हाये रे नारी तेरी यही कहानी
आंचल में है दूध और आंखों में पानी
हम खुद को आधुनिक कहते हैं 21वीं सदी की खुले विचारों वाली दुनिया में रहते हैं किंतु जब महिलाओं की बात आती है तो हमारी आधुनिकता और खुले विचार कहां चले जाते हैं। महिलाओं की दृष्टि से देखा तो हमसे आधुनिक ऋग्वैदिक काल के लोग थे जहां महिलाओं को तत्कालीन सामाजिक कार्यक्रमों और धार्मिक अनुष्ठानों में शामिल होने की स्वतंत्रता थी। वैदिक काल में महिलाओं की शिक्षा का भी प्रावधान था। गार्गी, मैत्रेयी जैसी विदूषी महिलाएं इसका प्रत्यक्ष उदाहरण हैं। और एक आज का समय है जब आदमी अंतरिक्ष तक पहुंच गया है किंतु समाज की स्थिति यह है कि “बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ” के नारे देने पड़ रहे हैं, क्यों समाज के कई हिस्सों में महिलाओं को मात्र एक वस्तु समझा जा रहा है। तो सोचिए क्या सिर्फ मशीनों के निर्माण से ही व्यक्ति आधुनिक हो जाता है, या जिनसे यह समाज बना है उन्हें भी समानता देना आवश्यक है।
महिलाओं और लड़कियों से भेदभाव एक व्यापक और लंबे समय से चलती आ रही घटना है जो हर स्तर पर भारतीय समाज का चित्रण करती है। लैंगिक समानता की दिशा में भारत की प्रगति काफी निराशाजनक है। पिछले कई दशकों में, जहाँ भारतीय जीडीपी में लगभग 6% की वृद्धि हुई, वहीं महिला श्रम बल की भागीदारी में 34% से 27% तक की बड़ी गिरावट हुई। पुरुषों और महिलाओं के वेतन में अंतर 50% पर स्थिर हो गयी थी (एक सर्वेक्षण में व्हाइट कॉलर नौकरियों में 27% लिंग वेतन अंतर पाया गया)। वहीं महिलाओं के साथ होने वाले अपराधों के कारण भी कई महिलाएं शिक्षा और समृद्धि से वंछित हैं। वहीं भारत की कुछ सांस्कृतिक संस्थाएं और पितृसत्तात्मक विचार धारा लैंगिक असमानता को बनाए रखती है। बुढ़ापे में माता-पिता की देखभाल करने के लिए बेटों को अधिक महत्व देने की वजह से बेटियों को प्राथमिकता नहीं मिल पाती है। दहेज प्रणाली भी एक और समाजिक कुरीति है, जिसके चलते दुल्हन और उसके माता-पिता को काफी आर्थिक तंगी का सामना करना पड़ता है। साथ ही महिलाओं को पति और ससुराल वालों द्वारा दहेज संबंधी हिंसा से प्रताड़ित होना पड़ता है। ये प्रथाएं माता-पिता को लड़कियों के स्वास्थ्य और शिक्षा में कम निवेश करने के लिए प्रोत्साहन पैदा करती हैं। 2011 में लिंग निर्धारण को गैरकानूनी घोषित करने के बावजूद भारत में छह वर्ष से कम आयु के प्रति 1000 लड़कों में 919 लड़कियां थीं। महिलाओं की स्थिति सुधारने के लिए निम्न कदम उठाए जा सकते हैं:
महिलाओं को आवाज उठानी होगी
विश्वस्तर या किसी क्षेत्र विशेष पर लिये जाने वाले बड़े फैसले जिनका प्रभाव पुरूष एवं महिलाओं पर समान स्तर पड़ेगा, उनके लिये महिलाओं से विचार विमर्श करना या उनकी राय लेना आवश्यक नहीं समझा जाता। कई बार तो स्थिति यह होती है महिलाओं के लिए बनाये जा रहे कार्यक्रमों और नितियों में उनसे पूछना अनिवार्य नहीं समझा जाता है। यदि संयुक्त राष्ट्र के सहस्राब्दी विकास लक्ष्यों में स्थानीय स्तर की महिलाओं से भी विचार विमर्श किया जाता है तो इसमें शायद महिला शिक्षा को भी जोड़ा जाता।
लड़कियों को मोबाईल फोन का उपयोग करने दें
कंप्यूटर, मोबाईल वर्तमान समय में मूलभूत आवश्यकता बन गया है। लेकिन बुनियादी ढांचे की कमी और आर्थिक तंगी के कारण भारत की अधिकांश लड़कियां इससे वंचित हैं। आज यदि विज्ञान, प्रौद्योगिकी, इंजीनियरिंग और गणित की शिक्षा तक पहुंच और प्रौद्योगिकी में महिलाओं की भूमिका पर बातचीत की जाए तो इसे विशेष महत्व नहीं दिया जाता है। जबकि भारत की बेटी कल्पना चावला, सुनीता अंतरिक्ष तक अपना परचम लहरा चूकि हैं। जिससे इन्होंने यह साबित कर दिया हैं भारत की बेटियां कुछ भी कर सकती हैं बस आवश्यकता है इन्हें अवसर देने की।
बाल विवाह और यौन उत्पीड़न बंद करो
भारत के कई हिस्सों में बाल विवाह लड़कियों की शिक्षा में प्रमुख बाधा है। जिनमें से एक बांग्लादेश भी है यहां 50% से अधिक लड़कियों की शादी 18 वर्ष की आयु से पूर्व कर दी जाती है, और लगभग 30% लड़कियों के 15 से 19 वर्ष की आयु तक एक बच्चा भी हो जाता है। यदि बालिकाओं को पूर्ण शिक्षित करना है, तो बाल विवाह और लड़कियों के यौन उत्पीड़न के विरूद्ध आवाज उठाने की आवश्यकता है। क्योंकि अक्सर माता लड़कियों की सुरक्षा को देखते हुए उनका जल्दी विवाह करवा देते हैं।
माता पिता बेटों से नहीं वरन् बेटियों से अपनी आकांक्षाए बढ़ाएं
हमें ऐसी रणनीतियों को अपनाने की आश्यकता है कि माता-पिता लड़कों के समान ही लड़कियों से भी अपनी महत्वकांक्षाओं को जोड़ें, साथ ही लड़कियों को भी यह अहसास दिलाने की आवश्यकता है कि वे मात्र एक कुशल गृहणी की ही नहीं वरन् एक अच्छे इंजीनियर, डॉक्टर, व्यवसायी की भी भूमिका निभा सकती हैं। हमें लड़कियों की छवि को एक रोल मॉडल के रूप में उभारने की आवश्यकता है, उनके सपनों में विस्तार करने की आवश्यकता है।
महिलाओं के कार्य को उचित मान दिया जाए
वैश्विक अर्थव्यवस्था के विकास में अवैतनिक रूप से कार्य कर रही महिलाएं भी अहम भूमिका निभाती हैं। किंतु इसे अक्सर नजर अंदाज कर दिया जाता है, आज विश्व के ध्यान को इनके कार्य की और आकर्षित करने की आवश्यकता है। साथ ही वैतनिक रूप से कार्य करने वाली महिलाओं को बिना किसी भेदभाव के पुरूषों के समान वेतन और सम्मान देने की आवश्यकता है।
महिलाओं को सत्ता में लाया जाए
देश के उच्च पदों पर महिलाओं को समान स्थान दिया जाए। केवल 10 वर्षों में, दक्षिण एशिया में राष्ट्रीय संसद की सीटों में महिलाओं की संख्या 7% से बढ़कर 18% हो गई। लेकिन अभी भी पुरूषों और महिलओं के मध्य काफी बड़ा अंतर है, अभी भी संसद में हर चार पुरुषों में एक महिला है। महिलाओं को सशक्त बनाने के लिए उन्हें नेतृत्व करने के अवसर दिये जाएं।
महिलाओं को गैर-पारंपरिक व्यवसाय में प्रोत्साहित करें
गैर-पारंपरिक नौकरियों में महिलाओं का समर्थन न केवल उनके जीवन में बदलाव लाने में महत्वपूर्ण है, बल्कि सामाजिक प्रतिबंधों को तोड़ने में भी मदद करता है।
स्पष्ट रूप से महिलाओं को सशक्त बनाने के लिए नीतिगत पहल की आवश्यकता है क्योंकि भारत में लैंगिक असमानता से आर्थिक विकास में भी काफी प्रभाव पड़ता है। महिलाओं के नेतृत्व में कई किशोर लड़कियों और उनके माता-पिता के लिए शैक्षिक और कैरियर की आकांक्षाओं को बढ़ावा दिया जा सकता है।
महिला और बाल विकास मंत्रालय द्वारा लैंगिक समानता / सामाजिक-आर्थिक विकास / महिलाओं के सशक्तिकरण के लिए निम्नलिखित योजनाओं का संचालन किया गया है:
1) स्वाधार और लघु प्रवास गृह को संकट में पड़ी महिलाओं को राहत और पुनर्वास प्रदान करने के लिए बनाया गया।
2) कामकाजी महिला हॉस्टल को अपने निवास स्थान से दूर कामकाजी महिलाओं के लिए सुरक्षित आवास सुनिश्चित करने के लिए बनाया गया।
3) महिलाओं के लिए प्रशिक्षण और रोजगार कार्यक्रम का समर्थन देश भर की गरीब महिलाओं के लिए स्थायी रोजगार और आय सृजन के लिये सुनिश्चित किया गया।
4) राष्ट्रीय महिला कोष को गरीब महिलाओं के सामाजिक-आर्थिक उत्थान के लिए सूक्ष्म-वित्त सेवाएं प्रदान करने के लिए लागू किया गया।
5) महिलाओं के सर्वांगीण विकास को बढ़ावा देने के लिए राष्ट्रीय मिशन को लागू किया गया।
6) कामकाजी माताओं (एकल माँ सहित) के बच्चों के लिए राजीव गांधी राष्ट्रीय क्रेच योजना के तहत 12,000 रुपये से कम की मासिक आय वाले परिवारों के 0-6 वर्ष की आयु वाले 25 बच्चों के समुह के लिए शिशु-गृह की सुविधा प्रदान की गयी है।
7) हिंसा से प्रभावित महिलाओं को एकीकृत सहायता प्रदान करने के लिए वन स्टॉप सेंटर को खोला गया।
8) महिला हेल्पलाइन के सार्वभौमीकरण की योजना को हिंसा से प्रभावित महिलाओं को 24 घंटे तत्काल और आपातकालीन प्रतिक्रिया देने के लिए शुरू किया गया।
9) 11-18 वर्ष की आयु वर्ग में किशोरियों में संपूर्ण रूप से विकास के लिए सबला योजना को लागू किया गया।
10) महिला और बाल विकास मंत्रालय ने लिंग बजट की प्रक्रिया को मजबूत करने के लिए नियमित रूप से प्रशिक्षण कार्यक्रमों / कार्यशालाओं का आयोजन किया है।
महिलाओं के प्रति भेदभाव और जूर्म की समस्या किसी क्षेत्र विशेष में नहीं विश्व स्तर पर है। हमारा जौनपुर शहर भी इससे अछूता नहीं रहा है। अफसोस तो तब होता है जब एक महिला ही दूसरी महिला की अवेहलना करती है, विशेषकर जब पुत्र के जन्म पर जश्न और पुत्री के जन्म पर अफसोस मनाया जाता है। हम महिलाओं के अधिकार की बात करते हैं किंतु जब तक वे स्वयं इसके लिए एकजुट होकर आगे नहीं आएंगी तब तक किसी और से आशा करना भी व्यर्थ होगा।
संदर्भ:
1. https://bit.ly/2H7EROC
2. https://bit.ly/2bpXD5f
3. https://bit.ly/2EHqh0x
4. http://pib.nic.in/newsite/PrintRelease.aspx?relid=132945
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