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भारत के मसालों ने भारत को विश्व में एक अलग पहचान दिलायी है। भारत में सस्ते से सस्ते तथा महंगे से महंगे मसालों का उत्पादन किया जाता है। जिसमें बहुमुल्य केसर भी शामिल है। भारत केसर उत्पादन की दृष्टि से विश्व में तीसरा स्थान रखता है। भारत में केसर की खेती मुख्य रूप से हिमाचल प्रदेश, जम्मू और कश्मीर में की जाती है। केसर विश्व का सबसे कीमती पौधा है जिस कारण इसे रेड गोल्ड भी कहा जाता है।
केसर की उत्पत्ति जंगली केसर के रूप में ग्रीस में हुयी थी। भौगोलिक रूप से स्पेन में केसर की खेती की शुरूआत मानी जाती है किंतु कुछ इतिहासकार ईरान से इसकी उत्पत्ति का दावा करते हैं। 1950 के दशक में स्पेन केसर का सबसे बड़ा केसर उत्पादक देश था, किंतु बाद में किसानों ने कपास उत्पादन की ओर रूख कर लिया। भारत में केसर लाने का श्रेय चीन को दिया जाता है, चीनी चिकित्सा विशेषज्ञों ने केसर के उत्पादन के लिए कश्मीर की भूमि को उप्युक्त समझा। जबकि भारतीय किंवदंतियों के अनुसार दो सूफी पथिक ख्वाजा मासोद वली और शेख शरीफ-उ-दीन वली द्वारा केसर भारत लाया गया। कारण जो भी रहा हो किंतु वर्तमान समय में भारत एक अच्छा केसर उत्पादक राष्ट्र बन गया है।
जंगली केसर का वनस्पतिक नाम क्रोकस कार्ट्राइटियनस (Crocus cartwrightianus) है, इसकी घरेलू किस्म व्यवसायिक केसर है, इसका वनस्पतिक नाम क्रोकस सैटियस (Crocus sativus) है। अपनी उत्पादन प्रणाली के कारण ही केसर विश्व का सबसे महंगा मसाला है। केसर की खेती का सबसे कठिन भाग इसकी कटाई करना है। केसर की खेती बारहमाह की जाती है। इसके लिए मृदा एवं जलवायु महत्वपूर्ण कारक हैं।
आवश्यक कारक
भूमि
केसर की खेती में मिट्टी प्राथमिक आवश्यकताओं में से एक है। यह दोमट, भगवा, रेतीली या शिथिल मिट्टी में उगाया जा सकता है। केसर की खेती के लिए कठोर, मृणमय मिट्टी उपयुक्त नहीं है। केसर के लिए अम्लीय मिट्टी उपर्युक्त है। 5.5 से 8.5 पीएच वाली मिट्टी में इसका अच्छा उत्पादन किया जा सकता है। केसर की खेती के लिए भूमि को तीन बार जोतना अनिवार्य है। पिछली फसल के अपशिष्ट तथा अन्य पत्थर इत्यादि को खेत से साफ किया जाना चाहिए। बार-बार जुताई करने से मिट्टी शिथिल होती है और अधोभूमि की मिट्टी ऊपरी सतह पर आ जाती है तथा इसकी उपजाउ क्षमता में वृद्धि होती है। फार्म यार्ड खाद और जैविक सामग्री को भी खेती से पहले मिट्टी में मिलाया जाना चाहिए। तैयार भूमि में केसर की खेती के लिए एक घनकंद को बो दिया जाता है। अन्य फसलों की भांति केसर को भी खरपतवार प्रभावित करती है। खरपतवार नियंत्रण की सबसे आम विधि पौधों को ढकना है। कुछ स्थानों पर वेदिकाइड (Weedicides ) का भी उपयोग किया जाता है।
जलवायु
केसर की खेती में गर्मीयों में अत्यधिक गर्मी और शुष्कता की तथा सर्दियों के मौसम में अत्यधिक ठंड की आवश्यकता होती है। केसर के लिए सर्वोत्तम जलवायु गर्म, उपोष्णकटिबंधीय है। केसर समुद्र तल से 2000 मीटर की ऊंचाई पर उगाया जा सकता है। इसके लिए 12 घंटे का एक दीप्तिकाल चाहिए अर्थात इसकी सही प्रकार से वृद्धि के लिए 12 घंटे की धूप की आवश्यकता होती है। भारत में, केसर की खेती जून और जुलाई के महीनों के दौरान की जाती है। कुछ स्थानों पर अगस्त और सितंबर में भी इसकी खेती की जाती है। केसर का पौधा अक्टूबर में फूलना शुरू करता है। सर्दियों के दौरान केसर का अच्छा विकास देखने को मिलता है। इस प्रकार कर्नाटक, हिमाचल प्रदेश और जम्मू और कश्मीर का मौसम इसके लिए अनुकुल है।
सिंचाई
केसर की खेती के लिए बहुत अधिक मात्रा में पानी की आवश्यकता नहीं होती है। एक अच्छी फसल के लिए नम मिट्टी ही पर्याप्त होती है। अनियमित बारिश की स्थिति में, छिड़काव सिंचाई प्रणाली बेहतर मानी जाती है। लगभग 283m3 प्रति एकड़ पानी केसर की खेती के दौरान वितरित किया जाना चाहिए। सिंचाई साप्ताहिक आधार पर की जानी चाहिए। जम्मू और कश्मीर के कृषि निदेशालय दस हफ्तों के लिए साप्ताहिक सिंचाई की सलाह देते हैं, जिनमें से पहले सात सप्ताह सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण होते हैं। फूलों की सिंचाई अगस्त के अंतिम सप्ताह से अक्टूबर के मध्य तक की जानी चाहिए। केसर के पौधे की वृद्धि के लिए अंतिम तीन सिंचाई नवंबर माह में की जानी चाहिए।
केसर में कटाई प्रक्रिया श्रमसाध्य और समय लेने वाली है। वास्तव में, यही वह प्रक्रिया है जो केसर को एक महंगा मसाला बनाती है। केसर के पौधे रोपने के तीन से चार महीने के भीतर फूलने लगते हैं। इसलिए, यदि जून में लगाया जाता है, तो स्वभाविक रूप से वे अक्टूबर तक फूलना शुरू हो जाएंगे। इसके फूलों को ही व्यवसायिक रूप से उपयोग किया जाता है। केसर के फूल दिन ढलते ही खिल जाते हैं, इसलिए इसकी कटाई सांयकाल में की जानी चाहिए। फूलों के वर्तिकाग्र (नारंगी और लाल रंग का भाग) को इनसे निकाला जाता है। इस वर्तिकाग्र को पांच दिनों तक धूप में सूखाया जाता है।
जौनपुर के मुफ्तीगंज के पठखौली में एक किसान ने अपनी डेढ़ एकड़ भूमि पर केसर की खेती करके इतिहास रच दिया। इनकी कढ़ी मेहनत के कारण इनकी फसल पुष्पित हो गयी है। इन्होंने केसर की बिक्री के लिए आनलाइन ट्रेडिंग कंपनी इंडिया मार्ट में रजिस्ट्रेशन कराया है। इसके माध्यम से वे अपनी फसल बेचेंगे। दूर दूर से लोग इनकी खेती देखने के लिए आ रहे हैं। इनका यह कदम किसानों के लिए वरदान साबित हो सकता है।
शोध से पता चला है कि एक ही खेत पर बार-बार केसर की खेती मिट्टी को कमजोर बनाती है। दूसरे शब्दों में, इसकी उर्वरकता घटती है। एक बार की केसर की खेती करने के बाद उस भूमि पर 8-10 वर्ष तक केसर की खेती न करने की सलाह दी जाती है। केसर के पौधे की ऊंचाई सामान्यतः 20 सेमी तक बढ़ सकती है। केसर के फूल का रंग बकाइन से बैंगनी होता है। फूलों के लाल रंग के वर्तिकाग्र को काटा जाता है और मसाले के प्रयोजनों के लिए उपयोग किया जाता है। भारत में विशेषकर कश्मीर में केसर की तीन अलग-अलग किस्में उगायी जाती हैं।
1. एक्विला केसर
2. क्रिम केसर
3. लच्छा केसर
केसर का उपयोग बहु क्षेत्रों में किया जाता है: केसर का उपयोग दूध तथा दूध से बनी मिठाई को रंगने और स्वाद देने के लिए किया जाता है। इसके अतिरिक्त पनीर, मेयोनेज़, मांस, आदि में मसाले के रूप में इसका उपयोग किया जाता है। मुगलई व्यंजनों को जायका प्रदान करने में केसर अहम भूमिका निभाता है। चिकित्सीय क्षेत्र में केंसर, गठिया, बांझपन, उष्ण, पाचक, वात-कफ-नाशक, यकृत वृद्धि एवं स्मृति को बढ़ाने हेतु केसर का उपयोग किया जाता है।
संदर्भ:
1. https://www.farmingindia.in/saffron-cultivation/
2. https://www.newsgram.com/saffron-cultivation-in-india
3. https://bit.ly/2EDkD0z
4. https://bit.ly/2tEF8nl