राग जौनपुरी देर सुबह का गान है और यह अवसारी थाट पर आधारित है। भारतीय गाने कि सबसे विस्मय मे डालने वाली व चकित करने वाली बात यह है कि एक ही प्रकार के लेख को दो विभिन्न रागों मे भेजा जा सकता है परन्तु उनकी आवाज पूर्ण रूप से भिन्न हो जायेगी। दरबारी कन्नड, अदन और जौनपुरी एक ही प्रकार के लेख को आधार बनाकर चलते हैं परन्तु इनको गाने का तरीका पूर्णरुपेण भिन्न है। यदि राग के समय के उपर एक तीव्र नजर दौड़ाई जाए तो पता चलता है कि राग दरबारी कन्नड और अदन मध्यरात्री के बाद गाये जाते हैं जबकी राग जौनपुरी गान दोपहर के पहले अत्यन्त मधुरता का एहसास कराता है। जौनपुरी राग अत्यन्त ही साधारण सौम्य व एक आराम देने वाला होती है तथा इसमे श्रृंगार के अत्यधिक बखान को नकारा जाता है। यह एक सुबह का राग है।
सिखों की पवित्र किताब गुरू ग्रन्थ साहिब (प्रकाश के सर्वोच्च शिक्षक) मे उत्तम संगीत सन्निहित है। गुरू ग्रन्थ साहिब को 33 भागों मे विभाजित किया गया है। पहला भाग जपजी महाकाव्य को सन्निहित किये हुए है जो गुरू नानक द्वारा लिख्त है और यह गाने के लिए नही बना है। जपजी पूरे गुरुग्रन्थ साहिब का एक विशिष्ट शारांश है। इसका अंतिम भाग एक पूरे संग्रह का मिश्रित छंद है जो कि श्लोकों और सवैयों जो कि भट्टों (एक गवैयों की जाति) के द्वारा गायी जाती है। बचे हुए गुरू ग्रंथ साहिब के 31 भाग भजनों का संकलन है। भजनों को एक महत्वपूर्ण और वैज्ञानिक रूप से 5वें गुरू द्वारा तैयार किया गया है। वे प्रथम धुन या राग के आधार पर बैठाये गये हैं, द्वितीय अपने काव्यात्मक प्रकार या कविता के आकार पर, और अन्तोगत्वा लेखक के आधार पर।
गुरू ग्रन्थ साहिब के गायन को संवेदना, एक रूप, समय के आधार पर जोड़ा व नापा गया है जो कि विभिन्न प्रकारों व उर्जा को प्रदर्शित करती है। सभी विषयों को निम्लिखित रूप से संक्षेप मे किया जा सकता है-
राग बिलावल- आत्मा के सौंदर्यीकरण के विषय को प्रस्तुत करता है।
राग गौन्द और टुखरी- लगाव व मिलन पर आधारित विषय।
राग श्री- माया और अलगाव को प्रदर्शित करता है।
राग माझ- एक आत्मा की इच्छा को भगवान के साथ विलय करने और नकारात्मक मूल्यों को छोड़ने की जांच करता है।
राग गौरी- आध्यात्मिक सिद्धान्तों और विचारशीलता की खोज करता है।
राग आशा- आशा।
राग गुजरी- पूजा-पाठ की पड़ताल।
राग देवगंधारी- उन लोगों के साथ विलय के विषय की पड़ताल करता है जो पति या पत्नी और आत्मनिवेदन के साथ मिलते हैं।
राग सोरठ- देवताओं के गुण दोश को खोजता है।
राग धनासरी कई विषयों का प्रयोग करता है।
राग जैतश्री- स्थिरता प्रदान करता है।
राग तोड़ी- माया और अलगाव के बारे मे बताता है।
राग बैरागी- ईश्वर की महिमा का गुणगान गाने को प्रेरित करता है।
राग तिलंग- प्रकार की कविताएँ जिसमे इस्लामी परम्परागत् शब्दों का संकलन हो जो उदासी व सौन्दर्य के लिये गाये जाते हों।
राग रामकली- ऐसे विषय को आधार बनाता है जिसमे सामाजिक जीवन का त्याग कर योगी बनना हो।
राग नट नारायण- ईश्ववर से मिलने की खुशी को प्रदर्शित करता है।
राग माली गौरा और बसंती- खुशियों पर आधारित।
राग मारू- वीरता व दर्शन पर आधारित।
राग केदार- प्यार।
राग भैरव- नर्क के विभिन्न रूपों पर आधारित।
राग सारंग- भगवान के प्यास के विषयों पर आधारित।
राग जयवंती और वधन- अलगाव पर आधारित।
राग कल्याण, प्रभाति और कानरा- भक्तिमय।
राग सूही, बिहग्र और मलार- इसका विषय प्रेम पर आधारित व ईश्वर से दूर प्रेमी (पति) से मिलने की खुशी पर आधारित है।
एक पूरे दिन के लिए रागमाला, जीवन के लिए एक रूपक है। (आसावरी और जौनपुरी)
राग जौनपुरी के कुछ उदाहरण-
राग जौनपुरी के तर्ज पर गाया गया "जायें तो जायें कहाँ" इस बोल का गाना जो देवानंन्द की फिल्म टैक्सीड्राइवर मे गाया गया था। यह फिल्म 1954 ई. मे बनी थी। इसका एक और रूप लता जी द्वारा गाया गया है।
1. संजीव अभयंकर- https://www.youtube.com/watch?v=YcNO9lMWGqU&feature=youtu.be
2. राग समय- अभिजीत बहादुरी- http://www.abhijitbhaduri.com/index.php/2012/04/the-charm-of-raga-jaunpuri/
3. इंडियन क्लासिक म्युजिक https://hindustaniclassicalmusic.wordpress.com/2011/05/19/raga-samay-chakra-the-cyclical-time-theory-of-ragas-2/
4. सिखविकी