जौनपुर अपने आप में बहुत से रहस्यों और एक रोचक इतिहास को समेटे हुए है। इसी इतिहास को, काशी नरेश महाराजा विभूति नारायण के दीवान खान बहादुर अली जामिन जैदी की बेटी रबाब जामिन ने अपनी एक पुस्तक “फ्रॉम द डेप्थ ऑफ मेमोरीज- अ फॅमिली सागा” (From the Depth of Memories - A Family saga), में उजागर किया है। यह पुस्तक पिता के लिए एक बेटी की श्रद्धांजलि है। इस पुस्तक में काशी नरेश के दीवान, सैयद अली जामिन जैदी और कजगांव, जौनपुर, मुरादाबाद, बनारस जैसी जगहों के बारे में बहुत सी जानकारी मिलती है।
रबाब जामिन बताती है कि आज़ादी के पहले तक बनारस एक ऐसी रियासत रही है जहां हमेशा से जौनपुर की सय्यद परिवार के दीवान रहे हैं। उनके पिता (जो कि कजगांव के रहने वाले थे) ने अपने करियर की शुरूआत ब्रिटिश भारत सरकार की प्रशासनिक सेवा से की थी, वे डिप्टी कलेक्टर के पद पर नियुक्त किये गये थे। ब्रिटिश सरकार द्वारा उनके पिता को 1939 में खान बहादुर और 1944 में एम.बी.ई. (ब्रिटिश साम्राज्य का सदस्य) की उपाधियों से भी सम्मानित किया गया था। खान बहादुर अली जामिन उस घराने से ताल्लुक रखते थे जिसके पुरखे हमेशा से काशी नरेश के यहाँ दीवान रहे और बनारस के काम काज में अहम् भूमिका निभाते रहे थे।
सन 1939 में काशी नरेश राजा आदित्य नारायण सिंह ने अली जामिन को दीवान काशी नरेश की पेशकश की गई थी। अपने अंतिम समय में राजा आदित्य नारायण सिंह ने दीवान अली जामिन साहब को बुलाया और अपने पुत्र विभूति नारायण का हाथ उनके हाथ में दे दिया और कहा "मैं अपमे बेटे को आपकी सुरक्षा में रख रहा हूँ। कृपया इसके साथ-साथ इसके सिंहासन की भी रक्षा करें।" जुलाई 1947 में विभूति नारायण के हाथ में काशी की सत्ता दे दी गयी। उस समय भारत की रियासतें सीधे तौर पर अंग्रेजों द्वारा शासित नहीं थीं, लेकिन उनके शासक ब्रिटिश क्राउन (British Crown) के अधीन थे।
परंतु भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम ने 1947 में देशी रियासतों पर ब्रिटिश क्राउन की अधीनता को समाप्त कर दिया। अक्टूबर 1947 को महाराजा विभूति नारायण सिंह द्वारा बनारस राज्य को संयुक्त प्रांत के साथ भारतीय राज्य उत्तर प्रदेश में मिला दिया गया। 1948 में अली जामिन को रामनगर में एक सभा को संबोधित करने के दौरान दिल का दौरा पड़ा और उसके बाद अपनी खराब सेहत के कारण उन्होंने त्यागपत्र दे दिया और मुरादाबाद में अपने परिवार के साथ रहने लगे, जहां उनका देहांत हो गया और इसी के साथ बनारस में जौनपुर के सय्यद मुस्लिम दीवान का अध्याय भी ख़त्म हो गया। इनसे पहले सय्यद परिवार से सैयद मोहम्मद नजमुद्दीन (रबाब जामिन के दादा) और मौलाना सैयद गुलशन अली (रबाब जामिन के परदादा) बनारस राज्य में दीवान रह चुके थे। 16 सितम्बर 1948 को दीवान काशी नरेश अली जामिन के त्यागपत्र देने के बाद हादी अखबार ने लिखा कि बनारस राज्य एक हिन्दू राज्य होने के बाद भी यहाँ के दीवान जौनपुर के सय्यद परिवार के हुआ करते थे और सय्यद अली जामिन उनमे से अंतिम दीवान थे।
रबाब जामिन ने अपने बीते हुए दिनों को याद करते हुए बाताया कि एक बार ऐसा हुआ कि, “रामलीला का अवसर था जिसमें महाराजा विभूति नारायण को हाथी पर सबसे आगे सवारी करनी थी लेकिन वे उस समय अजमेर के मायो कॉलेज में पढ़ रहे थे और उनकी अनुपस्थिति में सबसे बड़ा पद दीवान का था और खान बहादुर अली जामिन को सबसे आगे हाथी पर बैठना था लेकिन वो भी उस दिन अनुपस्थिति थे तो रबाब जामिन को दीवान काशी नरेश की पुत्री होने के कारण उन्हें हाथी पर बैठने का अवसर मिला। उन्हें अब तक याद है कि महावत आया और उसने हाथी से बोला “बीबी को सलाम करों” और हाथी ने घुटने पर बैठ के सूंड उठा के उनका माथा छु के सलाम किया और फिर उन्हें हाथी पर बिठाया गया।
संदर्भ:
1. http://jaunpur29.rssing.com/chan-56908392/all_p1.html
2. https://www.jaunpurcity.in/2014/03/old-ramleela-of-benaras-during-life-of.html
3. https://www.youtube.com/watch?v=pAq7GPcDMek
4. https://www.jaunpurcity.in/2014/03/from-depth-of-memories-family-saga-by.html
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