मनुष्यों के इस धरती पर अस्तित्त्व पाने से लेकर वर्तमान तक उसने अपनी अभिव्यक्ति के लिए आदिकाल से नए-नए साधनों, माध्यमों की खोज की, जिनमें सबसे उपयोगी और कारगर माध्यम ध्वन्यात्मक (वाणी) माध्यम है। हर समय मनुष्य के जीवन में अभिव्यक्ति एक अभिन्न अंग रही है, जिसके चलते संविधान के अनुच्छेद 19 (1) के तहत हर नागरिक को अभिव्यक्ति का अधिकार प्राप्त है।
वर्तमान रूप से इस कानून ने भारत में ब्रिटिश प्रशासन द्वारा अधिनियमित हेट स्पीच कानून धारा 295 (a) में अपना मूल रूप पाया था। इस अधिनियम को आर्य समाज के नेताओं की हत्याओं के बाद लाया गया था, जिन्होंने इस्लाम के खिलाफ विरोध प्रकट किया था। वहीं 1946-1950 तक संविधान सभा द्वारा 1950 के संविधान को तैयार किया गया था। भारत के संविधान सभा ने 1 दिसंबर 1948, 2 दिसंबर 1948 और 17 अक्टूबर 1949 को वाणी और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता (अनुच्छेद 13, (1) मसौदा संविधान, 1948) पर बहस की थी। उदाहरण के लिए, मेनका गांधी बनाम भारत संघ के केस के फैसले पर, सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वाणी और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की कोई भौगोलिक सीमा नहीं है और यह एक नागरिक का अधिकार है कि वह सूचना एकत्र करने और दूसरों के साथ विचार विनिमय कर सकता है, केवल भारत में ही नहीं बल्कि विदेशों में भी।
भारत के संविधान में विशेष रूप से प्रेस की स्वतंत्रता का उल्लेख नहीं किया गया है, प्रेस की स्वतंत्रता संविधान के अनुच्छेद 19 (1) (a) में निहित है। इस प्रकार प्रेस संविधान के अनुच्छेद 19 (2) के तहत दिए गए प्रतिबंधों के अधीन है।
भारतीय कानून के तहत, वाणी की स्वतंत्रता और प्रेस की स्वतंत्रता किसी के विचारों को स्वतंत्र रूप से व्यक्त करने का पूर्ण अधिकार प्रदान नहीं करती है। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 19(2) के तहत विधानसभा को निम्नलिखित शीर्षों के तहत मुक्त भाषण देने पर कुछ प्रतिबंध लगाने में सक्षम बनाता है:
I) राज्य की सुरक्षा - राज्य की सुरक्षा के हित में, वाणी और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर उचित प्रतिबंध लगाए जा सकते हैं।
II) विदेशी राज्यों के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध - इसको 1951 के संविधान (प्रथम संशोधन) अधिनियम द्वारा जोड़ा गया था। राज्य वाणी और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर उचित प्रतिबंध लगा सकता है, यदि वो राज्य किसी अन्य राज्यों के साथ भारत के मैत्रीपूर्ण संबंधों को खतरे में डालता है।
III) सार्वजनिक व्यवस्था - रोमेश थापर के मामले (एआईआर 1950 एससी 124) में सुप्रीम कोर्ट के फैसले से उत्पन्न परिस्थिति का सामना करने के लिए संविधान (प्रथम संशोधन) अधिनियम, 1951 द्वारा यह आधार जोड़ा गया था। अभिव्यक्ति ‘सार्वजनिक व्यवस्था’ सार्वजनिक शांति, सुरक्षा और शांति की भावना को दर्शाती है।
IV) शालीनता और नैतिकता - इसे अश्लीलता और अभद्रता को देखते हुए बनाया गया था।
V) अदालत की अवमानना - वाणी की स्वतंत्रता का संवैधानिक अधिकार किसी भी व्यक्ति को अदालतों की अवमानना करने की अनुमति नहीं देता है।
VI) मानहानि - अनुच्छेद 19 का खंड (2) किसी भी व्यक्ति को ऐसा बयान देने से प्रतिबंधित करता है, जो दूसरे की प्रतिष्ठा को चोट पहुंचाए। इसको देखते हुए, भारत में आई.पी.सी की धारा 499 में सम्मिलित करके मानहानि को गैर-कानूनी घोषित किया गया है।
VII) एक अपराध के लिए उकसाना - इस आधार को संविधान (प्रथम संशोधन) अधिनियम, 1951 द्वारा ही जोड़ा गया था। यह संविधान किसी व्यक्ति को ऐसा कोई भी बयान देने से प्रतिबंधित करता है जो लोगों को अपराध करने के लिए उकसाता है।
VIII) भारत की संप्रभुता और अखंडता - इसको भी संविधान (सोलहवें संशोधन) अधिनियम, 1963 द्वारा जोड़ा गया। इसका उद्देश्य किसी को भी भारत की अखंडता और संप्रभुता को चुनौती देने वाले बयानों से प्रतिबंधित करना है।
जहाँ हमें वाणी की स्वतंत्रता प्रदान है, वहीं इस स्वतंत्रता की कुछ सीमाएं भी हैं जिसके तहत हमें वाणी की स्वतंत्रता का उपयोग करना चाहिए, उदाहरण के लिए पूर्वांचल विश्वविद्यालय जौनपुर के कुलपति राजाराम यादव द्वारा दिया गया विवादित बयान। उन्होंने कहा कि "अगर आप पूर्वांचल विश्वविद्यालय के छात्र हैं तो रोते हुए कभी मेरे पास मत आना। अगर किसी से झगड़ा हो जाए तो पिटकर नहीं पीटकर आना, तुम्हारा बस चले तो उसका मर्डर (हत्या) करके आना, जिसके बाद हम देख लेंगे।" साथ ही सत्यदेव कॉलेज परिसर गाजीपुर के एक समारोह में कुलपति राजाराम यादव ने कहा, "युवा छात्र वही होता है जो पर्वत की चट्टानों में पैर मारता है, तो पानी की धार निकलती है। उसी को छात्र कहते हैं। छात्र अपने जीवन में जो संकल्प लेता है उस संकल्प को अपनी आंखों से पूरा करता है उसी को पूर्वांचल विश्वविद्यालय का छात्र कहते हैं।"
संदर्भ:-
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