कैसे फैलती हैं जाली सूचनायें?

जौनपुर

 02-04-2019 07:30 AM
संचार एवं संचार यन्त्र

आज कल सोशल मीडिया प्लैटफॉर्म (Social Media Platform) जैसे फेसबुक (Facebook) और व्हाट्सएप (Whatsapp) का तो सभी इस्तेमाल करते हैं। इस तरह के मैसेजिंग ऐप (Messaging App) पर रोजाना करोड़ों उपभोक्ता संदेश भेजते हैं। लेकिन इसी के साथ कई तरह के नुकसान भी इनसे जुड़े हैं, कई बार तो ये खबरें हिंसा का कारण भी बन चुकी हैं। भारत में इंटरनेट (Internet) उपभोक्ताओं को सोशल मीडिया पर जाली खबरों का सबसे अधिक सामना करना पड़ता है। भारत में जाली खबरों का प्रसार वैश्विक औसत से कहीं ऊंचा हैं। अक्सर लोग जांचने-परखने का कोई प्रयास किए बगैर ही जाली खबरों खासकर के ‘राष्ट्र निर्माण’के उद्देश्यों से राष्ट्रवादी संदेश वाली जाली खबरों को साझा कर देते हैं।

इंटरनेट एंड मोबाइल एसोसिएशन ऑफ इंडिया (IAMAI) और फैक्टली मीडिया एंड रिसर्च (पब्लिक डेटा जर्नलिज्म प्लेटफॉर्म)(Public Data Journalism Platform) के एक सर्वेक्षण के मुताबिक सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर जाली खबरों का असर अधिकतर 20 साल से कम उम्र के लोगों और 50 साल से अधिक उम्र के लोगों पर पड़ता है, ये बिना सोचे समझे ही इन पर यकीन कर लेते हैं और इन जाली खबरों को आगे साझा कर देते हैं। परंतु सवाल उठता है कि लोग सोशल मीडिया पर जाली खबरों को क्यों साझा करते हैं? क्या बढ़ता हुआ राष्ट्रवाद लोगों को जाली खबरें साझा करने के लिए प्रेरित कर रहा है? तो चलिये जानते है इनके जवाब।

हाल ही में बीबीसी द्वारा भारत में किए गए शोध में पाया गया है कि देश में राष्ट्रवाद का बढ़ता चलन जाली खबरों का एक महत्वपूर्ण घटक है। बीबीसी ने भारत, केन्या और नाईज़ीरिया में आम नागरिकों द्वारा जाली खबरें फैलाने के तौर तरीकों पर सघन अध्ययन के बाद यह निष्कर्ष निकाला कि जाली खबरें और गलत सूचनाएं चैट ऐप (Chat App) के माध्यम से फैल रही है और इस तरह की ख़बरें साझा करने से गंभीर समस्याएं सामने आ रही हैं। बीबीसी के अध्ययन में यह भी पाया गया कि भारत में लोगों द्वारा व्हाट्सएप से राष्ट्रवाद से संबंधित लगभग 30% ख़बरें साझा की गई थी। जबकि, लगभग 23% करंट अफेयर्स और लगभग 36% विभिन्न घोटालों से संबंधित थी।

इस अध्ययन में यह भी कहा गया कि भारत में लोग राष्ट्रवादी संदेशों को साझा करने को अपना कर्तव्य समझते हैं और साथ ही साथ धार्मिक कर्त्तव्य के रूप में लोग अपने धर्म से सम्बंधित जाली खबरें बिना जांचे-परखे साझा कर देते है। इन संदेशों को साझा करते समय लोग महसूस करते हैं कि वे राष्ट्र निर्माण कर रहे हैं। परंतु क्या आपने इन खबरों को साझा करने से पहले कभी भी ये जानने की कोशिश की है कि इनमें कितनी सच्चाई है और इन जाली खबरों से किसको क्या लाभ होता है? दरअसल इन खबरों से अक्सर एक वेबसाइट का विज्ञापन जुड़ा होता जिसे खोलने पर उस वेबसाइट को लाभ होता है। बदले में कुछ वेबसाइट व्यक्तिगत विवरण भरने के लिए उपयोगकर्ता डेटा एकत्र करती है। कई बार इस खबरों के पीछे का मकसद राजनीतिक दल या किसी राजनीतिक व्यक्ति की छवि सुधारना या बिगाड़ना भी होता है। कई बार तो इन खबरों से हिंसक वारदातें भी हुई है और कई बार धर्म तथा जाति के नाम पर लोगों को भड़काया भी जा चुका है। 2017 के बीबीसी के अध्ययन बताया गया कि 83% भारतीय उपभोक्ता जाली खबरों से परेशान थे, क्योंकि उन खबरों में से लगभग 72% खबरें अपनी वास्तविकता से अगल ही निकलती थी।

डिजिटल सशक्तिकरण फाउंडेशन (डीईएफ) द्वारा आयोजित 2018 के एक अध्ययन से ये बात सामने आयी कि ये अफवाहें छोटे शहरों से ज्यादा फैलती है। क्योंकि ग्रामीण उपयोगकर्ता आंख बंद करके किसी भी खबर पर विश्वास कर लेते हैं। डीईएफ ने जाली खबरें फैलाने में व्हाट्सएप की भूमिका को समझने के लिए भारत के 14 राज्यों के 1,081 व्यक्तियों से डेटा एकत्र किया। उन्होंने पाया कि उनमें से 14% लोग व्हाट्सएप से प्राप्त किसी भी जानकारी पर भरोसा नहीं करते जबकि 8% लोगों ने व्हाट्सएप से प्राप्त किसी भी जानकारी पर आसानी से भरोसा कर लिया।

आजकल राष्ट्रवाद को बढ़ावा देने के लिये जाली खबरों का चलन भी बढ़ गया है। इसे रोकने के लिये यदि आपको लगता है कि इन खबरों में कुछ झूठ है तो लोगों से कहिए कि वो जानकारी शेयर करने से पहले उसकी जांच कर ले, मैसेज को सिर्फ इसलिए शेयर न करें क्योंकि कोई आपको शेयर करने के लिए कह रहा है, भले वो आपका मित्र ही क्यों न हों। इसके अलावा भारत में भी जाली खबरों तथा भ्रामक संदेशों के प्रसार को रोकने के लिए व्हाट्सएप द्वारा भी कई प्रयास किये गये हैं। अब व्हाट्सएप से केवल पाँच लोगों को ही संदेश अग्रेषण किये जा सकते है और उन पर अग्रेषण के साथ अग्रेषणकर्ता का चिन्ह भी आता है। परंतु इतना काफी नहीं है, इन जाली खबरों को पूरी तरह से रोकने के लिये जन साधारण को भी पूरी तरह से जागरूक होने की आवश्यकता है।

संदर्भ:
1. https://bit.ly/2PYeBOw
2. https://thewire.in/media/fake-news-india
3. https://bit.ly/2U1dLPL



RECENT POST

  • नटूफ़ियन संस्कृति: मानव इतिहास के शुरुआती खानाबदोश
    सभ्यताः 10000 ईसापूर्व से 2000 ईसापूर्व

     21-11-2024 09:24 AM


  • मुनस्यारी: पहली बर्फ़बारी और बर्फ़ीले पहाड़ देखने के लिए सबसे बेहतर जगह
    पर्वत, चोटी व पठार

     20-11-2024 09:24 AM


  • क्या आप जानते हैं, लाल किले में दीवान-ए-आम और दीवान-ए-ख़ास के प्रतीकों का मतलब ?
    वास्तुकला 1 वाह्य भवन

     19-11-2024 09:17 AM


  • भारत की ऊर्जा राजधानी – सोनभद्र, आर्थिक व सांस्कृतिक तौर पर है परिपूर्ण
    आधुनिक राज्य: 1947 से अब तक

     18-11-2024 09:25 AM


  • आइए, अंतर्राष्ट्रीय छात्र दिवस पर देखें, मैसाचुसेट्स इंस्टिट्यूट ऑफ़ टेक्नोलॉजी के चलचित्र
    वास्तुकला 1 वाह्य भवन

     17-11-2024 09:25 AM


  • आइए जानें, कौन से जंगली जानवर, रखते हैं अपने बच्चों का सबसे ज़्यादा ख्याल
    व्यवहारिक

     16-11-2024 09:12 AM


  • आइए जानें, गुरु ग्रंथ साहिब में वर्णित रागों के माध्यम से, इस ग्रंथ की संरचना के बारे में
    विचार I - धर्म (मिथक / अनुष्ठान)

     15-11-2024 09:19 AM


  • भारतीय स्वास्थ्य प्रणाली में, क्या है आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस और चिकित्सा पर्यटन का भविष्य
    विचार 2 दर्शनशास्त्र, गणित व दवा

     14-11-2024 09:15 AM


  • क्या ऊन का वेस्ट बेकार है या इसमें छिपा है कुछ खास ?
    नगरीकरण- शहर व शक्ति

     13-11-2024 09:17 AM


  • डिस्क अस्थिरता सिद्धांत करता है, बृहस्पति जैसे विशाल ग्रहों के निर्माण का खुलासा
    शुरुआतः 4 अरब ईसापूर्व से 0.2 करोड ईसापूर्व तक

     12-11-2024 09:25 AM






  • © - 2017 All content on this website, such as text, graphics, logos, button icons, software, images and its selection, arrangement, presentation & overall design, is the property of Indoeuropeans India Pvt. Ltd. and protected by international copyright laws.

    login_user_id