संपूर्ण भारत में होली का त्योहार बड़े हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। इस रंगों और खुशी के त्योहार को मनाने के विभिन्न क्षेत्रों में भिन्न भिन्न तरीके से मनाया जाता है। जिनमें से कई के विषय में आपने भी सुना होगा या उन्हें देखा भी होगा जैसे- बृज की लट्ठमार होली तथा महाराष्ट्र की मटकी फोड़ होली काफी प्रसिद्ध है। पर क्या आपने कभी शमशान घाट में चिता की राख से खेली जाने वाली होली के विषय में सुना है। आज हम आपको मणिकर्णिका घाट पर बनारस में खेली जाने वाली चिता-भस्म होली के विषय में बताने जा रहे हैं।
मणिकर्णिका घाट पर सैकड़ों लोग जलती हुयी चिता के सामने होली मनाते हैं। उत्सव की शुरुआत शमशान घाट में स्थित महाश्मशान नाथ (भगवान शिव) के मंदिर में पूजा के पश्चात होती है। हर-हर महादेव के जयकारे और ढोल की गूंज के बीच महाश्मशान नाथ की पूजा संपन्न की जाती है। मंदिर का गर्भगृह राख से भर दिया जाता है। देवता को राख और लाल गुलाल चढ़ाने के बाद, लोग मंदिर से बाहर आकर सांझ तक 'चिता भस्म' होली खेलते हैं। शमशान में होली खेलना इस ओर संकेत करता है कि यहां उपस्थित लोगों के भीतर मृत्यु का भय समाप्त हो गया है तथा वे अपने मोक्ष की ओर अग्रसर हो गये हैं। यह विचित्र होली विदेशियों को भी अपनी ओर आकर्षित करती है।
पौराणिक कथाओं के अनुसार, भगवान शिव ने अपने भक्तों के साथ काशी विश्वनाथ मंदिर में अपने 'गौना' (एक शादी की रस्म) के अवसर पर होली मनाई थी, जब वह देवी पार्वती के साथ रंगभरी एकादशी के दिन घर वापस आए थे। रंगभरी (होली का पहला दिन) के दिन भगवान शिव अपने भक्तों के साथ होली खेल रहे थे। जिस कारण भूतों और दैत्यों को अपने आराध्य के साथ होली खेलने का अवसर नहीं मिल पाया, इसलिए अगले दिन भगवान शिव स्वयं उनके साथ होली खेलने के लिए शमशान घाट गये तथा शमशान की राख से उनके साथ होली खेली।
संदर्भ:
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