क्या सच में अकबर द्वारा सुनाई गयी थी जौनपुर के काजी को मौत की सजा?

मध्यकाल : 1450 ई. से 1780 ई.
20-04-2019 10:00 AM
क्या सच में अकबर द्वारा सुनाई गयी थी जौनपुर के काजी को मौत की सजा?

भारत के महानतम मुगल शासक अकबर द्वारा मुग़ल शक्ति का भारतीय उपमहाद्वीप के अधिकांश हिस्सों में विस्तार तो किया गया था। साथ ही उनके द्वारा अपने साम्राज्य की एकता बनाए रखने के लिए कई ऐसी नीतियाँ अपनाई गईं, जिनसे गैर मुसलमानों की राजभक्ति जीती जा सकती थी। 1579 ई. में अकबर द्वारा महजर अथवा अमोघवृत्त की घोषणा की गई थी, जिसका अर्थ था कि अगर कभी किसी धार्मिक विषय पर कोई वाद-विवाद की स्थिति उत्पन्न होती है तो अकबर का फैसला सर्वोपरि होगा और वही फैसला सबको स्वीकार करना पड़ेगा।

इस घोषणा के बाद अकबर द्वारा धार्मिक मामलों पर चर्चा करने के लिए सभाओं का आयोजन किया गया। इबादत खाना को अकबर द्वारा मूल रूप से सुन्नी मुस्लमानों के धर्म से संबंधित एकत्रित होने और चर्चा करने के लिए बनवाया था। हालांकि, अन्य धर्म संप्रदायों और अनुयायियों के बीच छोटे मतभेद नियंत्रण से बाहर होने पर इबादत खाना को सब के लिए खोल दिया गया। वहाँ मुस्लिम विद्वानों के अलावा हिंदू पंडित, पारसी और जैन साधु भी भाग लेने लगे थे। सभा में भाग लेने वालों द्वारा अपने-अपने दृष्टिकोण व्यक्त किए गए और इससे एक नई प्रथा का आगमन हुआ और इसके साथ ही नीति के विरूद्ध कई नए विरोधी भी उभरने लगे।

जब इन सभाओं और नए फरमान की खबरें फैली तो इससे कई मुसलमानों में खलबली मच गई। इन विरोधियों के बारे में डर्क कोलियर (Dirk Collier) की पुस्तक ' द ग्रेट मुगल्स एंड देयर इंडिया (The Great Mughals and their India)' और रज़ीउद्दीन एक्विल की पुस्तक ‘द मुस्लिम क्वेश्चन: अंडरस्टैंडिंग इस्लाम एंड इंडियन हिस्ट्री (The Muslim Question: Understanding Islam and Indian History)’ में भी उल्लेख किया हुआ है। जो कुछ इस प्रकार है:

द ग्रेट मुगल्स एंड देयर इंडिया के मुताबिक इस नई नीति की आलोचना सबसे पहले जौनपुर के क़ाज़ी मुल्ला मुहम्मद यज़ीदी द्वारा इस नई नीति की बुराई करते हुए फतवे के जरिए की गई थी। काजी और उनके साथियों को दरबार में पेश होने के लिए फरमान भेजा गया, फरमान में किसी भी आधिकारिक कारण का उल्लेख नहीं किया गया था, लेकिन इसमें कोई संदेह नहीं था कि अकबर विद्रोह के दौरान उनके विश्वासघाती रवैये के लिए उन्हें अदालत में बुलाना चाहते थे। लेकिन इस बात की जाँच होने से पहले ही उन विद्वानों की फतेहपुर सीकरी जाते समय रास्ते में ही नाव के अचानक डूबने के कारण मौत हो गई थी।

वहीं दूसरी ओर द मुस्लिम क्वेश्चन: अंडरस्टैंडिंग इस्लाम एंड इंडियन हिस्ट्री (The Muslim Question: Understanding Islam and Indian History)’ के मुताबिक कोई भी व्यक्ति चाहे वह मुल्ला हो या विद्वान, यदि वह अकबर के विरूद्ध कुछ भी बोलते थे तो अकबर उन्हें काफी कठोर डंड देते थे। यहां तक की इस पुस्तक में यह उल्लेख है कि मुहम्मद यज़ीदी और उनके साथियों की नाव अकबर द्वारा ही डुबाई गई और हाजी इब्राहिम को उम्र भर के लिए रणथंभौर किले में कैद करवा दिया गया था। हाजी इब्राहिम को फारसी लेखक के रूप में जाना जाता था। उन्होंने अकबर के शासन काल के दौरान संस्कृत ग्रंथों का फारसी में अनुवाद किया था।

संदर्भ :-

1. https://bit.ly/2Gyp6Tj
2. https://bit.ly/2DkdTUg
3. https://bit.ly/2Xiv4go