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जौनपुर में रहने वाला हर नागरिक ग्रीष्म लहर से वाकिफ होगा लेकिन वास्तव में ये कैसे होती है और इसके लिए कौन से उपाय उचित हैं, इस बारे में भी आपको जानकारी होनी चाहिए। तो आइए जानते हैं ग्रीष्म लहरों के बारे में। ग्रीष्म लहर असामान्य रूप से उच्च तापमान की वह स्थिति है, जिसमें तापमान सामान्य से अधिक रहता है और यह मुख्यतः भारत के उत्तर-पश्चिमी भागों को प्रभावित करता है। ग्रीष्म लहर आमतौर पर मार्च-जून के बीच चलती है और कभी-कभी जुलाई तक भी चलती रहती है। अत्यधिक तापमान और परिणामतः बनने वाली वातावरणीय स्थितियाँ इन क्षेत्रों में रहने वाले लोगों पर प्रतिकूल प्रभाव डालती हैं, जिसके परिणामस्वरूप यह कई बार जानलेवा भी साबित हो जाती हैं।
भारतीय मौसम विभाग ने ग्रीष्म लहर से प्रभावित क्षेत्र के संबंध में निम्नलिखित मानदंड तय किये हैं-
• ग्रीष्म लहर प्रभावित क्षेत्र घोषित किये जाने के लिये किसी क्षेत्र का अधिकतम तापमान मैदानी इलाके के लिये कम-से-कम 40 डिग्री सेल्सियस और पहाड़ी इलाके के लिये कम-से-कम 30 डिग्री सेल्सियस होना चाहिये।
• जब किसी क्षेत्र का अधिकतम तापमान 40 डिग्री सेल्सियस या उससे कम हो, तो ग्रीष्म लहर का सामान्य से विचलन 5 डिग्री सेल्सियस से 6 डिग्री सेल्सियस हो और प्रचंड ग्रीष्म लहर का सामान्य से विचलन 7 डिग्री सेल्सियस या उससे अधिक हो।
• जब किसी क्षेत्र का अधिकतम तापमान 40 डिग्री सेल्सियस से ज्यादा हो, तो ग्रीष्म लहर का सामान्य से विचलन 4 डिग्री सेल्सियस से 5 डिग्री सेल्सियस हो और प्रचंड ग्रीष्म लहर का सामान्य से विचलन 6 डिग्री सेल्सियस या उससे अधिक हो।
• वास्तविक अधिकतम तापमान 45 डिग्री सेल्सियस या उससे अधिक बने रहने पर उस क्षेत्र को ग्रीष्म लहर प्रभावित क्षेत्र घोषित कर दिया जाना चाहिये, चाहे अधिकतम तापमान कितना भी रहे।
ग्रीष्म लहर से स्वास्थ्य पर पड़ने वाले दुष्प्रभावों में सामान्यतः पानी की कमी, गर्मी से होने वाली ऐंठन तथा थकावट और लू लगना आदि शामिल हैं।
• गर्मी से होने वाली ऐंठन - इसमें 39 डिग्री सेल्सियस (यानी 102 डिग्री फारेनहाइट) से कम ताप के हल्के बुखार के साथ सूज़न और बेहोशी जैसे लक्षण दिखाई देते हैं।
• गर्मी से होने वाली थकान - थकान, कमज़ोरी, चक्कर, सिरदर्द, मितली, उल्टियाँ, मांसपेशियों में खिचाव और पसीना आना इसके कुछ लक्षण हैं।
• लू लगना - यह एक संभावित प्राणघातक स्थिति है। जब शरीर का तापमान 40 डिग्री सेल्सियस (यानी 104 डिग्री फॉरेनहाइट) या उससे अधिक हो जाता है तो उसके साथ अचेतना, दौरे या कोमा भी हो सकता है।
• गर्मी के कारण होने वाली सूजन – इसमें अस्थायी रूप से हाथ, पैर और टखनों में सूजन होती है और आमतौर पर एल्डोस्टेरोन स्राव (Aldosterone Secretion) को बढ़ाती है।
• गर्मी से होने वाले चकते – यह आमतौर पर कंटिली गर्मी के रूप में भी जाना जाता है। जिसमें मैक्यूलोपापुलर (Maculopapular) चकते के साथ तीव्र सूजन और अवरुद्ध पसीने की नली के लक्षण दिखाई देते हैं।
25 मार्च 2018 को मुंबई शहर में पारा सामान्य से 8 डिग्री अधिक बढ़ गया था। दिल्ली के राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में भी मार्च में अधिकतम तापमान सामान्य से 5 डिग्री अधिक बताया गया था। इसी तरह की स्थिति जम्मू और कश्मीर, हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड में भी देखी गई थी। वहीं जम्मू और कश्मीर के कई क्षेत्रों में अधिकतम तापमान में 6 डिग्री से अधिक की वृद्धि दर्ज की गई। ग्रीष्म लहरें मुख्य रूप से सार्वजनिक स्वास्थ्य चिंतन का विषय है, क्योंकि ये कई लोगों की मृत्यु का कारण भी बनी है। फरवरी 2018 भारतीय मौसम विभाग की रिपोर्ट के अनुसार 2015 में, ग्रीष्म लहरों के परिणामस्वरूप 2,300 से अधिक लोगों की मृत्यु हुई थी। 1992 से 2015 के बीच, अत्यधिक गर्मी के कारण भारत में 22,500 से अधिक लोगों की मृत्यु हुई। ऐसी स्थिती को कभी-कभी “मूक आपदा” (Silent Disaster) भी कहा जाता है, क्योंकि ये धीरे-धीरे मनुष्यों और वन्यजीवों दोनों के स्वास्थ्य को प्रभावित करता है। हालांकि, भारत सरकार द्वारा ग्रीष्म लहरों को 'प्राकृतिक आपदा' के रूप में वर्गीकृत नहीं किया गया है और 12 आपदाओं की सूची में भी अधिसूचित नहीं किया गया है। ग्रीष्म लहरों से लोगों की मृत्यु हो जाती है इसलिए समय पर ग्रीष्म लहरों की जानकारी होने से जान बचाई जा सकती है। मौसम पूर्वानुमान प्रोटोकॉल के एक भाग के रूप में, आईएमडी 2016 से उपखंड स्तर पर देश भर में मौसम के तापमान और ग्रीष्म लहरों के बारे में चेतावनी प्रदान कर रही है। और 2017 से यह दो सप्ताह में एक बार ग्रीष्म लहरों की जानकारी प्रदान कर रही है। लेकिन क्या ग्रीष्म लहरों के बारे में केवल चेतावनी देना पर्याप्त रहेगा।
दिसंबर 2017 के एक अध्ययन में 2 डिग्री सेल्सियस ग्लोबल वार्मिंग परिदृश्य के तहत सन 2100 तक भारत में गंभीर ग्रीष्म लहरों की आवृत्ति में 30 गुना वृद्धि की चेतावनी दी गई। वहीं भारत में अहमदाबाद हीट एक्शन प्लान को तैयार करने और उसे लागू करने वाला सबसे पहला शहर था और उसके बाद 11 राज्यों के 30 शहरों ने इस योजना को अपना लिया था। यह योजना ग्रीष्म लहरों को प्रमुख स्वास्थ्य खतरे के रूप में इंगित करती है और इस से पीड़ित सभी शहर के संवेदनशील समुदायों का मानचित्रण भी करती है।
संदर्भ :-
1. https://ndma.gov.in/en/media-public-awareness/disaster/natural-disaster/heat-wave.html
2.https://thewire.in/environment/heat-waves-could-kill-partly-thanks-to-an-outdated-definition
3. https://en.wikipedia.org/wiki/Heat_wave