शिक्षा, संस्क़ृति, संगीत, कला और साहित्य के क्षेत्र में अपना महत्वपूर्ण स्थान रखने वाले जनपद जौनपुर में हिन्दू-मुस्लिम साम्प्रदायिक सद्भाव का जो अनूठा स्वरूप शर्कीकाल में विद्यमान रहा है और उसकी गंध आज भी विद्यमान है। कहते है कि शिक्षा एक जरूरत ही नहीं बल्कि एक आवश्यकता है और दिल्ली सल्तनत के समस्त प्रांतों में से शिक्षा के क्षेत्र के जौनपुर का मान सबसे उल्लेखनिय है। यहां पर छात्रों को ललित कलाओं के प्रशिक्षण के साथ साथ धर्म शास्त्र, इतिहास, गणित, छन्दशास्त्र और लेखन कला का भी ज्ञान दिया जाता था।
शोधकर्ता काशी नाथ सिंह के द्वारा 2017 में इतिहास विभाग के अंतर्गत पी. एच. डी. की उपाधि के लिये किये गये शोध “शर्की राजवंश का स्वर्णिम युग (इब्राहिम शाह शर्की का विशेष संदर्भ में) 1401-1440 ई. तक” से पता चलता है कि मुगल सम्राट शाहजहां के काल से ही यहां शिक्षा को बहुत महत्व दिया जाता था, उन्होंने इस बात से प्रभावित होकर जौनपुर को शिराज़-ए-हिन्द नाम प्रदान किया। यहां के सभी शासकों ने शिक्षा और विज्ञान को राजकीय संरक्षण प्रदान किया। उस समय उच्चतर शिक्षा प्राप्त करने के लिये समस्त भागों से छात्र यहां आते थे। यहां तक की अफगानिस्तान और बुखारा के छात्र भी यहां शिक्षा ग्रहण करने आते थे। यहां के विद्वान शिक्षकों में से ज्यादातर शिक्षकों ने अपनी शिक्षा अरब, फारस, ईराक तथा ईरान से प्राप्त की थी और जौनपुर में आकर स्थायी रूप से रहने लगे थे।
सुल्तान इब्राहिम शर्की खुद एक महान शिक्षा और साहित्य के संरक्षक थे, उनके शासन काल में यहां शैक्षिक प्रतिष्ठा से प्रभावित होकर शेख अल्लाहदाद जौनपुरी, जाहिर दिलावरी, मौलाना अली अहमद, मौलाना हसन बख्शी और नूरूलहक जैसे विद्वान व्यक्ति जौनपुर आये थे। सुल्तान के शासन काल में काजी शिहाबुद्दीन दोलताबादी बहुत विद्वान पुरूष थे जिन्होने जौनपुर के शिक्षा को समृद्ध बनाया। इब्राहिम शाह ने जौनपुर के सभी विद्वानों के लिये 100 से भी ज्यादा मस्जिदों, मदरसों और मठों का निर्माण करवाया था, जहां छात्रों को शिक्षा दी जा सके। सुल्तान हुसैन शाह शर्की ने भी जौनपुर में शिक्षा के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान दिया, उन्हें कला एवं साहित्य का संरक्षक माना जाता था। इतना ही नही जौनपुर को स्त्री शिक्षा के एक महत्वपूर्ण केन्द्र के रूप में भी जाना जाता था। स्त्री शिक्षा के क्षेत्र में महमूद शाह शर्की की विदुषी पत्नी बीबी राजी का नाम सबसे उल्लेखनिय है। उन्होंने 15वीं शताब्दी के मध्य एक जामा मस्जिद और उसके साथ एक मठ का निर्माण करवाया था जिसका नाम “नमाजगाह” रखा गया था।
इसके अलावा जौनपुर में स्थित मुनिम खां का मदरसा भी शिक्षा के लिये बहुत प्रसिद्ध था, यहां देश के विभिन्न भागों से छात्र शिक्षा ग्रहण करने आते थे। जौनपुर के शिक्षा के क्षेत्र में कई शैक्षिक विभूतियों का योगदान रहा है। जिनमें जौनपुर और जफराबाद के अरबी – फारसी एवं हिंदी के प्रसिद्ध विद्वान निम्नलिखित है:
जौनपुर के अरबी और फारसी के विद्वान—
1. मौलाना शर्फउद्दीन लाहौरी- यह मौलाना जौनपुर के प्रारम्भिक विद्वानों में गिने जाते है। इनकी रचनाओं में शरह-ए-काफिया-ए-नह़्व, शरह-ए-अजूदी पद टीका एंव तफसीर-ए-बजदवी पर हाशिया प्रमुख है।
2. काजी नासिर उद्दीन गुम्बदी- तैमूर के आक्रमण के समय यह दिल्ली से जौनपुर आये थे जहां शर्की शासकों ने इनका हार्दिक सम्मान किया। जौनपुर के प्रथम शासक ख्वाजाजहॉ सुल्तान-उस़्-शर्क के समय में इन्होंने जौनपुर के काजी का पद ग्रहण किया था।
3. मालिक-उल-उलेमा काजी शिहाबुद्दीन दौलतावदी- काजी शिहाबुद़दीन दौलतावदी इब्राहीम शर्की के समकालीन थें। इनकी बुद्धि प्रखर एंव स्मरण-शक्ति अपार थी।
4. शेख अब्दुल मालिक आदिल- इन्होंने ‘क्राफिया’ पर आलोचनात्मक टिप्पणी लिख कर काजी को भेंट की जिन्होंने इनकी शैक्षिक प्रतिभा से प्रभावित होकर अपने मदरसों में इन्हें प्रधानाचार्य के रूप में नियुक्त किया जहां एक शिक्षक के रूप में इन्होंने महान ख्याति प्राप्त की।
5. मौलाना अलहदाद महशी जौनपुर- कहा जाता है सुल्तान हुसैन शाह शर्की न उन्हें शरह-ए-हिदाया और बजदवी इन दो पुस्तकों के लिखने पर 100 तनका पुरस्कार स्वरूप प्रदान किया था जिसे मौलाना ने अपने छात्रों तथा जरूरतमन्दों पर व्यय किया।
6. काजी निजामुद्दिन केकलानी- ये न्याय कार्य में सदैव निष्पक्ष एंव निर्भीक बने रहे। काजी निजामुद्दीन की रचनाओं को इब्राहीम शाह के आदेशानुसार लिखी गई थी।
7. काजी सलाह उद्दीन खलील- अपने पितामह काजी निजामुद्दीन केकलानी के उत्तराधिकारी की हैसियत से उन्होंने 20 वर्षों तक जौनपुर के काजी का कार्य अत्यन्त योग्यता एंव निष्पक्षापूर्वक निभाया। उनकी दो रचनाएं शरह-उल इशवाह और नजैर-फिल-फारूख सर्वाधिक प्रसिद्ध है।
8. हजरत मौलाना ख्वाजगी- हजरत साहब ईश्वरीय ज्ञान में अदितीय व्यक्ति थे। तैमूर के आक्रमण के समय ये दिल्ली त्याग कर कालपी चले गये थे। इब्राहीम शाह इनकी विद्वत्ता की ख्याति सुन कर इनसे मिलने कालपी गये और उनसे जौनपुर चलने का आग्रह किया।
9. मौलाना समाउद्दीन काम्बोह- तत्कालीन जौनपुर के शासक सुल्तान हुसैन शाह शर्की ने इनसे शिक्षा ग्रहण कर इन्हें जौनपुर के वजीर का पद प्रदान किया। इन्हे अपने समय का सर्वोत्तम विद्वान माना जाता था।
10. मुल्ला अलाउद्दीन अता-उल-मुल्क- ये काजी शिहाबुद्दीन के शिष्य थे। कहा जाता है कि मुल्ला अलाउद्दीन का मस्तिक ‘काफिया’ पढने के पश्चात विभ्रम हो गया। वे इसके तर्क को ठीक रूप से समझ न पाये।
11. मौलाना सफी जौनपुर- ये भी काजी शिहाबुद्दीन के शिष्यों में से थे। बहलोल लोदी ने उनसे सम्मानपूर्वक व्यवहार किया और उनके शैक्षिक ज्ञान से लाभान्वित होते रहे। परवर्ती युग में सिकन्दर लोदी दारा शर्की राज्य में की गयी ध्वसांत्मक कार्यवाही के समय मौलाना साहब ने उन्हें साहसपूर्वक रोका था।
12. शेख अब्दुल समद- ये दिल्ली के प्रसिद्ध काजी अब्दुल मुक्तदिर के पौत्र थे। अब्दुल समद अरबी और फारसी के प्रसिद्ध विद्वान थे।
जफराबाद के अरबी और फारसी के विद्वान—
1. मुल्ला निजामउद्दीन अलामी- यह सैयद परिवार से सम्बन्धित थे और हदीम एवं फिका (इस्लामी न्यायशास्त्र) तथा उसूल (मौलिक विज्ञान) के महान पंडित थे।
2. सैयद नूरउद्दीन अबू मुहम्मद- इन्होंने सांसारिक ज्ञान कयामउद्दीन तथा हदीस की शिक्षा मौलाना निजामुद्दीन अलामी से ग्रहण की थी। वे धर्मशास्त्र के साथ-साथ आध्यात्मिक अनुशासन के भी छात्र थे।
3. मखदमू मुल्ला रूक्नुद्दीन यकलखी- मखदमू आफताप-ए-हिन्द के शिष्य के रूप में ये जफराबाद पधारे थे। ऐसा कहा जाता है कि इनका मुख – मण्डल सदैव आध्यार्मिक ज्योति से चमकता रहता था।
4. सैयद कुतुबुद्दीन अबुल गैब- इन्होंनें सम्पूर्ण कुरान को कंठस्थ किया था। हजरत शाह मदार से प्राप्त ईश्वरीय ज्ञान और भक्ति से उनका ह्दय इतना आलोकित हो गया कि इन्होने सम्पूर्ण सांसारिक वस्तुओं की उपेक्षा कर ईश्वर की उपासना में स्वयं को संलग्न कर दिया।
5. काजी ताजुद्दीन नासेही- ये उच्चकोटि के विद्वन थे और आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्ति के पश्चात ये शिक्षण कार्य में लग गये।
6. मीरान सैयद याकूब शाकी- ये सर्वप्रथम सीरिया (Syria) से भारत आये और मुल्तान में निवास किया। वहां इन्होने मखदमू शेख बहाउद्दीन जकरिया मुल्तानी की समाधि पर श्रद्धांजलि अर्पित की एवं आध्यात्म प्राप्त किया।
7. मुल्ला शेख आधम- इन्होने भी शेख से ‘उत्तराधिकार का वस्त्र’ प्राप्त किया था और तवक्कुल के सिद्धोन्तों का अनुसरण कर सूफी जीवन व्यतीत किया।
8. मौलाना बदरूद्दीन बद्र आलम- इन्होने फिका, उसूल तफसीर, हदीस एवं मनतिक के विद्वान के रूप में हवशेष ख्याति अर्जित की।
9. मौलाना शेख बहराम मतकी- जाफर खॉ की विजय के पश्चात यह जफराबाद में जामी मस्जिद के खातिब (इमाम) नियुक्त हुए।
10. मखदूम शाह मसउद खिलवती- ये शेख जलाल उल हम काजी खॉ नासेही के शिष्य और उत्तराधिकारी थे।
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