वैदिक युग में हुआ था जाति प्रथा का प्रारंभ

जौनपुर

 12-03-2019 09:00 AM
ठहरावः 2000 ईसापूर्व से 600 ईसापूर्व तक

वैदिक युग प्राचीन भारतीय सभ्यता का "वीरतापूर्ण युग" था। इस अवधि में भारतीय सभ्यता की मूल नींव रखी गई थी। साथ ही समाज में जाति व्यवस्था भी उभरी थी। यह अवधि लगभग 1500 ईसा पूर्व से 500 ईसा पूर्व तक चली थी। वेदों के अतिरिक्त संस्कृत के अन्य कई ग्रंथो की रचना भी इसी काल में हुई थी। इतिहासकारों का मानना है कि आर्य मुख्यतः उत्तरी भारत के मैदानी इलाकों में रहते थे इस कारण आर्य सभ्यता का केन्द्र मुख्यतः उत्तरी भारत ही रहा था।

वैआर्य मध्य एशिया के लोग थे, जिनके द्वारा इंडो-यूरोपीय भाषा बोली जाती थी। वे अपने साथ कई देवी-देवताओं की पूजा करने वाला धर्म लाए थे, जिसको मौखिक कविता और गद्य (भजन, प्रार्थना और मंत्र) के संग्रह में दर्शाया गया है, इसे वेद के रूप में जाना जाता है। वैदिक भारत के इतिहास का पुनर्निर्माण पाठ के अंदरूनी विवरणों पर आधारित है। भाषा के आधार पर, वैदिक ग्रंथों को पाँच कालानुक्रमिक वर्गों में वर्गीकृत किया जा सकता है: ऋग्वैदिक, मंत्र भाषा, संहिता गद्य, ब्राह्मण गद्य, सूत्र भाषा, महाकाव्य और पैनीयन संस्कृत।

वैवेद, महाभारत और उपनिषद ने हिंदू धर्म के लेखन का गठन किया, जो धीरे-धीरे वैदिक युग में आकार लेने लगा था। साथ ही आर्यों के देवताओं का महत्व घटने लगा और तीन नए देवताओं (विष्णु; शिव और ब्रह्मा) ने उनकी जगह ले ली थी। वहीं वैदिक समाज अपेक्षाकृत समतावादी था क्योंकि उसमें सामाजिक-आर्थिक वर्गों या जातियों का एक विशिष्ट पदानुक्रम अनुपस्थित था, जिसका वैदिक काल में उदय हुआ था।

वैदिक समाज में ग्राम, विस और जन प्रारंभिक वैदिक आर्यों की राजनीतिक इकाइयाँ थीं। वहीं विस “जन या कृश्ती” का उपखंड था और ग्राम इन दोनों की तुलना में एक छोटी इकाई थी। एक ग्राम और विस के नेता को ग्रामणी और विसपति कहा जाता था। साथ ही राष्ट्र को राजन (राजा) द्वारा शासित किया जाता था, जिसे अक्सर गोपा और कभी-कभार सम्राट के रूप में जाना जाता था और साथ ही राजा को लोगों द्वारा नियुक्त किया जाता था। वहीं वैदिक समाज में विभिन्न प्रकार की बैठकें होती थीं। उपनिवेश के बाहर होने वाली सभाओं में व्रतियों, मवेशियों की तलाश में घुमने वाले ब्राह्मणों और क्षत्रियों का आना प्रतिबंधित था।

पुरोहित और सेना सहित कई पदाधिकारियों के सहयोग के साथ राजा का मुख्य कर्तव्य कबीले की रक्षा करना था। उनकी सेना में धनुष और तीर से सशस्त्र पैदल और रथों वाले सैनिक थे। वहीं राजा द्वारा जासूस और दूत को नियुक्त किया गया था। राजा उन लोगों से कर एकत्र करता था, जिन्हें उसे पुनर्वितरित करना होता था।

वैदिक समय में गृहस्थी पितृसत्तात्मक होती थी और वहीं वैदिक काल में विवाह की प्रथाएं महत्वपूर्ण थी और ऋग्वेद में विभिन्न प्रकार के विवाहों-एकांकी, बहुविवाह और बहुपत्नी का उल्लेख किया गया है। वहीं कई महिला ऋषियाँ और महिला देवियाँ भी होती थी और पुरुष देवताओं के मुकाबले महिला देवियाँ इतनी महत्वपूर्ण नहीं थी। साथ ही वैदिक समाज में महिलाएं अपने पति का चयन स्वयं करती थी और यदि पति की मृत्यु या गायब हो जाएं तो वे दोबारा शादी कर सकती थी। समाज और परिवार में पत्नी को सम्मानजनक पद दिया जाता था। लोगों द्वारा दूध, दूध से बने पदार्थ, अनाज, फल और सब्जियों का सेवन किया जाता था। वैदिक समाज में सोमा और सुरा लोकप्रिय पेय थे, जिनमें से सोम को धर्म द्वारा पवित्र किया गया था।

हालांकि विश्व के अन्य हिस्सों के विपरीत जहां पराजित और विजय के बीच धीरे-धीरे समय के साथ अंतर गायब हो जाता था, भारत में इसने जातियों के बीच विभाजन का रूप ले लिया, और इनके बीच अन्तर्विवाह निषिद्ध था। वहीं जाति व्यवस्था में ब्राह्मण सबसे शीर्ष पर थे और उनके बाद योद्धा जाति, क्षत्रिय आते थे। फिर वैश्य जाति जिसमें सामान्य आर्य आदिवासी, किसान, शिल्पकार और व्यापारी आए। अंत में शूद्र जाति, जिसमें पुरुष कर्मचारी, मजदूर, नौकर को लाया गया। बाद के वैदिक ग्रंथों ने प्रत्येक समूह के लिए सामाजिक सीमाएं, भूमिकाएं, स्थिति और संस्कार पवित्रता को निर्धारित किया था जो निम्न हैं:

ब्राह्मण :- ब्राह्मण को ज्ञान के अवतार के रूप में पूजनीय माना जाता था, साथ ही ये समाज के सभी वर्णों को मुक्त करने के लिए उपदेशों से संपन्न थे। जिन ब्राह्मणों को ब्रह्म ऋषि या महा ऋषि की उपाधियों से सम्मानित किया जाता था, वे राजाओं और उनके राज्यों के प्रशासन को परामर्श देते थे। सभी ब्राह्मण पुरुषों को पहले तीन वर्णों की महिलाओं से शादी करने की अनुमति थी। वहीं मनु स्मृति के अनुसार, एक ब्राह्मण महिला को केवल एक ब्राह्मण से शादी करने की अनुमति थी और वे वर को स्वयं चुन सकती थी। दुर्लभ परिस्थितियों में, महिलाओं को क्षत्रिय या वैश्य से शादी करने की अनुमति थी, लेकिन शूद्र व्यक्ति से शादी करना प्रतिबंधित था।

क्षत्रिय :- क्षत्रियों में राजाओं, क्षेत्रों के शासक, प्रशासक आदि योद्धा आते थे। वहीं एक क्षत्रिय के लिए हथियार, युद्ध, तपस्या, नैतिक आचरण, न्याय और शासन में विद्वित होना चाहिए। सभी क्षत्रियों को कम उम्र में ही ब्राह्मण के आश्रम में सभी आवश्यक ज्ञान से पूरी तरह सुसज्जित होने के लिए भेज दिया जाता था। उनका मौलिक कर्तव्य क्षेत्र की रक्षा करना, हमलों से बचाव करना, न्याय प्रदान करना, सदाचार का पालन करना और आदि था। उन्हें सभी वर्णों की महिला से आपसी सहमति से शादी करने की अनुमति थी। वहीं एक क्षत्रिय महिलाएं पुरुषों के भांति युद्ध से पूरी तरह परिचित होती थी, राजा की अनुपस्थिति में कर्तव्यों का निर्वहन करने के अधिकार रखती थी और राज्य के मामलों में निपुण हुआ करती थी।

वैश्य :- वैश्य जाति के लोग कृषि, व्यापारियों, धन उधारदाताओं और वाणिज्य में शामिल थे। मवेशियों का पालन-पोषण वैश्यों के सबसे सम्मानित व्यवसायों में से एक था। वैश्य महिलाओं द्वारा भी पतियों के व्यवसायों में भी हाथ बटाया जाता था। उन्हें चारों वर्णों में से एक जीवनसाथी चुनने की स्वतंत्रता थी। वैश्य महिलाओं को कानून के तहत संरक्षण प्राप्त था, और अन्य तीन वर्णों की तरह पुनर्विवाह निस्संदेह सामान्य था।

शूद्र :- अंतिम वर्ना एक समृद्ध अर्थव्यवस्था की रीढ़ का प्रतिनिधित्व करता है और वे अपने कर्तव्यों के प्रति श्रद्धापूर्ण आचरण दिखाते थे, वहीं उनके आचरण पर अधिक प्रतिबंध लगाए गए थे। साथ ही उन्हें अन्य वर्णों की तरह पवित्र धागा पहनने की आवश्यकता नहीं थी। एक शूद्र पुरुष को केवल शूद्र महिला से शादी करने की अनुमति थी, लेकिन एक शूद्र महिला को चार वर्णों में से किसी से भी शादी करने की अनुमति थी। शुद्र द्वारा ब्राह्मणों के आश्रमों में, क्षत्रियों के महलों और राजसी शिविरों में और वैश्यों को व्यावसायिक गतिविधियों में सेवा प्रदान की जाति थी।

संदर्भ :-
1. http://www.newworldencyclopedia.org/entry/Vedic_Period
2. https://www.timemaps.com/civilizations/the-vedic-age/
3. https://www.ancient.eu/article/1152/caste-system-in-ancient-india/
4. https://en.wikipedia.org/wiki/Vedic_period



RECENT POST

  • आइए देखें, हिंदी फ़िल्मों के कुछ मज़ेदार अंतिम दृश्यों को
    द्रिश्य 3 कला व सौन्दर्य

     29-12-2024 09:16 AM


  • पूर्वांचल का गौरवपूर्ण प्रतिनिधित्व करती है, जौनपुर में बोली जाने वाली भोजपुरी भाषा
    ध्वनि 2- भाषायें

     28-12-2024 09:22 AM


  • जानिए, भारत में मोती पालन उद्योग और इससे जुड़े व्यावसायिक अवसरों के बारे में
    समुद्री संसाधन

     27-12-2024 09:24 AM


  • ज्ञान, साहस, न्याय और संयम जैसे गुणों पर ज़ोर देता है ग्रीक दर्शन - ‘स्टोइसिज़्म’
    विचार 2 दर्शनशास्त्र, गणित व दवा

     26-12-2024 09:28 AM


  • इस क्रिसमस पर, भारत में सेंट थॉमस द्वारा ईसाई धर्म के प्रसार पर नज़र डालें
    विचार I - धर्म (मिथक / अनुष्ठान)

     25-12-2024 09:23 AM


  • जौनपुर के निकट स्थित काशी विश्वनाथ मंदिर के गहरे अध्यात्मिक महत्व को जानिए
    विचार I - धर्म (मिथक / अनुष्ठान)

     24-12-2024 09:21 AM


  • आइए समझें, भवन निर्माण में, मृदा परिक्षण की महत्वपूर्ण भूमिका को
    भूमि प्रकार (खेतिहर व बंजर)

     23-12-2024 09:26 AM


  • आइए देखें, क्रिकेट से संबंधित कुछ मज़ेदार क्षणों को
    य़ातायात और व्यायाम व व्यायामशाला

     22-12-2024 09:19 AM


  • जौनपुर के पास स्थित सोनभद्र जीवाश्म पार्क, पृथ्वी के प्रागैतिहासिक जीवन काल का है गवाह
    शुरुआतः 4 अरब ईसापूर्व से 0.2 करोड ईसापूर्व तक

     21-12-2024 09:22 AM


  • आइए समझते हैं, जौनपुर के फूलों के बाज़ारों में बिखरी खुशबू और अद्भुत सुंदरता को
    गंध- ख़ुशबू व इत्र

     20-12-2024 09:15 AM






  • © - 2017 All content on this website, such as text, graphics, logos, button icons, software, images and its selection, arrangement, presentation & overall design, is the property of Indoeuropeans India Pvt. Ltd. and protected by international copyright laws.

    login_user_id