अभी कुछ समय पूर्व हमने राजपथ पर अपना गणतंत्र दिवस बड़े हर्षोल्लास के साथ मनाया, जहां हमारे मुख्य अतिथि दक्षिण अफ्रिका के राष्ट्रपति सायरिल रामापोसा रहे, इनसे पूर्व भी भारत रत्न प्राप्त दक्षिण अफ्रिका के राष्ट्रपति नेल्सन मंडेला (दक्षिण अफ्रीका के गांधी) हमारे गणतंत्र दिवस में सिरकत कर चूके हैं। गांधी जी का भी दक्षिण अफ्रीका से अटूट संबंध रहा था। बात सिर्फ दक्षिण अफ्रीका की नहीं है, वरन् अफ्रीका महाद्वीप के अन्य देश जैसे इथोपिया, सुडान आदि के साथ भी भारत के मधुर संबंध रहे हैं, जो आज से नहीं बल्कि कई सदियों पुराने हैं, लेकिन आज यह इतिहास के पन्नों पर कहीं खो गये हैं। कई ऐसे अफ्रीकी हुए जिन्होंने भारत में खुब प्रतिष्ठा प्राप्त की साथ ही भारत के विकास में योगदान दिया। लेकिन फिर भी हमारे देश में अफ्रीकी लोग आज अपने आत्मसम्मान के लिए कहीं ना कहीं जूझ रहे हैं, आज भी इनको हमारे देश में अनयास ही रंगभेद की समस्याओं का सामना करना पड़ जाता है। इतिहास के पन्नों में कुछ ऐसे अफ्रीकी जो भारत में विशेष स्थान रख चूके हैं:
तेहरवीं शताब्दी:
भारत की एकमात्र महिला सम्राट रज़िया सुल्तान (1236-40) के शाही दरबारियों में एक अफ्रीकी सैन्य जनरल जमाल अल-दीन याकूत (एबिसिनिया का राजकुमार) था। इनके साथ रज़िया के प्रेम संबंध थे जो इनके विरोधियों को रास नहीं आये और इन्होंने इनके विरूद्ध साजिश रच दोनों की हत्या करवा दी।
चौदहवीं शताब्दी:
14 वीं शताब्दी तक तुगलक सल्तनत का पतन प्रारंभ हो गया था, इसी दौरान जौनपुर के एक अफ्रीकी गवर्नर, मलिक सरवर ने दिल्ली से रियासत छीन ली और उसका शासक बन गया। जौनपुर के अफ्रीकी गवर्नर ने माली-हम शर्की की उपाधि धारण की, जिसका शाब्दिक अर्थ है पूर्व का राजा। अगले एक सौ वर्षों तक, अफ्रीकी राजवंश ने जौनपुर पर शासन किया और इसे महान सांस्कृतिक एकीकरण के रूप में परिवर्तित किया। यह कला, वास्तुकला, व्यापार, वाणिज्य और सीखने के क्षेत्र में जबरदस्त प्रगति का दौर था। जौनपुर आज भी इनके अफ्रीकियों द्वारा स्थापित अद्भुत शासन की गवाही देता है।
सोलहवीं शताब्दी:
मलिक अंबर एक दास के रूप अफ्रीका से भारत आये, आगे चलकर इन्होंने अकबर का प्रतिरोध किया तथा इनके द्वारा जंजीरा में बनाए गये किले पर फतेह पाने में मुगल और मराठा दोनों ही असफल रहे।
इस प्रकार अनेक ऐसे अफ्रीकी भारत आये, जिन्होंने दास के रूप में जीवन की शुरूआत की किंतु आगे चलकर बड़ी समृद्धि हासिल की। इन्हें कई राजनितिक अधिकार प्राप्त थे जिससे यह भारत के कुछ क्षेत्रों में शासन भी कर सकते थे। ये कुछ उदाहरण हैं जो दर्शाते हैं कि भारत में अफ्रीकियों की स्थिति अन्य विश्व की अपेक्षा काफी अच्छी थी। वर्तमान समय में भी अफ्रीका के विभिन्न देशों से 60000 लोग भारत में रह रहे हैं जिनमें से 25000 युवा भारत के विभिन्न शिक्षा संस्थानों में अध्ययनरत हैं, शेष विभिन्न कार्यों में संलग्न हैं। किंतु धरातल स्तर पर देखा जाए तो क्या वास्तव में भारत में इनकी वह स्थिति है, जो अन्य पश्चिमी राष्ट्रों से आए प्रवासियों की होती है। शायद नहीं, आज भी यह भारत में नस्लवाद का सामना कर रहे हैं, विगत कुछ वर्ष पूर्व भारत में पांच अफ्रीकी युवकों के साथ नस्लभेद के आधार हिंसा की गयी। अपने रोजमर्रा के जीवन में नस्लीय भेदभाव और हिंसा के कारण कई अफ्रीकी लोग ड्रग-विक्रेताओं जैसी आपराधिक गतिविधियों में शामिल हो जाते हैं। भारत में अफ्रीकी नागरिकों को कई समस्याओं का सामना करना पड़ता है। भारत में कई लोग अक्सर अफ्रीकी लोगों को अपमानित करने के उद्देश्य से नाइजीरियाई के रूप में संदर्भित करते हैं। कई अफ्रीकी छात्रों ने अभिव्यक्त किया है, कि उन्हें अपने त्वचा के रंग के कारण पृथक अनुभव करना पड़ता है।
अफ्रिकियों के अपराधिक गतिविधियों में शामिल होने का कारण कहीं ना कहीं हमारा ही समाज है, जो सदैव इन्हें भेदभाव की नजरों से देखता है हमें यह समझने की आवश्यकता है कि वे भी हमारी भांति इंसान है, उन्हें आत्मसम्मान के साथ जीने का अधिकार है। हम इनकी आपराधिक गतिविधियों का मूल्यांकन तो कर लेते हैं किंतु हमारे द्वारा इनके साथ किये गये दुर्व्यवहार का कोई आंकलन नहीं किया जाता है, जिसमें परिर्वतन की सख्त आवश्यकता है।
संदर्भ :
1.https://www.indiatoday.in/india/story/africans-racial-attack-greater-noida-india-history-slaves-soldiers-rulers-968631-2017-03-30
2.https://indianexpress.com/article/research/african-rulers-of-india-that-part-of-our-history-we-choose-to-forget/
3.http://www.ignca.gov.in/invitations/Africans-in-India_Brochure20150810b.pdf
4.https://gulfnews.com/world/asia/india/the-dark-face-of-indian-racism-1.61161168
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