किसी भी देश का राष्ट्रीय वृक्ष उसके गौरव का प्रतीक होता है और उस देश की पहचान का अभिन्न अंग होता है। भारत का राष्ट्रीय वृक्ष बरगद है, जिसे औपचारिक रूप से फिकस बेंघालेंसिस(ficus Benghalensis) के नाम से जाना जाता है ।अपने बड़े आकर, औषधिय गुण तथा छाया प्रदान करने की क्षमता इत्यादि विशेषताओं के कारण सदियों से भारत के ग्राम समुदायों के लिए एक केंद्रीय बिंदु रहा है। यह समय के साथ काफी विशाल होता जाता है तथा इसका जीवन बहुत लम्बा होता है जिस कारण इसे अमर वृक्ष भी माना जाता है।
बरगद के पेड़ दुनिया में सबसे बड़े पेड़ों में से एक होते हैं और यह 20-25 मीटर तक कि उचाई तक बढ़ते हैं । इनकी जड़े बहुत शक्तिशाली होती हैं जो कभी-कभी कंक्रीट(concrete) और पत्थरों जैसी बहुत कठोर सतहों में भी दरार पैदा कर देती है। इसकी पत्तियां मोटी व चमकदार होती है तथा फूल एक विशेष प्रकार के पुष्पक्रम के भीतर बढ़ते हैं जिसे हाइपानथोडियम(hypanthodium) कहा जाता है जो अंजीर के पारिवारिक पेड़ों की विशेषता है। प्रारंभ में इस वृक्ष को उगने के लिए उच्च नमी की आवश्यक्ता होती है लेकिन एक बार स्थापित होने के बाद यह सूखा प्रतिरोधी होता है।
आर्थिक मूल्य
बरगद के पेड़ के फल खाने योग्य और पौष्टिक होते हैं। इनका उपयोग सूजन तथा जलन को कम करने के लिए भी किया जाता है तथा रक्तस्राव को रोकने के लिए छाल और पत्ती के अर्क का उपयोग किया जाता है। पत्ती की कलियों का उपयोग दस्त / पेचिश के इलाज के लिए किया जाता है। वनस्पति-दूध जिसको लेटेक्स(latex) बोलते है, की कुछ बूँदें बवासीर से राहत देने में मदद करती हैं।मसूड़ों और दांत सम्बन्धी समस्याओं के उपचार के लिए पेड़ की जड़ो का इस्तेमाल किया जाता है । गठिया, जोड़ों के दर्द के इलाज के लिए, साथ ही घावों और अल्सर को ठीक करने के लिए लेटेक्स(latex) का उपयोग फायदेमंद होता है। बरगद के पेड़ से उत्पादित शेलैक का इस्तेमॉल सतह पॉलिश(Surface polish) और गौंद के रूप में किया जाता है।इससे निकलने वाले पौधों के रस का उपयोग पीतल या तांबे जैसी धातुओं को चमकाने के लिए किया जाता है तथा लकड़ी का उपयोग अक्सर जलाऊ लकड़ी के रूप में किया जाता है।
ज्यादातर पौधे दिन में बड़े पैमाने पर कार्बन डाइऑक्साइड(Carbon dioxide) लेते हैं और ऑक्सीजन(oxygen) छोड़ते हैं (प्रकाश संश्लेषण की प्रक्रिया)तथा रात के दौरान ऑक्सीजन लेते हैं और कार्बन डाइऑक्साइड CO {-2} छोड़ते हैं। कुछ पौधे जैसे कि पीपल तथा बरगद अपने एक प्रकार के प्रकाश संश्लेषण (photosynthesis) की क्षमता जिसे क्रसुलैशियन एसिड मेटाबॉलिज्म (Crassulacean Acid Metabolism-CAM) कहते है रात में भी CO {-2} ले सकते है। हालांकि, यह सच नहीं है कि वे रात के दौरान बड़ी मात्रा में ऑक्सीजन छोड़ते हैं। CAM पौधों में होने वाले प्रकाश संश्लेषण मार्गों के तीन प्रकारों में से एक है; अन्य दो C3 और C4 रास्ते हैं। इनमें से C3, पौधों में सबसे आम है। CAM मुख्य रूप से रेगिस्तानी पौधों और एपिफाइट्स(epiphyte) होते हैं यानि वो पौधे जो अन्य पौधों पर निर्भर रहते हैं, ऐसा आमतौर पर बड़े पेड़ में होता है।
रात के समय, जब तापमान कम होता है और नमी अधिक होती है, CAM पौधे अपना स्टोमेटा(stomata) खोलते है तथा CO {-2} लेते है।परन्तु दिन के समय पानी के नुकसान को कम करने के लिए यह अपना स्टोमेटा बंद ही रखते है। यह पेड़ अपने मूल निवास स्थान में एक हेमी-एपिफाइट(Hemi-epiphyte) होता है और अन्य पेड़ों पर एक एपिफाइट के रूप में विकसित होते हैं और फिर जब मेजबान-पेड़ मर जाते हैं, तो वे अपनी जड़े मिट्टी मे स्थापित कर लेते है । यह देखा गया है कि जब वे एपिफ़ाइट के रूप में रहते हैं, तो वे कार्बोहाइड्रेट(carbohydrate) का उत्पादन करने के लिए CAM मार्ग का उपयोग करते हैं और जब वे मिट्टी पर रहते हैं, तो वे सी 3(C3) प्रकार के प्रकाश संश्लेषण का उपयोग करते हैं।
इसलिए, पीपल के पेड़ का रात में CO {-2} का निस्तार करना इस बात पर निर्भर करता है कि वे एपिफीथिक(epiphytic) हैं या नहीं। अन्य रूप में भी यह इस बात पर निर्भर करेगा कि उनके पास पर्याप्त पानी है या नहीं, या अन्य पर्यावरणीय कारक।
सन्दर्भ:
1. https://bit.ly/2PwUSTv,br>
2. https://www.culturalindia.net/national-symbols/national-tree.html
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