अधिकांश लोगों द्वारा भगवान के रूप में एक ‘प्रतीक’ की पूजा की जाती है, एक प्रतीक मन को विस्मय से भर देता है और यह निराकार को एक आकार देता है। वहीं शिव का प्रतीक शिवलिंग सबसे सरल, शक्तिशाली और बोधगम्य है। जहाँ शिवलिंग अनंत वास्तविकता का प्रतीक है, वहीं संस्कृत में 'लिंग’ का अर्थ ‘चिह्न’ होता है। उपनिषदों के अनुसार, परलौकिक आत्माओं (शक्तियों) को चित्रित नहीं किया जाता है, जैसा कि हम सब जानते हैं कि अधिकांश भगवानों को किसी ना किसी प्रतीक से संदर्भित किया जाता है।
वैसे ही शिवलिंग भगवान की रचनात्मक और विनाशकारी शक्ति का प्रतीक है। शिवलिंग में मौजूद तीन क्षैतिज रेखाएं हमें भगवान के तीन पहलुओं अर्थात् सृजन, संरक्षण और विनाश की याद दिलाती है। ये रेखाएं शुरुआत के साथ-साथ अंत का भी प्रतीक है।
द्रविड़ों द्वारा सर्वोच्च वास्तविकता के प्रतीक के रूप में शिवलिंग की उत्पत्ति की गयी थी। नर्मदा नदी में पाए जाने वाले संगमरमर जैसे पत्थर ने बहते हुए पानी में एक दीर्घवृत्त का आकार लिया था। एक दीर्घवृत्ताकार एक लम्बी आकृति के आकार का होता है, इसमें केंद्र बिंदु आम गोले के विपरित एक के बजाए दो होते हैं। और यह दीर्घवृत्त शिव-शक्ति का प्रतिनिधित्व करता है। दीर्घवृत्त के दो केंद्र बिंदु, वास्तविक में दो पहलुओं के अनुरूप होते हैं अर्थात शिव (सर्वव्यापी) और शक्ति (प्रकृति) को प्रदर्शित करते हैं।
शिवलिंग दीर्घवृत्त को इस तरह से स्थापित किया गया है कि इसका आधा हिस्सा पृथ्वी में निहित है जबकि दूसरा आधा सतह के बाहर है। सतह के ऊपर दिखाई देने वाला आधा भाग विश्व की दृश्यात्मक प्रकृति की अनेकता (शक्ति) का प्रतिनिधित्व करता है। वहीं सतह के नीचे का आधा भाग अदृश्य बुनियाद है, (जो ऊपरी भाग को समर्थन प्रदान करता है) है।
लिंग के तीन भाग होते हैं, पहला चौकोर तल तीन पौराणिक लोकों को दर्शाता है; दूसरा आठ दिशाओं को दर्शाते हुए एक अष्टकोणीय गोल रूप है, जो विष्णु के स्थान के अस्तित्व या दृढ़ता का प्रतीक है; और तीसरा शीर्ष में गोलाकार छोर के साथ वेलनाकार रूप में ब्रह्मांडीय चक्र पर जटिलता या समाप्ति का प्रतीक है। वहीं शिवलिंग का संपूर्ण स्वरूप ब्रह्मांडीय मंडल का प्रतीक है। शिव के 'उग्र' शक्ति या स्वभाव को शांत करने के लिए शिवलिंग के ऊपर लटके हुए कलश से पानी टपकता है।
वहीं शिवलिंग के पास हमेशा एक धातु के सर्प को देखा जाता है। शिवलिंग पर कुंडलित सर्प छतरी के अनुरूप कार्य करता है। सर्प कुंडलित ऊर्जा का प्रतिनिधित्व करता है। शिव जी का वाहन नंदी (बैल) के शरीर पर हम लिंग के आकार का कूबड़ देखते हैं। पूजा के दौरान इसे स्पर्श करते समय लोगों द्वारा शक्ति और संयम दोनों की तलाश रहती है। नंदी का मुख हमेशा शिवलिंग की ओर होता है, जो मनुष्य की आत्मा का प्रतीक है। साथ ही हमें शिवलिंग और नंदी के बीच में कछुए की छवी भी देखने को मिलती है। कछुए को एक महान अकूपार के रूप में जाना जाता है, जिसकी पीठ में पूरा ब्रह्मांड स्थित है। अकूपार को विष्णु का कूर्म-अवतार भी कहा जाता है।
भगवान शिव विनाश की शक्ति का प्रतिनिधित्व करते हैं जबकि भगवान ब्रह्मा और विष्णु क्रमशः सृजन और रखरखाव की शक्ति का प्रतिनिधित्व करते हैं। ये तीनों शक्तियाँ इस विश्व में सर्वोच्च वास्तविकता की अभिव्यक्ति हैं। वास्तव में ये शक्तियाँ अविभाज्य हैं। दूसरे शब्दों में वे एक ही शक्ति के केवल तीन पहलू हैं। क्योंकि विनाश के बिना कोई नई रचना नहीं हो सकती और ना ही रचना के बिना विनाश हो सकता है। उदाहरण के लिए, जब सुबह ढलती है तो दोपहर का आगमन होता है, वहीं जब दोपहर ढलती है तो शाम का आगमन होता है और जब शाम ढलती है तो रात का आगमन होता है। यह प्रक्रिया चलती रहती है। जन्म और मृत्यु, सृजन और विनाश की इस श्रृंखला में दिन नियत चलते रहते हैं। इस प्रकार तीसरी शक्ति अर्थात् रखरखाव की शक्ति भी अन्य दो शक्तियों (सृजन और विनाश) में उलझी रहती है।
संदर्भ :-
1.https://www.speakingtree.in/blog/shivalingam-the-symbol-of-infinity
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