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विश्व की संपूर्ण नेत्रहीन आबादी का लगभग 30% हिस्सा भारत में है। भारत में कई नेत्रहीन बच्चे जन्म से ही नेत्र संबंधित विसंगती से प्रभावित रहते हैं। इनमें से 40% से अधिक मामलों में नेत्रहीन के उपचार या रोकथाम संभव है। हालांकि इनमें से अधिकांश बच्चों को चिकित्सा सुविधाएं प्राप्त नहीं होती है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के आंकलन के अनुसार भारत के 60% नेत्रहीन बच्चे वयस्कता तक पहुंचने से पहले मृत्यु हो जाती है। अधिकांश बच्चों की नेत्र संबंधित सुविधाओं तक कम पहुंच का कारण वितरण में गहरा असंतुलन है। वहीं अधिकांश अस्पताल भारत के प्रमुख शहरी केंद्रों में स्थित हैं। हालांकि, 70% से अधिक आबादी दूरदराज के गांवों में रहती है, जिस कारण से वे आधुनिक चिकित्सा सुविधाओं तक पहुंच नहीं पाते हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में गरीबी, अज्ञानता और सरल नैदानिक उपकरणों की कमी के कारण बच्चे शुरुआती उपचारों से वंचित रहते हैं। इसलिए बचपन के नेत्रहिनता के उपचार और जागरुकता की आवश्यकता है।
प्रोजेक्ट प्रकाश इन आवश्यकताओं को पूरा करता है। इस परियोजना द्वारा गांवों के बच्चों की जांच की गई है और साथ ही जांच में नेत्रहिनता के इलाज की संभवतः को भी देखने का प्रयास किया गया। आज तक, 40,000 से अधिक बच्चों की जांच की जा चुकी है। उनमें से 400 से अधिक को शल्य चिकित्सा प्रदान किए गए हैं और लगभग 1400 को अशल्य देखभाल प्रदान की गई है। यहाँ पर परिवहन, उपचार, अस्पताल में रहने और अनुवर्ती जांच बच्चों के लिए पूरी तरह से नि:शुल्क हैं।
प्रोजेक्ट प्रकाश को प्रो. पवन सिन्हा द्वारा 2005 में लांच किया गया था। सिन्हा प्रयोगशाला के सदस्यों ने नेत्र रोग विशेषज्ञों के साथ काम करके ऐसे व्यक्तियों के साथ कई अध्ययन किए हैं जिन्होंने अपने जीवन में देर से देखना प्रारंभ किया है। भारत में प्रोजेक्ट प्रकाश का आधार नई दिल्ली में श्रॉफ चैरिटी आई हॉस्पिटल (एससीईएच) में स्थापित किया गया था। एससीईएच में सहयोगी जांचकर्ता डॉ सुमा गणेश एमएस और डॉ उमंग माथुर एमएस हैं।
एससीईएच विश्व स्तरीय नेत्र देखभाल प्रदान करता है, और अब तक 44 लाख से अधिक रोगियों का इलाज कर चुका है और 250,000 से अधिक नेत्र सर्जरी भी कर चुका है। यहाँ इलाज के लिए अधिकांशतः आर्थिक रूप से निर्बल वर्गों के लोग ही आते हैं। पिछले कुछ वर्षों में एससीईएच के कार्यक्रम के विस्तार के माध्यम से दिल्ली, उत्तर प्रदेश और राजस्थान के ग्रामीण क्षेत्रों से कई लोग इलाज के लिए यहाँ आए। प्रोजेक्ट प्रकाश को नेशनल आई इंस्टीट्यूट, जेम्स मैकडोनेल फाउंडेशन और निक सिमंस फाउंडेशन के फंड से सहायता मिलती है।
प्रोजेक्ट प्रकाश द्वारा यह भी समझने की कोशिश की जा रही है कि मानव मस्तिष्क वस्तुओं को देखकर पहचान करने की कोशिश कैसे सीखता है, जो तंत्रिका विज्ञान की मूलभूत चुनौतियों में से एक है। ऑब्जेक्ट लर्निंग (object learning) के अध्ययन के लिए प्रमुख दृष्टिकोण में शिशुओं के साथ प्रयोग किया जाता है। इस अध्ययन से मूल्यवान परिणाम मिले हैं। प्रोजेक्ट प्रकाश द्वारा उन नेत्रहिन बच्चों पर अध्ययन किया जाता है, जो उपचार के बाद यह बता सकें की उन्हें क्या दिखाई दे रहा है। वहीं इस अध्ययन से प्रोजेक्ट प्रकाश द्वारा यह पता लगाया गया है कि मानव मस्तिष्क कई वर्षों के जन्मजात नेत्रहिनता के बाद भी जटिल दृश्य कार्यों को समझने की क्षमता रखता है।
संदर्भ:
1.http://web.mit.edu/sinhalab/prakash_humanit.html
2.http://web.mit.edu/sinhalab/prakash_science.html
3.http://web.mit.edu/sinhalab/prakash_bg.html
4.https://nei.nih.gov/news/scienceadvances/discovery/project_prakash