गिल्ली-डंडा, भारतीय पारंपरिक स्वदेशी खेलों में शामिल है। जो लगभग 2 से 3 दशक पहले एक बहुत ही लोकप्रिय खेल था और देश के अधिकांश भागों में खेला जाता था। माना जाता है कि इस खेल की उत्पत्ति मौर्य राजवंश के शासन काल से हुई थी, और इसी खेल से ही पश्चिमी खेलों जैसे क्रिकेट, बेसबॉल और सॉफ्टबॉल की उत्पत्ति हुई है। परंतु धीरे-धीरे भारत में इसका प्रचलन कम होने लगा और क्रिकेट के आगमन, व्यस्त जीवन शैली तथा आधुनिक जीवन के कारण मानो ये खेल अब एक इतिहास बनाता जा रहा है।
हिंदी लेखक प्रेमचंद ने अपनी लघु कथा "गिल्ली-डंडा" में पुराने और आधुनिक समय के बीच के अंतर की ओर ध्यान केंद्रित करने के लिए एक माध्यम के रूप में इस खेल का इस्तेमाल किया। इस कहानी में प्रेमचंद ने कहा है कि: “हमारे अंग्रेजी दोस्त मानें या न मानें मैं तो यही कहूँगा कि गुल्ली-डंडा सब खेलों का राजा है। अब भी कभी लड़कों को गुल्ली-डंडा खेलते देखता हूँ, तो जी लोट-पोट हो जाता है कि इनके साथ जाकर खेलने लगूँ।” यह खेल अभी भी भारत के पूर्वांचल क्षेत्र में खेला जाता है, और आज हमारे सबसे पुराने और पारंपरिक खेलों में से एक "गिल्ली-डंडा" को जीवित रखने के लिए कई कदम भी उठाए जा रहे हैं। इसकी पहल यूनेस्को ने काशी शहर से की है। इस मामले में यूनेस्को की दो सदस्यीय टीम ने दो बार काशी का दौरा भी किया है। यूनेस्को अब भारत के विलुप्त हो चुके पारंपरिक खेलों जैसे गिल्ली-डंडा, मलखंभ, जोड़ी, गदा, डंबल, नाल और खो-खो आदि को भी संरक्षण दे रहा है। इसकी मदद से ये खेल पुनः जीवित हो रहे है।
इस खेल को खेलने के लिये एक 2-3 फीट लंबे लकड़ी के डंडे और 3 से 6 इंच लंबी एक गुल्ली की जरूरत होती है, जिसके दोनों किनारों को नुकीला कर दिया जाता है, जिससे उस पर डंडे से मारने पर गुल्ली उछल सके। खेल के नियम भी बिल्कुल आसान हैं, इस खेल में खिलाड़ियों की संख्या कितनी भी हो सकती है, 2 , 4, 10 या इससे भी अधिक बस वे दो टीमों में बंटे होते है।
आइये नीचे जानते है की गिल्ली-डंडा खेलने का तरीका और नियम क्या है
1. सबसे पहले दोनों टीमों के बीच सिक्का उछाल कर तय किया जाता है कि कौन सी टीम पहले गिल्ली को डंडे से मारेगी और कौन सी टीम फील्डिंग करेगी। फील्डिंग वाली टीम मैदान में फैल जाती है और विपरित टीम का एक खिलाड़ी गिल्ली को डंडे से मारने के लिये केंद्र में एक गड्ढे के पास तैयार रहता है।
2. इस खेल को शुरू करने से पूर्व जमीन पर एक छोटा और लम्बा गड्ढा खोदा जाता है ,फिर उस गड्ढे में गिल्ली को इस प्रकार रखते है की गिल्ली का कुछ भाग ऊपर की ओर दिखाई देता रहे।
3. उसके बाद डंडे से गिल्ली को मार कर उछालते है और उस गिल्ली को दूर तक पहुंचाने की कोशिश करते है।
4. अगर गिल्ली को उछालते ही सामने वाला यानि दूसरी टीम का खिलाडी हवा में उस गिल्ली को अपने हाथो में पकड़ लेता है तो पहला खिलाडी जो खेल रहा होता है वह आउट हो जाता है।
5. अगर दूसरी टीम का खिलाडी गिल्ली को नही पकड़ पाता है तो डंडे का इस्तेमाल करके गड्ढे से उस बिंदु तक की दूरी को मापा जाता है जहां गिल्ली गिरी थी। प्रत्येक डंडे की लंबाई गिल्ली मारने वाली टीम के स्कोर में एक पॉइंट जोड़ देती है।
6. गिल्ली को मारने के लिये हर खिलाड़ी को तीन मौके दिये जाते है।
इस प्रकार से ये खेल खेला जाता है। यह खेल केवल खेल की भावना से खेला जाता है, इसमें कोई भी हार पराजय की भावना नहीं होती है। परंतु इस खेल में आँख में चोट लगने की संभावना रहती है। अत: यह खेल बहुत ही सावधानीपूर्वक खेलना चाहिए।
इंग्लैंड का टिप-कैट (Tip-Cat) खेल और दक्षिण कोरिया जचीगी (Jachigi) खेल भी गिल्ली-डंडा के समान ही हैं, बस इसे वहां अलग नाम से जाना जाता है। इस खेल को पूरे भारत में भी अलग-अलग नामों से जाना जाता है जैसे: मराठी में इसे विटी दांडू, कन्नड़ में चन्नी – डांडू, बंगाली में डंगुली तथा मलयालम में कुट्टीम कोलम आदि। आपने इस खेल को आमिर खान की “लगान” फिल्म में भी देखा होगा। 2014 में एक मराठी फिल्म ‘विटी दांडू’ भी इस खेल पर केन्द्रित थी। कुछ साल पहले तक अक्सर बच्चे हाथ में एक डंडा और गुल्ली लेकर खेलते हुए नजर आते थे, किंतु समय के साथ-साथ यह खेल लगभग लुप्त होने के कगार पर आ गया है।
संदर्भ:
1.https://indiantraditionalgames.wordpress.com/category/project-phase-1/gilli-danda/
2.https://en.wikipedia.org/wiki/Gillidanda#In_popular_culture
3.https://www.sportskeeda.com/sports/gilli-danda-a-dying-indian-traditional-game
4.https://bit.ly/2SJp01U
5.https://www.amarujala.com/uttar-pradesh/varanasi/unesco-will-secure-traditional-game-of-india?pageId=1
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