नोबेल फाउंडेशन (Nobel Foundation) द्वारा स्वीडन (Sweden) के वैज्ञानिक अल्फ्रेड नोबेल (Alfred Nobel) की याद में वर्ष 1901 में एक पुरुष्कार शुरू किया गया। यह शांति, साहित्य, भौतिकी, रसायन, चिकित्साविज्ञान, और अर्थशास्त्र के क्षेत्र में विश्व का सर्वोच्च पुरस्कार है जिसे नोबेल पुरूस्कार कहा जाता है। हालांकि कृषि के क्षेत्र में विशेष रूप से नोबेल पुरस्कार नहीं है, परंतु फिर भी ऐसे कई महत्व पूर्ण कृषि विशेषज्ञ हैं,जिन्होंने विभिन्न श्रेणियों में नोबेल पुरस्कार जीता है। इनमे से सबसे प्रसिद्ध वैज्ञानिक है नॉर्मन बोरलॉग (25 मार्च, 1914-12 सितंबर, 2009), जिन्होंने 1960 के दशक में कृषि क्षेत्र की काया पलटकर रख दी। उन्होंने खेती-बाड़ी में जो अभूतपूर्व बदलाव किए उसे दुनिया भर में हरित क्रांति (Green Revolution) के नाम से जाना जाता है। इन्हें कृषि क्षेत्र में इस असाधारण क्रांति के लिए 1970 का नोबेल शांति पुरस्कार मिला था।
पुरस्कार मिलने के बाद बोरलॉग ने कहा कि वे अक्सर सोचते है कि ‘यदि नोबेल ने पचास साल पहले विभिन्न पुरस्कारों की स्थापना के लिए अपनी वसीयत लिखी होती तो उसमें प्रथम पुरस्कार खाद्य और कृषि के क्षेत्र के लिए बनाया गया होता। क्योंकि नोबेल ने अपनी वसीयत 1895 में की थी और उस समय यूरोप में 1845-51 की तरह व्यापक आलू अकाल की जैसी कोई भी भयंकर खाद्य उत्पादन की समस्या नहीं थी, जिसने लाखों लोगों की जान ले ली।’
नोबेल पुरस्कार विजेता नॉर्मन अर्नेस्ट बोरलॉग एक अमेरिकी कृषि विज्ञानी थे, जिन्हें हरित क्रांति का पिता (Father of Green Revolution) माना जाता है। बोरलॉग उन लोगों में से एक हैं, जिन्हें नोबेल शांति पुरस्कार, स्वतंत्रता का राष्ट्रपति पदक और कांग्रेस का गोल्ड मेडल प्रदान किया गया था। इसके अलावा उन्हें भारत का दूसरा सर्वोच्च नागरिक सम्मान पद्म विभूषण प्रदान किया गया था। बोरलॉग की खोजों से दुनिया के करोड़ों लोगों का जीवन बचा है। उनके नवीन प्रयोगों ने अनाज की समस्या से जूझ रहे भारत सहित अनेक विकास शील देशों में हरित क्रांति का प्रवर्तन करने में महत्वपूर्ण योगदान दिया। उनका योगदान यहीं तक सीमित नहीं रहा, उन्होंने अफ्रीका में उत्पादन को बढ़ावा दिया, विश्व खाद्य पुरस्कार 1986 में नॉर्मन बोरलॉग द्वारा ही बनाया गया था. यह पुरस्कार उन व्यक्तियों को प्रदान किया जाता है जिन्होंने भुखमरी को कम करने एवं वैश्विक खाद्य सुरक्षा को बढ़ाने में महत्वपूर्ण योगदान दिया हो.25 जून, 2018 को विश्व खाद्य पुरस्कार फाउंडेशन द्वारा वर्ष 2018 के प्रतिष्ठित विश्व खाद्य पुरस्कार को डॉ. लॉरेंस हैडाड (Dr. Lawrence Haddad) और डॉ. डेविड नाबैरो (Dr david Nabarro) को प्रदान किए जाने की घोषणा की गई थी। इसके अलावा उन्होंने वैश्विक खेती और खाद्य आपूर्ति के भविष्य के लिये कई कार्य किये।
नॉर्मन का जन्म 1914 में आयोवा (Iowa) के क्रेस्को (Cresco) प्रांत में हुआ। खेती बाड़ी नॉर्मन बोरलॉग के जीवन का केंद्र बिंदु था, उनके परिवार के पास 40 हेक्टेअर जमीन थी जिस पर वह मक्का, बाजरा जैसी फसलों की खेती किया करते थे।ये वो दौर था जब बहुत से किसानों ने अपनी फ़सलें बर्बाद होते देखी थीं। बोरलॉग बड़े हुए तो उनके पास कॉलेज जाने के लिए पैसे नहीं थे।लेकिन ग्रेट डिप्रेशन एरा प्रोग्राम (Great Depression Era Program), जिसे नेशनल यूथ एडमिनिस्ट्रेशन (National Youth Administration) के नाम से भी जाना जाता है, के जरिये 1937 में बोरलॉग मिनेपॉलिस की मिनेसोटा यूनिवर्सिटी (University of Minnesota) में वानिकी में बी.एस (B.Sc) करने लगे। इसके बाद उन्होंने 1942 में प्लांट पैथोलॉजी और जेनेटिक्स में पी.एच.डी (Ph.d) की डिग्री हासिल कर ली।
नॉर्मन बोरलॉग भूख के ख़िलाफ़ संघर्ष करने वाले महान योद्धा थे,जिस शोध और कार्य ने नॉर्मन बोरलॉग को दुनिया भर में मशहूर कर दिया, वो काम उन्होंने 1960 के दशक में शुरू किया था जब उन्होंने मैक्सिको में मक्का और गेहूँ की विससित नस्लों को जन्म दिया। बोरलॉग ने मेकिस्को में रॉकफेलर फाउंडेशन (Rockefeller Foundation) से पूंजी प्राप्त परियोजना में काम करना शुरू कर दिया। जहां वे जेनेटिक्स, प्लांटब्रीडिंग, प्लांट पैथोलॉजी, कृषिविज्ञान, अनाज प्रौद्योगिकी आदि पर गेहूं उत्पादन में वृद्धि के लिये काम कर रहे थे। बोरलॉग की मेहनत रंग लाई और उन्होंने गेहूँ की पिटिक 62 (Pitic 62) और पेनजामो 62 (Penjamo 62) किस्में तैयार कीं, जिससे गेहूं का उत्पादन छह गुना अधिक हो चुका था और उत्पादन इतना बढ़ा कि बाद में मैक्सिको गेहूं का निर्यातक बन गया।
1960 के दशक के दौरान भारत में अकाल पड़ा था। उस समय नई दिल्ली स्थित भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान के कृषि वैज्ञानिक एम एस स्वामीनाथन को यह जानकारी थी कि दूर देश मैक्सिको में क्या चल रहा है। वे भारत में भी बोरलॉग के काम का लाभ उठाना चाहते थे, इसी सिलसिले में उन्होंने अपने निदेशक डॉ बी पी पाल को पत्र लिखकर बोरलॉग को भारत बुलाने का आग्रह किया। नतीजतन बोरलॉग और उनके सहयोगी डॉक्टर रॉबर्ट ग्लेन एंडरसन 1963 में भारत आए। यहां उन्होंने अपने परीक्षण के लिए उन्नत बीजों को दिल्ली, लुधियाना, पंतनगर, कानपुर, पुणे और इंदौर में बोया। 1965 तक इन बीजों को व्यापक पैमाने पर बोया जाने लगा। उस साल गेहूं की पैदावार 12.3 मिलियन टन थी जबकि 1970 तक वह बढ़कर 20.1 मिलियन टन हो गई और 1974 तक भारत अनाज उत्पादन के मामले में पूर्ण रूप से निर्भर हो गया।
2009में 95 साल की उम्र में नॉर्मन बोरलॉग का निधन हो गया। परंतु, उनकी विरासत उस अनाज के रूप में हमारे साथ आज भी है जिसे हम रोज खाते हैं। बोरलॉग ने भारत के एम एस स्वामीनाथन के साथ मिलकर देश को खाद्यान्न के मामले में आत्म निर्भर बनाया। उन्होंने हरित क्रांति के जरिये भूख से लड़ने वाले वैज्ञानिकों और किसानों को एक नयी दिशा दिखाई थी। इसके परिणाम स्वरूप आज दुनिया की सात अरब आबादी का पेट भरने के लिए भोजन की कोई कमी नहीं है।
संदर्भ:
1. https://www.nobelprize.org/prizes/peace/1970/borlaug/article/
2. https://en.wikipedia.org/wiki/Norman_Borlaug
3. https://bit.ly/2wbKlV2
4. https://bit.ly/30yNbRW
5. https://bit.ly/2JQBQXi
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