जौनपुर का एक दुर्लभ पक्षी हरगीला

जौनपुर

 15-05-2019 11:00 AM
पंछीयाँ

विश्‍व भर के पक्षियों का रिकॉर्ड रखने वाले, एविबेस (Avibase) वेबसाइट (Website) की एक रिपोर्ट के अनुसार जौनपुर में लगभग 324 पक्षी प्रजातियां पायी जाती हैं। जिनमें से 20 प्रजातियां ऐसी हैं जो विश्‍व स्‍तर पर विलुप्‍ति के कगार पर खड़ी हैं। जौनपुर की कुछ विलुप्‍त, विलुप्‍तप्राय तथा संवेदनशील प्रजातियों की सूची इस प्रकार है:
संवेदनशील प्रजातियां
1. फ़ैलकेटेड डक (Falcated Duck)
2. ग्रेट थिक-नी (Great Thick-knee)
3. रिवर लैपविंग (River Lapwing)
4. यूरेशियन करल्यू (Eurasian Curlew)
5. ब्लैक-टेल्ड गॉडविट (Black-tailed Godwit)
6. रिवर टर्न (River Tern)
7. काली गर्दन वाला सारस (Black-necked Stork)
8. ओरिएंटल डार्टर (Oriental Darter) इत्‍यादि।
विलुप्‍तप्राय प्रजातियां
1. खरमोर
2. उत्क्रोशी फ्यालफ्याले
3. हरगीला (Greater Adjutant Stork)
4. लाल सिर वाला गिद्ध
5. श्वेतवर्णी गिद्ध
6. भारतीय गिद्ध
7. नेपाली गरुड (Steppe Eagle)
8. पल्सेस फिश-ईगल (Pallas's Fish-Eagle)
9. सकर फाल्कन (Saker Falcon)
विलुप्‍त प्रजातियां
1. भारतीय चित्तीदार महाश्येन
2. ग्रेटर स्पॉटेड ईगल (Greater Spotted Eagle)
3. टोनी ईगल (Tawny Eagle)
4. शाही ईगल (Imperial Eagle)
5. धनेश (Great Hornbill)
6. ब्रिसल्ड ग्रैसबर्ड (Bristled Grassbird)

जौनपुर में पाया जाने वाला दुर्लभ हरगीला (धेनुक)(Greater Adjutant Stork) पक्षी आज विश्‍व स्‍तर पर विलुप्ति की कगार पर खड़ा है। यह दक्षिण एशिया में व्‍यापक रूप से पाया जाता है, मुख्‍यतः भारत में किंतु आज इसकी अधिकांश प्रजातियां विलुप्‍त हो गयी हैं और शेष बची तीन प्रजनन प्रजातियां भी संकटग्रस्‍त हैं। असम में ब्रह्मपुत्र घाटी को इन लुप्तप्राय सारस का अंतिम गढ़ माना जाता है, जिसे स्थानीय रूप से ‘हरगिला’ (संस्‍कृत भाषा में हड्डियों को निगलने वाला) कहा जाता है, जहां इन प्रजातियों की वैश्विक आबादी का 80% से अधिक हिस्सा रहता है। 1773 में जॉन लेथम ने कलकत्ता में पाए जाने वाले इस पक्षी के बारे में ‘आइव्स वॉयाज टू इंडिया’ (Ives's Voyage to India) की मदद से एक वर्णन दिया था, जिसमें हरगीला को एक विशाल क्रेन बताया गया है। 19वीं सदी तक भी यह कलकत्‍ता में हरगीला पर्याप्‍त मात्रा में उपलब्‍ध थे, किंतु अब यहां भी इनकी संख्‍या में बड़ी मात्रा में गिरावट आयी है।

एक समय में यह पक्षी उत्‍तर भारत मैदानों में सर्दियों के आगंतुक थे, हालांकि इनका प्रजनन क्षेत्र काफी लंबे समय तक अज्ञात ही रहा, जो 1877 में (सीतांग नदी, पेगु, बर्मा) सामने आया। इन क्षेत्रों में कई अन्‍य भारतीय पक्षियों की भी नस्‍लें मिलीं, साथ ही कई हरगीला प्रजातियां भी पायी गईं, जिनमें से कुछ 1930 का दशक आने तक विलुप्‍त हो गईं। 2008 में इनकी कुल आबादी लगभग एक हजार आंकी गयी। भारत में असम में इनकी सबसे ज्‍यादा प्रजातियां पायी जाती हैं, उसके बाद लगभग 400 के करीब प्रजातियां भागलपुर (बिहार) में पायी जाती हैं।


यह पक्षी मुख्‍यतः सारस कुल का सदस्‍य है। इस विशाल पक्षी की ऊंचाई लगभग 145 से 150 सेमी (57-59 इंच) हो सकती है। इनका शरीर सफेद और काले पंखों से ढका रहता है ज‍बकि गर्दन में ना के समान बाल होते हैं तथा यह लाल और नारंगी रंग की होती है। इनके पैरों का रंग हल्‍का भूरा होता है। सारस पक्षियों के समान ही इनके कंठ में आंतरिक मांसपेशियों का अभाव होता है। ये मुख्‍य रूप से चौंच की खटखटाहट द्वारा ध्वनि उत्पन्न करते हैं, हालांकि यह घोसले बनाते समय गुनगुनाहट और गर्जन जैसी ध्‍वनि निकालते हैं। ये अपने शरीर के तापमान को नियंत्रित करने के लिए अपने पंखों को फैला देते हैं। यह पक्षी सामान्‍यतः अकेले या छोटे समूह में झील व कचरे के ढेर के आसपास रहते हैं। यह गिद्धों के समान ही विकृत वस्‍तुओं से अपना भोजन ग्रहण करते हैं। ये अवसरवादी होते हैं इसलिए कभी कभी कशेरुकियों का भी शिकार कर लेते हैं। वैसे तो इन्‍हें एक घृणित पक्षी के रूप में इंगित किया जाता है किंतु कभी-कभी चिकित्‍सीय दृष्टि से भी इनका शिकार किया जाता है।

ये पक्षी पेड़ों के शीर्ष पर अपने घोसले बनाते हैं। प्रजनन के मौसम में नर पक्षी पेड़ों के शीर्ष पर कब्‍जा कर विभिन्‍न गतिविधियों से मादा को अपनी ओर आकर्षित करते हैं। अण्‍डों को सेकने का कार्य नर एवं मादा दोनों के द्वारा लगभग 35 दिन तक किया जाता है। लगभग पांच महीने तक चूज़ों का पालन पोषण घोसले में ही किया जाता है। चौथे महीने के बाद चूज़े घोसले से बाहर निकलना प्रारंभ कर देते हैं।

अपनी दुनिया में मस्‍त रहने वाला यह पक्षी आज अपनी ही दुनिया को बचाने के लिए संघर्ष कर रहा है। इन पक्षियों का संरक्षण भी एक बड़ी समस्‍या है, क्‍योंकि यह सामूहिक रूप से रहने की बजाए निजी घोसलों में रहना पसंद करते हैं और इन घोसलों की आयु पेड़ के मालिक की इच्‍छा पर निर्भर करती है। इन पक्षियों की खाद्य प्रणाली के कारण लोग इसे अपवित्र पक्षी मानते हैं और आशंका जताते हैं कि इनके द्वारा फैलाई जाने वाली गंदगी से बिमारी का खतरा बढ़ सकता है, इसलिए वे इनसे छुटकारा पाने का प्रयास करते हैं, जिस कारण अक्‍सर वे अपने पेड़ इत्‍यादि कटवा देते हैं। ग्रामीण लोग इन्‍हें पत्‍थरों से मारकर भगाने में भी संकोच नहीं करते हैं।

असम में 2009 में इन पक्षियों के संरक्षण हेतु कुछ महिलाओं द्वारा एक अभियान शुरू किया गया। प्रारंभ में अभियान को संचालित करने में कई समस्‍याएं सामने आयी। किंतु जागरूकता कार्यक्रमों को व्‍यापक रूप से चलाने के बाद अब लोगों की मानसिकता बदल रही है। जिसके परिणामस्‍वरूप पिछले चार वर्षों में लोगों ने एक भी घोंसले वाले पेड़ को नहीं काटा है। इसके साथ ही संरक्षण दल ने ग्रामीण क्षेत्रों में पक्षियों पर कड़ी निगरानी रखना शुरू कर दिया है विशेष रूप से प्रजनन के मौसम में।

इन पक्षियों के चूज़ों को बचाना सबसे कठिन कार्य होता है, तूफान आने या तेज हवा चलने पर लगभग 70 फीट की ऊंचाई पर स्थित घोसलों से चूज़े नीचे गिर जाते हैं। जिससे वे या तो घायल हो जाते हैं या मर जाते हैं। इसलिए स्‍थानीय सरकार ने इन चूज़ों को बचाने के उद्देश्‍य से पेड़ों के चारों ओर एक जाल लगा दिया है और यदि ग्रामीणों को चूज़ों की सूचना मिलती है तो वे स्‍थानीय पुलिस स्‍टेशन में सूचित करते हैं। अधिकारी उस चूज़े को राज्य के चिड़ियाघर में ले जाकर आवश्‍यक चिकित्सीय सुविधा देते हैं तथा वापस उन्‍हें वन में छोड़ देते हैं।

इन महिलाओं की इन पक्षियों के प्रति समर्पण भाव को देखते हुए इन्‍हें ‘हरगिला बैदो’ या ‘सारस सिस्टर’ का नाम दिया गया है। इन दुर्लभ प्रजितियों को संरक्षण देने के लिए स्‍था‍नीय महिलाओं ने बिना हथियार वाली एक सेना खड़ी कर दी है, जो इनके संरक्षण के लिए प्रतिबद्ध है।

संदर्भ:
1. https://avibase.bsc-eoc.org/checklist.jsp?region=INggupju
2. https://en.wikipedia.org/wiki/Greater_adjutant
3. https://bit.ly/2YsJ9bD
4. https://news.nationalgeographic.com/2016/08/storks-science-india-animals-rare/



RECENT POST

  • बैरकपुर छावनी की ऐतिहासिक संपदा के भंडार का अध्ययन है ज़रूरी
    उपनिवेश व विश्वयुद्ध 1780 ईस्वी से 1947 ईस्वी तक

     23-11-2024 09:21 AM


  • आइए जानें, भारतीय शादियों में पगड़ी या सेहरा पहनने का रिवाज़, क्यों है इतना महत्वपूर्ण
    विचार I - धर्म (मिथक / अनुष्ठान)

     22-11-2024 09:18 AM


  • नटूफ़ियन संस्कृति: मानव इतिहास के शुरुआती खानाबदोश
    सभ्यताः 10000 ईसापूर्व से 2000 ईसापूर्व

     21-11-2024 09:24 AM


  • मुनस्यारी: पहली बर्फ़बारी और बर्फ़ीले पहाड़ देखने के लिए सबसे बेहतर जगह
    पर्वत, चोटी व पठार

     20-11-2024 09:24 AM


  • क्या आप जानते हैं, लाल किले में दीवान-ए-आम और दीवान-ए-ख़ास के प्रतीकों का मतलब ?
    वास्तुकला 1 वाह्य भवन

     19-11-2024 09:17 AM


  • भारत की ऊर्जा राजधानी – सोनभद्र, आर्थिक व सांस्कृतिक तौर पर है परिपूर्ण
    आधुनिक राज्य: 1947 से अब तक

     18-11-2024 09:25 AM


  • आइए, अंतर्राष्ट्रीय छात्र दिवस पर देखें, मैसाचुसेट्स इंस्टिट्यूट ऑफ़ टेक्नोलॉजी के चलचित्र
    वास्तुकला 1 वाह्य भवन

     17-11-2024 09:25 AM


  • आइए जानें, कौन से जंगली जानवर, रखते हैं अपने बच्चों का सबसे ज़्यादा ख्याल
    व्यवहारिक

     16-11-2024 09:12 AM


  • आइए जानें, गुरु ग्रंथ साहिब में वर्णित रागों के माध्यम से, इस ग्रंथ की संरचना के बारे में
    विचार I - धर्म (मिथक / अनुष्ठान)

     15-11-2024 09:19 AM


  • भारतीय स्वास्थ्य प्रणाली में, क्या है आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस और चिकित्सा पर्यटन का भविष्य
    विचार 2 दर्शनशास्त्र, गणित व दवा

     14-11-2024 09:15 AM






  • © - 2017 All content on this website, such as text, graphics, logos, button icons, software, images and its selection, arrangement, presentation & overall design, is the property of Indoeuropeans India Pvt. Ltd. and protected by international copyright laws.

    login_user_id