"कदम ऐ रसूल" इस्लामिक दुनिया के विभिन्न हिस्सों में स्थित हैं। दरअसल कदम रसूल, पैगंबर मुहम्मद के पदचिह्न वाले पत्थर है जिन्हें कदम शरीफ या कदम रसूल अल्लाह या कदम मुबारक के नाम से जाना जाता है। उन्हें पवित्रस्थलों में रखा जाता है। परंपरागत रूप से मुस्लिम समाज का मानना हैं कि पैगंबर हजरत मोहम्मद साहब जब पहाड़ों पर चलते थे तो उनके पैरों के निशान शिला पर अंकित हो जाते थे। उसी के नमूने आज मक्का से लेकर दुनिया भर के पवित्रस्थलों में सहेजे गये हैं।
हालांकि इस मान्यता को इस्लाम के रूढ़िवादी लोगों ने कभी स्वीकार नहीं किया, परंतु इस विचार को व्यापक रूप से प्रचारित किया गया और इस तरह के पैरों के निशान शिला के आसपास कई पवित्र स्थानों का निर्माण कराया गया। क्योंकि इन पदचिह्नों को एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाया जा सकता था, इसलिये इनको दुनिया भर के पवित्रस्थलों में रखा गया हैं। सबसे पहला और सबसे प्रसिद्ध पदचिह्न यरुशलम में डोम ऑफ द रॉक (Dome of the Rock) में है। इस्लामिक मान्यताओं के अनुसार पैगम्बर मुहम्मद ने इसी स्थान से रात के सफ़र (मेराज) की यात्रा प्रारम्भ की थी। इसके अलावा ये कदम रसूल इस्तांबुल, दमिश्क, काहिरो में संरक्षित हैं।
भारत में ये कदम रसूल अहमदाबाद (गुजरात), दिल्ली, बहराइच (उत्तर प्रदेश), कटक (उड़ीसा), और गौर एवं मुर्शिदाबाद (पश्चिम बंगाल) में हैं। इन सब के अलावा जौनपुर में भी कदम रसूल देखे जा सकता हैं। इतिहास की किताबों के अनुसार जौनपुर में नौ से बारह हजरत मुहम्मद के कदम रसूल है। जिसमें से कुछ शाह का पंजा में हैं और कुछ को हमजापुर, मुफ़्ती मुहल्लाह, सिपाह, सदर इमामबाडा, मोहल्ला बाग़ ऐ हाशिम इत्यादि जगहों पे आज भी देखा जा सकता है।
सिपाह मोहल्ले में ये पदचिह्न फिरोजशाह के मकबरे के पास अच्छी स्थिति में हैं। माना जाता है कि इस पदचिह्न को यहां इब्राहिम शाह के समय में बहराम खां द्वारा मदीना शरीफ से लाया गया था। इसके बाद सैयद पुत्र ख्वाजा मीर द्वारा इस पदचिह्न और हजरत मोहम्मद साहब के हाथ के निशान को 1613 ई. में अरब में ले जाया गया था, बाद में वे परलोक सिधार गये। इनकी समाधि मुफ्ती मोहल्ले में आज भी है और यहीं पर ख्वाजा मीर की समाधि भी है।
परंतु मोहल्ला बाग़ ऐ हाशिम में पाए जाने वाले कदम शरीफ अन्य पदचिह्नों से अलग है। ज्यादातर पदचिह्न अंदर की ओर धसे हुए होते है, परंतु ये उभरे हुए कदम के निशान हैं। इसलिए ये अन्यों कदम रसूलों से अलग दिखता है। मोहल्ला बाग़ ऐ हाशिम के एक पुराने मकबरे में एक कब्र के ऊपर ये कदम शरीफ लगा हुआ है। कहा जाता है कि अकबर बादशाह के शासन काल के दौरान पटना के रहने वाले मोहम्मद हाशिम साहब जब हज को मक्का मदीने गए तो वहाँ से यह कदम ऐ रसूल ले आये जिसे उन्होंने मोहल्ला बाग़ ऐ हाशिम में मौजूद अपने बड़े बेटे की कब्र पे लगा दिया था।
संदर्भ:
1.http://en.banglapedia.org/index.php?title=Kadam_Rasul
2.https://en.wikipedia.org/wiki/Qadam_Rasul
3.https://www.hamarajaunpur.com/2014/03/blog-post_7381.html
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