हम में से अधिकतर लोगों का ऐसा सोचना है कि हमारे सोचने की और निर्णय लेने की क्षमता पूर्णतः हमारे मस्तिष्क पर निर्भर करती है, तथा यह सुनने में ठीक भी लगता है, परन्तु यदि कोई आपको कहे कि हमारे शरीर में स्पर्श से होने वाली अनुभूति भी हमारे निर्णय को प्रभावित कर सकती है, तो आप क्या कहेंगे?
जी हाँ, इस विषय में तीन व्यक्तियों, जॉन ए. बार्घ (PhD, येल विश्वविद्यालय), जोशुआ एम. एकर्मन (PhD, एम.आई.टी.) और क्रिस्टोफर सी. नोसेरा (छात्र, हार्वर्ड विश्वविद्यालय) ने 2010 में अपने अनुसन्धान से प्राप्त कुछ निष्कर्ष पेश किये। उनके अनुसार भौतिक अवधारणाएँ जैसे गर्मी-सर्दी, नर्मी-सख्ती, आदि हमारी समझ को प्रभावित कर सकती हैं। यही नहीं, हम इन संबंधों को कई बार हमारी बातों में भी पा सकते हैं, जैसे-
• ‘सख्ती’ और ‘नर्मी’ शब्द किसी वस्तु की सतह और उसकी भौतिक विशेषता की व्याख्या करने के लिए प्रयोग किये जाते हैं, परन्तु हम कई बार इनका प्रयोग किसी व्यक्ति के व्यवहार को स्पष्ट करने के लिए भी करते हैं।
• यदि हम ‘हल्का’ और ‘भारी’ शब्द की बात करें तो यह सीधे-सीधे किसी भौतिक वस्तु के वज़न के माप के लिए प्रयोग किये जाते हैं, परन्तु इन्हें भी कई बार किसी चीज़ की महत्ता दर्शाने के लिए प्रयोग किया जाता है, जैसे- ‘बात में वज़न होने’।
अपने इस अनुसन्धान को साबित करने के लिए तीनों शोधकर्ताओं ने कुछ लोगों के ऊपर कुछ प्रयोग भी किये, जो निम्न हैं:
• नर्म और सख्त कुर्सी का प्रयोग-
इस प्रयोग में सभी लोगों को एक-एक कर एक कुर्सी पर बिठाया गया और सामने वाले व्यक्ति से किसी वस्तु की कीमत पर मोल-भाव करने के लिए कहा गया। कुछ लोगों को नर्म गद्देदार कुर्सी पर बिठाया गया और कुछ को सख्त कुर्सी पर। अंत में देखा गया कि नर्म कुर्सी पर बैठे लोग अधिक मोल भाव नहीं कर पाए परन्तु सख्त कुर्सी पर बैठे लोगों ने काफी हद तक अपनी मनमानी कीमत सामने वाले व्यक्ति से मनवाई।
• हल्के और भारी क्लिपबोर्ड (Clipboard) का प्रयोग-
इस प्रयोग में एक नौकरी के लिए एक व्यक्ति का बायोडाटा (Biodata) तैयार करके सभी लोगों को दिया गया। इस बायोडाटा के कागज़ को एक क्लिपबोर्ड पर लगाकर दिया गया था, जहाँ कुछ क्लिपबोर्ड हल्के थे और कुछ भारी। भारी क्लिपबोर्ड पर बायोडाटा पढ़ने वाले लोगों ने व्यक्ति के बारे में कहा कि वह नौकरी को लेकर गंभीर है तथा एक अच्छा कार्यकर्ता बनेगा।
• गर्म और ठन्डे पेय का प्रयोग-
इस प्रयोग में सभी को एक पेय पिलाया गया, कुछ को ठंडा तो वहीँ कुछ को गर्म। पेय पीने के बाद इन लोगों से बातचीत की गई तो महसूस किया गया कि गर्म पेय पीने वाले लोग अपनी वार्तालाप में ठंडा पेय पीने वालों के मुकाबले अधिक संवेदनशील थे।
इन सभी प्रयोगों से मन और शरीर के बीच सालों से माने जाने वाले द्वंद्व की पुरानी अवधारणाओं के सच नहीं होने का संकेत मिलता है। पूरे अनुसन्धान के अंत में तीनों शोधकर्ताओं का कहना था कि हमारे मन गहरे और व्यवस्थित रूप से हमारे शरीर से जुड़े हुए हैं।
सन्दर्भ:
1. https://www.deseretnews.com/article/700046666/Sense-of-touch-influences-perception-2-and-human-communication.html
2. https://www.webmd.com/balance/news/20100624/sense-of-touch-affects-our-world-view#1
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