एक ही वनस्पति प्रजाति विश्व के विभिन्न हिस्सों में पायी जाती है, जिनको अनगिनत नाम दिये गये हैं। किंतु विश्व भर के वैज्ञानिक इन्हें इनके वैज्ञानिक नाम से ही जानते हैं, जो अधिकांश लैटिन भाषा में दिये गये हैं। यह वैज्ञानिक नाम वंश और प्रजाति के आधार पर रखे गये हैं। सर्वप्रथम यह जानना आवश्यक है कि सामान्य तथा वैज्ञानिक नामकरण में क्या अंतर हैं:
सामान्य नाम: ये स्थानीय रूप से उपयोग किए जाते हैं और देश या क्षेत्र विशेष के अनुसार भिन्न-भिन्न हो सकते हैं।
वैज्ञानिक नाम: जिनका उपयोग वैज्ञानिक समुदाय द्वारा प्रजातियों की सही और सार्वभौमिक रूप से पहचान करने के लिए किया जाता है।
नामकरण की अंतर्राष्ट्रीय संकेतावली
वैज्ञानिकों ने वैज्ञानिक नामकरण के लिए कई "संकेत" (कोड) स्थापित किए हैं। ये संकेत सार्वभौमिक होते हैं और समय-समय पर सहमति से उनमें परिवर्तन भी किया जाता है। इस प्रणाली को प्रारंभ करने का श्रेय स्वीडिश वनस्पतिशास्त्री कार्ल लिनेयस (1700 के दशक में) को जाता है, इनके द्वारा दी गयी प्रणाली को द्विपद नामकरण प्रणाली या बायनोमियल नोमनक्लेचर (Binomial Nomenclature) के नाम से भी जाना जाता है। द्विपद नामकरण प्रणाली के अंतर्गत दो पदनामों, वंश और जाति के नामों का उपयोग किया गया है। इसके अलावा लिनेयस ने एशियाई क्षेत्र की कई प्रजातियों के लिए संस्कृत भाषा की मदद से बनाये गए नाम प्रयुक्त किए हैं, जिसके विषय में कुछ वैज्ञानिकों को तक पता नहीं है।
"वर्गीकरण संबंधी पदानुक्रम" के रूप में विख्यात इस प्रणाली में आनुवांशिक और वंशागत विशेषताओं के आधार पर प्रजातियों को कई समूहों में विभाजित किया गया है। जिसमें उच्चतम स्तर ‘किंगडम’ (Kingdom) माना गया है। किंगडम में केवल दो प्रकार के जीव शामिल हैं जंतु और पौधे। किंगडम अनुक्षेत्र के भीतर सात वर्गीकरण शामिल हैं-
1. ऐनीमेलिया (Animalia), जिन में 'जंतु' शामिल होते हैं।
2. बैक्टीरिया (Bacteria), जिन्हें जीवाणु भी कहा जाता है।
3. आर्कीया (Archaea), जो एक कोशिका वाले ऐसे जीव होते हैं जिनमें केन्द्रक (न्यूक्लियस) नहीं होता।
4. प्रोटिस्टा (Protista), जो एक कोशिका (सेल) वाले एक ही तरह की बहु-कोशिका वाले सरल जीव होते हैं - इसमें प्रोटोज़ोआ शामिल हैं।
5. प्लांटे (Plantae), जिसेमें 'पादप' शामिल होते हैं।
6. फ़ंगस (Fungus), जिसेमें 'कवक' या 'फफूंद' आते हैं।
7. क्रोमिस्टा (Chromista), यह पादप जैसे ही जीवों (जिनमें क्लोरोफिल/Chlorophyll मौजूद हो) का एक समूह है।
ये वैज्ञानिक नाम विश्वभर में अपनाये जाते हैं। उन्हें किसी अन्य भाषा में व्याख्या या अनुवाद करने की भी आवश्यकता नहीं होती है। हालांकि यह कुछ के लिए चुनौतीपूर्ण हो सकता है जो लैटिन भाषा से परिचित नहीं हैं।
उच्चतम से निम्नतम वर्गीकरण का स्तर इस प्रकार हैं:
• किंगडम
• जाति
• श्रेणी
• समूह
• उपसमूह
• कुल
• वंश
• प्रजाति
• उप प्रजाति
उदाहरण के लिए, इस प्रणाली का उपयोग करके एक तरह के भेड़िये ग्रे वुल्फ (Grey Wolf) का वर्गीकरण निम्नानुसार किया जाएगा:
• किंगडम : ऐनीमेलिया
• जाति: कोर्डेटा (Chordata)
• श्रेणी: स्तनधारी
• समूह: कार्निवोरा (Carnivora)
• उपसमूह: कैनीफोर्मिया (Caniformia)
• कुल: कैनिडे (Canidae)
• प्रजाति: लूपस (lupus)
उपरोक्त उदाहरण से यह स्पष्ट है कि वर्गीकरण किंगडम से जाति (लूपस) तक होता है। इसमें वंश के नामों को हमेशा इटैलिक (Italic) किया जाता है और उसे सबसे पहले लिखा जाता है।
विज्ञान के इतिहास में मानकीकृत नामकरण प्रणाली की बहुत ही मुख्य भूमिका रही है। इसके द्वारा न केवल पादपों और जंतुओं को वैज्ञानिक नाम प्राप्त हुए बल्कि इनकी संरचनाओं और कार्यों को समझने में भी नामकरण प्रणाली की मुख्य भूमिका रही है। यदि जीव-जन्तुओं और वनस्पतियों का वर्गीकरण न हुआ होता तो आज उनका अध्ययन करना कितना जटिल होता, इस बात की सहज ही कल्पना की जा सकती है। वर्तमान समय में नामकरण प्रणाली को वर्गीकरण कहा जाता है, आज जीव विज्ञान हो या फिर वनस्पति विज्ञान दोनों ही विषयों में जीवों और वनस्पतियों का अध्ययन वर्गीकरण के आधार पर किया जाता है।
लीनेयस के जैव वैज्ञानिक वर्गीकरण में भारत की उल्लेखनीय उपस्थिति:
लीनियस ने प्रजनन अंगों के आधार पर वनस्पतियों के लिए जैव वैज्ञानिक वर्गीकरण प्रस्तावित किया, और लगभग 7700 प्रजातियों के पौधों को नाम दिया जिसमें से कई सौ भारत से थे। उन्होंने भारत और इसकी आस्था, संस्कृति, भाषाओं, राज्यों, कस्बों, नदियों, पौधों जो भोजन और दवा के रूप में उपयोग किये जाते हैं, को नामकरण प्रणाली का आधार बनाया।
भारतीय पौधों के लिनेयन नामों में जेनेरा और प्रजातियों के नामों का एक महत्वपूर्ण विश्लेषण भारत के संदर्भ को दिखाता है। भारतीय संस्कृति, आस्था, स्थानीय नामों, नदियों, राज्यों, और दैनिक जीवन को संदर्भित करने वाले लिनेयन पौधों के नामों के कुछ उदाहरण नीचे सूचीबद्ध किए गए हैं:
1. अरेका एल (Areca L.) : ‘अताका (Atakka)’ केरल में मलयालम नाम हैं, जिसका प्रयोग अरेका कटेचु एल के लिए किया जाता है।
2. ऐवेना एल (Avena L.) : लैटिन 'ऐवेना (avena)', संस्कृत शब्द ‘अव’ से लिया गया।
3. बैसेला एल (Basella L.) : यह शब्द ‘वसला (Vasala)’ से लिया गया है जो केरल में बैसेला रूब्रा एल (Basella rubra L.) के लिए मलयाली नाम है।
4. कैपेरिस एल (Capparis L.) : ‘कब्र’, उर्दू शब्द है। कैपेरिस स्पिनोसा एल (Capparis spinosa L.) के मसालेदार फूलों की कलियों को कैपर्स (Capers) के रूप में जाना जाता है।
5. फायकस रिलीजियसा एल (Ficus religiosa L.) : यह भारतीय धर्मों के साथ जुड़ा हुआ है, विशेष रूप से हिन्दू और बौद्ध धर्म के विश्वास से।
6. ओसिमम सेंकटम एल (Ocimum sanctum L.) : यह एक पवित्र पौधा है।
• भारतीय भाषाओँ से संदर्भित नाम
1. अमोमम कार्डामम एल (Amomum cardamom L.) : एलेटेरिया कार्डामम (Elettaria cardamomum) असल में इलाइची है जिसे मलयालम में 'एलेटारी' (Elettari) कहा जाता है।
2. अवरोहा बिलिंबी एल (Averrhoa bilimbi L.) : बिलिंबी (Bilimbi) मलयालम में एक पौधे का नाम है।
3. एविसेनिया ओपाटा एल (Avicennia oepata L.) : 'ओपाटा' (oepata) मलयालम में एक पौधे को कहा जाता है।
4. कैपेरिस बदुक्का एल (Capparis baducca L.) : 'बदुक्का' (baducca) मलयालम में एक पौधे को कहा जाता है।
• इंडिया: निम्नलिखित पौधों में इंडिका (Indica) शब्द इंडिया (India) को दर्शाता है:
1. अकलायफा इंडिका एल (Acalypha indica L.)
2. एजिनेटिया इंडिका एल (Aeginetia indica L.)
3. एशिनोमीन इंडिका एल (Aeschynomene indica L.)
4. आइरा इंडिका एल (Aira indica L.)
5. एलोपेक्युरस इंडिकस एल (Alopecurus indicus L.)
6. एंथोक्सेंथम इंडिका एल (Anthoxanthum indica L.)
• क्षेत्रों से संदर्भित नाम
1. कन्वोलुवोलस मालाबारिकस एल (Convoluvolus malabaricus L.) : मालाबारिकस, पश्चिमी प्रायद्वीप के तटीय क्षेत्र मालाबार से लिया गया है।
2. मालवा कोरोमंडलियाना एल (Malva coromandeliana L.) : कोरोमंडल प्रायद्वीप पूर्वी क्षेत्र है।
• राज्यों से संदर्भित नाम:
निम्नलिखित नाम भारत के राज्य बंगाल से लिए गए हैं:
1. बैनिस्टरिया बेंगालेंसिस एल (Banisteria bengalensis L.)
2. कोमेलिना बेंगालेंसिस एल (Commelina benghalensis L.)
3. फायकस बेंगालेंसिस एल (Ficus bengalensis L.)
4. इलेसेब्रम बेंगालेंस एल (Illecebrum bengalense L.)
उपरोक्त नामों में विशिष्ट नामों की सबसे बड़ी संख्या भारतीय नामों पर आधारित है। यह स्वाभाविक था क्योंकि लिनेयस पूरी दुनिया के नमूनों की जाँच कर रहे थे, और उन्होंने पहले ही भारत के पौधों को विशिष्ट नाम इंडिका, इण्डिकम या इंडिकस देने का निश्चय कर लिया होगा। जब ये नाम पहले ही उस जाति में थे तो उन्होंने, पौधों को अन्य रूपात्मक विशेषताओं के आधार पर नाम दिये। वर्तमान में किसी भी जीव या वनस्पति को परिभाषित करते समय सबसे पहले उसके वर्गीकरण का ही ज़िक्र किया जाता है। लिनेयस द्वारा दी गई वर्गीकरण व्यवस्था चिकित्सा जगत में भी काफी मददगार साबित हुई और चिकित्सा विज्ञानी जीव-जन्तुओं तथा पेड़-पौधों के वर्गीकरण के आधार पर बहुत सी खोज करने में कामयाब रहे। आज पेड़-पौधों को समझने का काम वर्गीकरण के ज़रिए ही किया जाता है।
संदर्भ:
1. https://bit.ly/2CgtWlF
2. https://bit.ly/2DYJTNV
3. https://bit.ly/2JtJlDe
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