक पूरी बस्ती भी है जिनका कार्य लोगों को नदी पार कराने का है। ऐसे में इस मंदिर के प्राचीन होने के और भी महत्वपूर्ण साक्ष्य प्राप्त हो जाते हैं। इस मार्ग से मिर्जापुर और भदोही से कोल्हू भी आस-पास के क्षेत्रों में लाया जाता था।
करसूलनाथ मंदिर से सम्बंधित कई किंवदंतियाँ प्रचलित हैं। उन्हीं में से एक है इस मंदिर के निर्माण और प्राप्ति की। कहा जाता है कि एक समय यह क्षेत्र बड़ा जंगल हुआ करता था तथा आस-पास के लोग भवन निर्माण करने के लिए यहीं से बालू मंगाया करते थे। उस समय पूरे जौनपुर में ऊंटों से बालू ढोने का कार्य किया जाता था। आज भी जौनपुर में कई स्थानों पर ऊँट पाए जाते हैं। उस दौरान ऊँट से व्यक्ति यहाँ पर बालू की खुदाई करने आते थे। उसी वक्त बालू की खुदाई के दौरान शिवलिंग पर किसी का फावड़ा पड़ने के कारण शिवलिंग का ऊपरी भाग टूट गया और इस प्रकार से इस शिवलिंग का पता चला। जैसा कि यहाँ की भौगोलिक दशा की वजह से पत्थर का यहाँ पर लोप है और यहाँ पर कम मात्रा में ही पत्थर पाया जाता है तो लोगों ने इसको एक चमत्कार ही समझा और पाए हुए पत्थर को शिवलिंग का दर्जा दे दिया। उसी समय के बाद से करसूलनाथ मंदिर की स्थापना की गयी और प्रत्येक वर्ष यहाँ पर शिवरात्रि के दौरान बड़ी संख्या में भक्त आने लगे और भगवान का आशीर्वाद लेने लगे। विभिन्न पुरातात्त्विक अध्ययनों से यहाँ के आस-पास के क्षेत्र से कई पुरातात्त्विक स्थलों का भी पता चला है। ऐसे में यह सिद्ध होता है कि यह स्थान व्यापारिक मार्ग में आता था।
एक अन्य किवंदति के अनुसार यहाँ भरों की बस्ती थी। मिर्ज़ापुर का कोई व्यापारी अपना सामान लेकर जा रहा था। रात में वो यहाँ रुका। उसका सामान चोरी हो गया। रात में शंकर जी ने उसे स्वपन दिया तुम्हारा सामान मिल जायेगा, मेरे मंदिर का निर्माण कराओ। जंगल में खोजने पर शंकर जी का लिंग (पिण्डी) मिला। उसका सारा सामान भी मिल गया। उसने चुना पत्थर से शिव मंदिर का निर्माण करवाया। उसने एक शोने का त्रिशूल भी शिखर पर लगवाया था जिससे बाद में चोरों ने चुरा लिया। मंदिर के पास एक कुआँ है जिस पर लिखा हुआ लेख आज तक कोई पड़ नही पाया है।
सन्दर्भ:-
1. दुबे, डा. सत्यनारायण जौनपुर का गौरवशाली इतिहास 2013 शारदा पुस्तक भवन, इलाहाबाद
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