जौनपुर से महज 3 किलोमीटर की दूरी तथा केराकट राजमार्ग-36 में मां शीतला चौकियां धाम स्थित है। यहां श्रद्धालु दर्शन- पूजन कर अपनी मुराद पूरी होने की गुहार लगाने आते है। सोमवार और शुक्रवार को, पूजा करने के लिए यहां काफी संख्या में लोग आते हैं। नवरात्र के दौरान यहां भारी भीड़ जमा होती है। यह पावन स्थान स्थानीय और दूर-दराज से प्रतिवर्ष आने वाले श्रद्धालुओं की आस्था एवं विश्वास का केंद्र है। शीतला चौकियां देवी का मन्दिर बहुत पुराना है। यहाँ शिव और शक्ति की उपासना प्राचीन भारत के समय से चली आ रही है। इस मंदिर को जौनपुर शीतला धाम के नाम से भी संबोधित किया जाता है।
इस मन्दिर के निर्माण का कोई ठोस एतिहासिक प्रमाण नहीं मिलता है, परंतु इसके निर्माण से जुड़ी हई किवदंतियां है। कहा जाता है कि मन्दिर का निर्माण यादवों या भरो द्वारा कराया गया था। हिन्दु राजाओं के काल में जौनपुर का शासन अहीर शासकों के हाथ में था। जौनपुर का पहला अहीर शासक हीरा चन्द्र यादव माना जाता है। इस वंश के लोग अपने नाम के आगे “अहीर” शब्द का प्रयोग करते थे और इन्ही ने अपने वंश-देवता की शान में इस मंदिर का निर्माण कराया था। परंतु ऐसा भी कहा जाता है की भरों की प्रवृत्ति को देखते हुए चौकियां मन्दिर उनके द्वारा बनवाया जाना अधिक युक्तिसंगत प्रतीत होता है। भर अनार्य थे। अनार्यो में शक्ति व शिव की पूजा होती थी। जौनपुर में भरो का आधिपत्य भी था। उन्होने सर्वप्रथम चबूतरे अर्थात चौकी पर देवी की स्थापना करायी होगी, संभवतः इसीलिए इन्हे चौकिया देवी कहा गया। देवी शीतला आनन्ददायनी का प्रतीक मानी जाती है। अत: उनका नाम शीतला पड़ा। मारकण्डेय पुराण में भी शीतला देवी का वर्णन मिलता है। ऐतिहासिक प्रमाण इस बात के गवाह है कि भरों में तालाब की अधिक प्रवृत्ति थी इसलिए उन्होने शीतला चौकिया के पास तालाब का भी र्निमाण कराया।
कुछ लोग यह भी बताते है कि कि देवचंद नाम के एक माली थे जिनके परिवार में शीतला नाम की एक भक्त महिला थी। उसके पति की अल्पायु में ही मृत्यु हो गई। इसके बाद अपने पति के प्रेम में सती हो गई। उसी सती स्थल पर ईट की चौकी तथा पत्थर रखकर देवचंद पूजा-अर्चना करने लगे। यह घटना 1772 के आस-पास की बताई जाती है। धीरे-धीरे यह स्थान एक शक्तिपीठ के रूप में बदल गया। एक अन्य कथानक के अनुसार जब इब्राहिम शाह शर्की ने गोमती नदी के किनारे प्रेमराजपुर स्थित विजय मंदिर जो शीतला देवी का मंदिर था, को गिराने का प्रयास किया तो कुछ हिंदू भक्त शीतला देवी की मूर्ति चुपके से उठा ले गए और जिस स्थान पर वे आज है (देवचंदपुर) उस स्थान पर एक चौकी बना कर स्थापित कर दिया। इस प्रकार समय के साथ ये शीतला देवी मंदिर धार्मिक स्थल के रूप में विख्यात हो गया।
एक अन्य कथा के अनुसार, माँ दुर्गा देवी ने कात्यायनी (ऋषि कात्यायन की बेटी) के रूप में दुनिया में कालकेय द्वारा भेजे गये राक्षसों को नष्ट करने के लिए अवतार लिया था। कात्यायनी के बचपन में कालकेय द्वारा भेजे गये ज्वारासुर नामक एक दानव ने कात्यायनी के बचपन के दोस्तो में लाइलाज बीमारियां जैसे की हैजा, अतिसार, खसरा, चेचक आदि रोगों को फैलाना शुरू कर दिया। इसलिए कात्यायनी ने इन बीमारियों से ग्रस्त अपने दोस्तों का इलाज किया। उसके बाद पूरी दुनिया को बुखार और रोगों से राहत देने के लिए कात्यायनी ने शीतला देवी का रूप धारण किया।
संदर्भ:
1. https://en.wikipedia.org/wiki/Sheetala_Chaukia_Dham_Mandir_Jaunpur
2. https://bit.ly/2EdtZyw
3. https://www.youtube.com/watch?v=TE5SX9dBcCs
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