जौनपुर सल्तनत द्वारा अपनी स्वतंत्र मुद्रा प्रणाली विकसित की गई थी, लेकिन इस पर ठीक से कोई शोध नहीं हुआ है क्यूंकि शोधकर्ताओं द्वारा जौनपुर सल्तनत का एक महत्वपूर्ण पहलू रही मुद्रा पद्धति को लगभग अनदेखा कर दिया गया। कुछ प्रकाशित सिक्कों के सूचीपत्र और बहुत कम शोध लेखों में विभिन्न शासकों द्वारा जारी किए गए सिक्कों के बारे में बताया गया है। वहीं जौनपुर के सुल्तानों के सिक्के उत्तर प्रदेश और बिहार से भी एक बड़ी संख्या में पाए गए हैं।
फिरोज शाह तुगलक द्वारा अपने चचेरे भाई मलिक जौना की याद में जौनपुर को स्थापित किया गया था। जौनपुर दिल्ली सल्तनत और बंगाल सल्तनत के बीच एक अंतर्रोधी राज्य के रूप में विकसित हुआ। मलिक सरवर को जौनपुर के पहले राज्यपाल के रूप में नियुक्त किया गया था। मलिक सरवर ने अपने राज्यकाल में कोई भी सिक्का पेश नहीं किया था। ऐसा माना जाता है कि मुबारक शाह द्वारा अपने कुछ वर्ष के राजकाल में सर्वप्रथम सिक्के जारी किये गये थे, परंतु इस बात की पुष्टि अभी तक नहीं हुई है।
वहीं जौनपुर के अंतिम सुल्तान हुसैन शाह (ईस्वी 1458-79), जिन्होंने जौनपुर पर इक्कीस वर्षों तक शासन किया था, अत्यधिक महत्वाकांक्षी थे और अपने शासन को दिल्ली तक फैलाना चाहते थे। उन्होंने सबसे पहले उड़ीसा पर आक्रमण किया जो कि निजामुद्दीन अहमद द्वारा किए गए इस घटना के वर्णन से स्पष्ट होता है और साथ ही उड़ीसा से उनके कुछ तांबे के सिक्के भी प्राप्त हुए हैं।
जौनपुर का सबसे पहला सिक्का राजकुमार फिता खान द्वारा संयुक्त रूप से अपने पिता फिरोज शाह तुगलक के साथ जारी किया गया था। यह एक सोने का सिक्का था, जिसमें टकसाल नाम इक़लीम-आई-शरक़ है, इसे शायद जौनपुर की प्रशासनिक इकाई की नींव रखने के लिए जारी किया गया था। साथ ही जौनपुर में अगला सिक्का इब्राहिम शाह द्वारा जारी किया गया था। हालाँकि वे 1402 ईस्वी में शासन करने आए थे, लेकिन उनका पहला सिक्का 1410-11 ईस्वी में जारी किया गया था। इब्राहिम के सिक्के सोने, चांदी, बिलोन और तांबे के थे और उनके शासनकाल में सोने और चांदी के सिक्के बहुत कम थे।
तांबे के सिक्कों ने जौनपुर सल्तनत की प्रमुख मुद्रा का गठन किया। इब्राहिम, महमूद और हुसैन ने बड़ी मात्रा में इन बुनियादी धातुओं में सिक्के जारी किए। वहीं मुहम्मद शाह के सिक्के अन्य सुल्तानों की तुलना में अधिक संख्या में नहीं हैं क्योंकि उन्होंने केवल एक संक्षिप्त अवधि के लिए ही शासन किया था। एच.के. प्रसाद द्वारा 1970 में अपने एक प्रकाशन में पटना म्यूजियम के खज़ाने में मौजूद सिक्कों की फाइलों से सिक्कों के ढेर के बारे में विस्तार से वर्णन किया था। जिसमें उन्होंने बताया कि सिक्कों के आठ ढेर शामिल थे, जो या तो जौनपुर के सुल्तानों से संबंधित थे या वहां के शासकों के पास मौजूद थे। साथ ही दिल्ली, बंगाल, मालवा या आहमनी के अन्य सुल्तानों के भी सिक्के थे।
1911-12 में हाजीपुर से मिले पहले ढेर में तीन सोने और चार तांबे के सिक्के थे। जिनमें से दो सोने के सिक्कों को अलाउद्दीन खिलज़ी द्वारा जारी किया गया था और तीसरा एक पंच-चिन्हित सिक्का था। चार तांबे के सिक्कों में से एक जौनपुर के इब्राहिम शाह द्वारा जारी किया गया सिक्का था। 1915 में दो ओर सिक्कों के ढेर को जमा किया गया था। पहले ढेर में इब्राहिम, महमूद, मुहम्मद और हुसैन का प्रतिनिधित्व करते हुए 164 तांबे के सिक्के भी थे। चूंकि सिक्कों को उनके खोजक के पास वापस कर दिया गया था, इसलिए इनके बारे में अधिक विवरण एकत्रित नहीं किया जा सका। दूसरे ढेर में 18 सिक्के थे, जिनमें से ग्यारह इब्राहिम और सात मुहम्मद के सिक्के थे। वहीं 1917 में रांची में एक छोटे से सिक्कों के ढेर में इब्राहिम के तीन और महमूद के दो सिक्के पाए गए थे।
1939 में रांची से दूसरा सिक्कों का ढेर मिला था। इसमें सोने के बीस सिक्के थे, जिसमें से एक जौनपुर के इब्राहिम शाह का था। साथ ही इससे प्राप्त एक सोने का सिक्का मुगल सम्राट अकबर का प्रतिनिधित्व करता था। दिलचस्प बात यह है कि उस सिक्के का टकसाल जौनपुर था। वहीं 1941 में झारखंड के पलामू में एक धान के खेत से जौनपुर के सभी सुल्तानों के कई सिक्कों का ढेर पाया गया था। इस ढेर में इब्राहिम के 22 और हुसैन के 25 सिक्के थे। महमूद और मुहम्मद के क्रमशः दो और एक सिक्के थे।
संदर्भ :-
1.https://bit.ly/2utGvWn
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