हम सभी ने अपनी दादी-नानी से किस्से और कहानियां तो खूब सुनी होंगी। ऐसे ही उर्दू में लंबी कहानियां सुनाने की एक कला होती है जिसे ‘दास्तानगोई’ कहा जाता है। उर्दू में अलिफ लैला, हातिमताई आदि जैसी कई दास्तानें सुनाई जाती रहीं हैं मगर इनमें सबसे मशहूर है ‘दास्ताने अमीर हमज़ा’ जिसमें हज़रत मुहम्मद के चाचा अमीर हमज़ा के साहसिक कारनामों का वर्णन किया गया है। यह दास्तान परंपरा, वीरगाथाओं और रासलीलाओं, जादू-टोने और चालबाज़ी की आश्चर्यचकित कर देने वाली घटनाओं से भरी हुई है। मध्ययुगीन समय में यह कहानी जौनपुर में काफी लोकप्रिय थी और यहां रहने वाले हर बच्चे को पता भी हुआ करती थी।
हमज़ानामा में 46 खंड हैं और लगभग 48,000 पृष्ठ हैं और कहा जाता है कि दास्तान अमीर हमज़ा, ग़ज़नी के महमूद के काल में लिखी गयी थी। इसके नायक अमीर हमज़ा का विस्तृत उल्लेख सम्राट अकबर के ‘हमज़ा-नामा” में मिलता है, जिसे पढ़कर ऐसा लगता है जैसे अकबर स्वयं भी इन दास्तानों को पसंद किया करते थे। हमज़ानामा के अधिकांश पात्र काल्पनिक हैं। मुगल सम्राट अकबर द्वारा लगभग वर्ष 1562 में एक विशाल सचित्र पांडुलिपि बनवाई गई थी। इसे ही दास्तान-ए-अमीर-हमज़ा कहा जाता है। आमिर हमज़ा की ये दास्तान बंगाल और अरकान (बर्मा) तक फैली हुई है, क्योंकि मुगलों ने उन क्षेत्रों को नियंत्रित किया था।
अकबर ने शासनकाल की शुरुआत में (जब वह लगभग बीस वर्ष के थे) हमज़ानमा की सचित्र पांडुलिपि बनाने का कार्य अपनी अदालती कार्यशाला में शुरू किया था। इस कार्य को इतने बड़े पैमाने पर किया गया था कि इसे पूरा करने में लगभग 1562 से 1577 तक चौदह साल लग गए। इसमें आयतों के अलावा बड़े आकार के 1,400 पूर्ण मुगल लघुचित्र शामिल थे जिनको 14 संस्करणों में व्यवस्थित किया गया था। लगभग सभी चित्र कागज़ पर चित्रित किए गए थे, जिन्हें फिर एक कपड़े के ऊपर चिपकाया जाता था। अधिकांश फोलियो (Folio) के एक तरफ एक पेंटिंग (Painting) है, जो आकार में लगभग 69 से.मी. x 54 से.मी. (लगभग 27 x 20 इंच) है और इनमें फ़ारसी और मुगल शैलियों की झलक साफ नज़र आती है। फोलियो के दूसरी तरफ सोने की परत वाले कागज़ पर नस्तालिक लिपि में फारसी में 19 पंक्तियों से बना एक आयत लिखा हुआ है।
वर्तमान में अकबर के हमज़ा-नामा के ज्ञात अवशेषों में लगभग 170 फोलियो शेष हैं, जो दुनिया भर के कला संग्रहों में फैले हुए हैं। अमीर हमजा के कारनामों को सूडान, तुर्की, भारत, मलेशिया और जावा सहित संपूर्ण इस्लामी दुनिया में कई भाषाओं और जगहों पर मौखिक और लिखित रूप में प्रसार किया गया था। ये कहानियाँ मौखिक और लिखित साहित्य में एक हज़ार से अधिक वर्षों से मौजूद हैं। इन कहानियों में बताया गया है कि हमज़ा का घर सासैनियन ईरान था और वे एक इस्लाम के लिए लड़ने वाले वीर योद्धा थे। वह एक इस्लामी सैन्य नेता थे। उन्होंने अब्बासिद ख़लीफ़ा के खिलाफ फ़ारसी विद्रोह का नेतृत्व किया और भारत और चीन में सैन्य अभियान चलाया। कहानी के एक हिस्से में, हमज़ा कुछ शानदार जीवों के साथ दूसरी दुनिया की यात्रा करते हैं और बुराई से लड़ते हैं। हमज़ा के कारनामों का पहला लिखित पाठ कथित तौर पर लगभग 1200 साल पहले बनाया गया था। ये भी कहा जाता है कि हमज़ा के कारनामे लगभग 1000 साल पहले से ही फारस में मौखिक और लिखित फारसी में व्यापक रूप से घूम रहे थे।
इसके अलावा दास्तान-ए अमीर हमज़ा के कई अन्य संस्करण भी मौजूद हैं। नवाब मिर्ज़ा अमान अली खान ग़ालिब लखनवी का एक संस्करण 1855 में छपा और हकीम साहिब प्रेस, कलकत्ता, द्वारा प्रकाशित किया गया। इस संस्करण को बाद में अब्दुल्ला बिलग्रामि ने अलंकृत किया और 1871 में नवल किशोर प्रेस, लखनऊ द्वारा प्रकाशित करवाया गया। इसके अंग्रेजी भाषा के दो अनुवाद भी प्रकाशित हुए हैं। पहला कोलंबिया विश्वविद्यालय के अनुवादक फ्रांसेस प्रिचेट की वेबसाइट (Website) पर एक विस्तारित संस्करण में उपलब्ध है और दूसरा 2007 में एक पाकिस्तानी-कनाडाई लेखक मुशर्रफ़ अली फ़ारूक़ी ने ग़ालिब लखनवी/अब्दुल्ला बिलग्रामी के संस्करण का अंग्रेजी में अनुवाद किया। एक पाकिस्तानी लेखक मकबूल जहाँगीर ने उर्दू भाषा में बच्चों के लिए दास्तान-ए-अमीर हमज़ा लिखा था। उनके इस संस्करण में 10 खंड हैं और यह फ़िरोज़सन्स प्रकाशक द्वारा प्रकाशित किया गया था।
दास्तान-ए अमीर हमज़ा उत्कृष्ट लघु चित्रकारी का एक बेहतरीन नमूना है, और अकबर के शासनकाल में ही मुगल कला में लघु चित्र की उत्पत्ति देखी गई थी, जिसका पहला उत्कृष्ट उदाहरण हमज़ानामा थी। परंतु ऐसा भी हो सकता है कि संभवतया जौनपुर के कला के स्कूलों ने मुगल कला और इसके हमज़ानामा चित्रण को प्रभावित किया हो। नासिरशाह (1500-1510 ई.) के शासनकाल में मांडू में चित्रित ‘निमतनामा’ पांडुलिपि के साथ ही पांडुलिप चित्रण में एक नया चलन स्थापित हुआ। यह संरक्षित और स्वदेशी फ़ारसी शैली के संश्लेषण का प्रतिनिधित्व करता है। यह चित्रकला की एक शैली थी जिसे लोदी खुलादार के नाम से जाना जाता था और इसे दिल्ली से जौनपुर तक फैली सल्तनत के शासनकाल में विकसित किया गया था। वे लघु चित्र, जो शुरू में बहमानी के दरबार में और बाद में गोलकोंडा, बीजापुर और अहमदनगर के दरबारों में समृद्ध हुये उन्हें जौनपुर, मालवा, और डेक्कन स्कूल ऑफ़ पेंटिंग (Jaunpur, Malwa, and Deccan Schools of Painting) के रूप में जाना जाता है। अतः ये कहा जा सकता है कि मुगल पेंटिंग जो कि आमतौर पर पुस्तक चित्र और लघु चित्रों तक सीमित थी, संभवतया जौनपुर की कला शैलियों से प्रभावित थी।
संदर्भ:
1. http://www.galbithink.org/sense-s3.htm
2. https://en.wikipedia.org/wiki/Hamzanama
3. https://www.oliveboard.in/blog/history-indian-paintings/
चित्र सन्दर्भ:
1. https://bit.ly/2vRgyRi
2. https://bit.ly/2PTuH9N
3. https://amzn.to/308W6sX
4. http://www.columbia.edu/itc/mealac/pritchett/00litlinks/hamzah/index.html
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