मुबारकपुर भारतीय राज्य उत्तर प्रदेश के आज़मगढ़ जिले का एक शहर और नगरपालिका बोर्ड है। यूं तो ये आज़मगढ़ जिले के अंतर्गत आता है, परन्तु इसकी नींव जौनपुर के ही एक राजा ने रखी थी। यह मानिकपुर कारा (प्रतापगढ़) के शेख जमींदार राजा मुबारक शाह के नाम पर बसाया गया था। 15 वीं शताब्दी (575 वर्ष पूर्व) के दौरान राजा मुबारक अली शाह खेता सराय जौनपुर से इस क्षेत्र आये तथा मुबारकपुर की नींव रखी। पहले इस शहर को कासिमाबाद के नाम से जाना जाता था जो कि एक मुस्लिम जमींदार क़सीमा बीबी के नाम पर रखा गया। यह शहर अक्सर पड़ोसी क्षेत्रों के राजाओं के आक्रमण का केंद्र रहा तथा साथ ही साथ यह शहर टौंस नदी से लगातार बाढ़ से भी बुरी तरह प्रभावित हुआ था। हालांकि राजा मुबारक द्वारा सभी आक्रमणों को रोका गया और क्षेत्र का विकास किया गया।
मुबारकपुर में हथकरघा बुनाई की शुरुआत कैसे हुई, इसका कोई सटीक ऐतिहासिक प्रमाण तो नहीं मिलता लेकिन प्राचीन वैदिक और बौद्धिक साहित्यों के अनुसार हमें इस बात का प्रमाण मिलता है कि 14वीं शताब्दी के दौरान यहां कपास की बुनाई शुरू हो चुकी थी। सरकारी गजट (Gazette) के अनुसार राजा मुबारक के घराने में कई परिवार थे, जिनका पेशा बुनाई का था, तथा यह अनुमान लगाया जाता है कि उन्होंने 16 वीं शताब्दी के दौरान साड़ियाँ और कुछ अन्य पोशाक सामग्री की बुनाई शुरू कर दी थी। एक और प्रमाण हमें प्रसिद्ध लेखक इब्न बतूता के लेखों में मिलता है जिनके अनुसार उच्च गुणवत्ता वाले कपड़े जो मुबारकपुर में बनाये जाते थे ,उन्हें दिल्ली से कई देशों में निर्यात किया जाता था।
मुबारकपुर, जिसे रेशम की बुनाई के लिए जाना जाता है, कढ़ुआ (Kadhua) जरी रूपांकनों के साथ एक भव्य साटन बुनाई पर प्रकाश डालता है। यह जगह बनारसी साड़ियों के निर्माण के लिए जानी जाती है, जो बेहद लोकप्रिय हैं और देश विदेश में निर्यात की जाती हैं। वाराणसी में ब्रोकेड (Brocade) की बुनाई 2 रूपों में की जाती है, 'फेकुआ' और 'कढ़ुआ'। आज यह साड़ियां देश और विदेश में फैशनपरस्त महिलाओं की पसंद बन गयी हैं। इन साड़ियों को पारंपरिक हथकरघा पर बुना जाता है, जिसमें विभिन्न पैटर्न को सुविधाजनक बनाने के लिए सोने या चांदी से बने धागे (जिसे ज़री भी कहा जाता है) का इस्तेमाल किया जाता है। एक रेशम का कपड़ा ताना और बाने के वैकल्पिक परस्पर क्रिया द्वारा बुना जाता है जिसमें एक ब्रोकेड साड़ी पर सोने या चांदी के धागे के एक जोड़ पर कारीगरों द्वारा डिज़ाइन (Design) बनाया जाता है।
बनारसी ब्रोकेड सिल्क साड़ी दो प्रकार की होती है:
कढ़ुआ ब्रोकेड साड़ी:
इस रेशम ब्रोकेड में, अतिरिक्त सोने या चांदी का कपड़ा साड़ी की चौड़ाई में नहीं चलता है। माहिर कारीगर कपड़े की प्रत्येक पैटर्न (Pattern) और आकृति को अलग-अलग बुनते हैं, जिसमें हर कपड़े पर डिज़ाइन का एक अलग रूप बनता है। यह एक बुनाई तकनीक है जो अति सुंदर कढ़ाई को रूप देती है। कढ़ुआ बुनाई के लिए 2-3 या अधिक व्यक्तियों की आवश्यकता होती है। इस तरह की सिल्क ब्रोकेड साड़ी बहुत आरामदायक होती है, क्योंकि कपड़े के पीछे कोई ब्रोकेड धागा नहीं होता।
फेकुआ ब्रोकेड साड़ी:
इस सतत रेशम ब्रोकेड में अतिरिक्त बुनाई एक छोर से दूसरे छोर तक बुनाई पैटर्न बनाते हुए साड़ी की चौड़ाई में चलती है। जब रूपांकन छोटे होते हैं तो ये साड़ी के पीछे की तरफ अतिरिक्त कपड़ा दिखाई देता है। बुनाई के पूरा होने के बाद ये कपड़े सावधानीपूर्वक बुन दिए जाते हैं।
बदलते समय के साथ, मुबारकपुर के उत्पादों में सांगी, गलता, जामदानी और कच्चे कपास से बने उत्पाद भी बदल गए हैं। लेकिन 1940 के दशक में इस क्षेत्र में एक बड़ा बदलाव आया है क्योंकि सिल्क साड़ियों को बनाने की प्रक्रिया अधिक से अधिक ऊंचाइयों पर पहुंच गई है, जिन्हें बनारस के व्यापारियों की सक्रिय भागीदारी के साथ राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय ख्याति मिली है। आज मुबारकपुर, अपनी साड़ी और अन्य कपड़ा सामग्री के लिए जाना जाता है। मुबारकपुर का सबसे प्रसिद्ध क्षेत्र बड़ी उर्जेंटी, पुरारानी, नगरपालिका, हैदराबाद , छोटी उर्जेंटी, अलजामितुल, अशरफिया और जामिया बाद है।
सही प्रचार के साथ, खेती से होने वाली आय के अलावा यह कला जौनपुर एवं उसके आस-पास के क्षेत्र के लिए काफी लाभदायक हो सकती है।
संदर्भ:-
1. https://bit.ly/2vuW2pl
2. https://en.wikipedia.org/wiki/Mubarakpur
3. http://zillaazamgarh.blogspot.com/2012/08/mubarakpur.html
4. https://bit.ly/2WiSty7
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