देश के बजट के बारे में जब हम देखते हैं तो हर साल बजट में देश के वित्त मंत्री आयकर की बात करते हैं। कभी आयकर के स्लैब (स्तर) में बदलाव किया जाता है तो कभी टैक्स छूट बढ़ाया-घटाया जाता है। लेकिन हम में से कितने लोग आयकर के बारे में पूरी जानकारी रखते हैं। सरकार द्वारा लगाए जाने वाले कर (टैक्स) दो प्रकार के होते हैं - प्रत्यक्ष कर और अप्रत्यक्ष कर। अप्रत्यक्ष कर आमतौर पर सेवाओं और वस्तुओं पर लगाए जाते हैं, वहीं प्रत्यक्ष कर को लाभ और आय पर लगाया जाता है। उदाहरण के लिए, आप सिनेमाघर में जो मनोरंजन कर देते हैं, वह अप्रत्यक्ष कर होता है जबकि हर महीने आपके वेतन से टिडिएस के रूप में निकलने वाला आयकर प्रत्यक्ष कर होता है।
आयकर प्रत्येक व्यक्ति की गतवर्ष में अर्जित की गयी आय पर लगने वाला कर है। इस एकत्रित धन का उपयोग सरकार द्वारा अवसंरचनात्मक विकास के लिए किया जाता है और केंद्र और राज्य सरकार के कर्मचारियों को भुगतान करने के लिए भी किया जाता है। 1961 में पारित भारत का आयकर अधिनियम, आयकर के प्रावधानों के साथ-साथ उस पर लागू होने वाली विभिन्न कटौती को नियंत्रित करता है। हालांकि, 1961 के बाद से, मुद्राप्रसार और अन्य सामाजिक-आर्थिक स्थितियों को ध्यान में रखते हुए कानून में कई बार संशोधन भी किए गए हैं।
60 वर्ष से कम आयु का कोई भी भारतीय नागरिक, जिसकी आय 2.5 लाख से अधिक हो वे आयकर का भुगतान करने के लिए उत्तरदायी हैं। यदि व्यक्ति की 60 वर्ष से अधिक आयु है और रु 3 लाख से अधिक आय है, तो उसे भारत सरकार को कर देना होगा। इसके अतिरिक्त, निम्नलिखित संस्थाएँ प्रत्यक्ष करों का भुगतान करने के लिए उत्तरदायी हैं: हिन्दू अविभाजित परिवार (एचयुएफ), व्यक्तियों की निकाय (बीओआई), व्यक्तियों के संघ (एओपी), स्थानीय अधिकारी, कॉर्पोरेट फर्म, कंपनियों, सभी कृत्रिम कानूनी व्यक्ति। आयकर स्लैब की दरें करदाता की कमाई के आधार पर परिभाषित की जाती हैं। आयकर स्लैब दरों को मोटे तौर पर निम्नानुसार वर्गीकृत किया गया है:
2016-17 के आयकर स्लैब और दरें
प्रत्येक व्यक्ति, जिसके पास आय का नियमित या अनियमित स्रोत है, उसे कानूनी रूप से अपने आयकर रिटर्न को दाखिल करने की आवश्यकता होती है। भले ही आपकी आय कर योग्य ना हो, फिर भी आपको अपना आयकर दाखिल करना चाहिए। आयकर दाखिल करने के लिए व्यक्ति की आय से संबंधित निर्धारित फॉर्म होते हैं। निम्न तालिका में विभिन्न वर्गों के करदाताओं के लिए निर्धारित विभिन्न फॉर्म के बारे में बताया गया है:
वहीं अब आपके मन में यह सवाल उत्पन्न हो रहा होगा कि हमें कर क्यों भरना चाहिए? जब हम व्यक्तिगत रूप से हर चीज में कर का भुगतान कर रहें हैं और अन्य देशों के मुकाबले भारत में कोई सामाजिक सुरक्षा और चिकित्सीय सुविधाओं जैसी सुविधाओं की पेशकश नहीं करता है। यह सच है कि भारत सामाजिक सुरक्षा और मुफ्त चिकित्सीय सेवाएं प्रदान नहीं करता है, परंतु सरकार द्वारा सरकारी अस्पतालों के द्वारा स्वास्थ्य सेवाएं, शिक्षा जिसका शुल्क न के बराबर है, गैस में सबसिडी (Subsidy), राष्ट्रीय सुरक्षा, आधारित संरचना विकास आदि का खर्च विभिन्न विभागों में लाखों कर्मचारियों तथा प्रशासनिक शुल्क, न्यायाधीशों, मजिस्ट्रेट तथा न्यायिक स्टाफ के वेतन, भत्ते शामिल हैं। इस प्रकार सरकार की इन विभिन्न कर्त्तव्यों पर विचार करते हुए हमें कानून के अनुसार कर देना चाहिए। हमें जिम्मेदार नागरिक की भूमिका अदा करनी चाहिए।
सामान्य तौर पर एक कर दाता कर को बोझ समझते हैं और उससे बचने या न्यूनतम करने के उपाय खोजते रहते हैं। आप जानते हैं, अस्सी के दशक से पहले उपकर सहित आयकर की दर 97.75 प्रतिशत तक थी पर अब हालात तेजी से बदल रहे हैं और कर की दरों में भी कमी आ गयी है। वहीं आपको पता है हमारे देश में 8.27 करोड़ कर दाता है जो कि 132 करोड़ जनसंख्या का 6.25 प्रतिशत ही है, यह काफी कम है। अमरीका में 45 प्रतिशत जनसंख्या कर देती है। भारत में इतने कम कर दाता होने का मुख्य कारण कई लोगों की आय है। सरकार ने वित्तीय वर्ष 2017-18 में प्रत्यक्ष करों से 10.05 लाख करोड़ एकत्रित करने का लक्ष्य बनाया है (पुर्व वित्त वर्ष से रु. 8.49 लाख करोड़ अधिक)। साथ ही आयकर विभाग ने कर आधार को बढ़ाने के लिये "नॉन फाइलर (non-filers) और स्टॉप फाइलर (stop-filers)” पर ध्यान देना शुरू कर दिया है।
कर भुगतान तथा कर वृद्धि के प्रति सरकार तथा करदाताओं की उदासीनता के कारण निम्न हैं:
(क) अधिकांश लोग कर को बोझ की भांति लेते हैं तथा उससे बचने का प्रयास करते हैं।
(ख) कर दाता कर कानूनों के प्रावधानों को सख्त समझते हैं, जिन्हें यह अपने विरूद्ध समझते हैं। इसलिये वे कर विभाग से दूर रहना ही बेहतर समझते हैं।
(ग) एक उचित कर परंपरा तभी विकसित हो सकती है, जब करदाता और कर संग्राहक अपने कर्तव्यों का सही से पालन करे।
(घ) कई करदाता कर संग्राहकों की शक्तियों की गलत धारणा के कारण भ्रमित तथा प्रेरणाहीन हो जाते हैं। ऐसे भ्रम कर परंपरा की जड़ों को खोखला कर देते हैं।
वर्तमान करदाता एक न्यायसंगत कर करना चाहता है, विशेष रूप से युवा व्यापारियों का झुकाव उचित कर भुगतान की ओर है, जो कि एक सकारात्मक संकेत है। करदाताओं के लिए बनाये गयी नियमावली यदि सही और स्पष्ट हो, तो करदाताओं के मध्य इसके विरूद्ध फैलने वाली भ्रांतियां कुछ कम की जा सकती हैं। यह आवश्यक है कि नियमित रूप से अर्थपूर्ण और अच्छे प्रकार से करदाता शिक्षा तथा सहायता कार्यक्रम बनाए जाए जो हिन्दी, अंग्रेजी और उस राज्य की स्थानीय भाषा में कर दाता को उपलब्ध हो।
हम सबको कर व्यवस्था विकसित करने में मदद करने की प्रतिज्ञा लेनी चाहिये और सकारात्मक जन राय बनाने में मदद करनी चाहिये। हमे उन कर दाताओं की दुविधाओं को दूर करना चाहिये जो कर का भुगतान करने के खिलाफ है।
संदर्भ:
1.https://bit.ly/2RnzUuj
2.https://bit.ly/2D2tGHx
3.https://en.wikipedia.org/wiki/Income_tax_in_India
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