कृषि, व्यापार, वाणिज्य तथा ग्रामीण क्षेत्रों में अन्य उत्पादक गतिविधियों के लिए, विशेष रूप से छोटे और सीमांत किसानों, खेतिहर मजदूरों, दस्तकारों और छोटे उद्यमियों के लिए और उनसे संबंधित मामलों के लिए ऋण और अन्य सुविधाओं के विकास के उद्देश्य से और ग्रामीण अर्थव्यवस्था के विकास की दृष्टि से नरसिम्हा समिति की सिफारिशों पर सितम्बर 1975 को प्रवर्तित अध्यादेश के प्रावधानों तथा क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक अधिनियम, 1976 के तहत 1975 में क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों (आरआरबी) की स्थापना की गई। एक वर्ष के भीतर अधिनियम पारित करने के बाद भारत के विभिन्न हिस्सों में कम से कम 25 आरआरबी स्थापित किए गए।
अधिनियम की उपरोक्त प्रस्तावना को मद्देनजर रखते हुए आरआरबी के उद्देश्यों और गतिविधियों को निम्नानुसार संक्षिप्त किया जा सकता है:
• ग्रामीण क्षेत्रों में जमा करने के अंतराल को कम करना।
• ऐसे उपायों को विकसित करना जो ग्रामीण क्षेत्रों की जमापुंजी को शहरी क्षेत्रों ले जाने से प्रतिबंधित कर सके।
• क्षेत्रीय असंतुलन को कम करना और ग्रामीण रोजगार गतिविधियों को बढ़ाना है।
वहीं अपने उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए आरआरबी ग्रामीण गतिविधियों में संलग्न ग्रामीण आबादी के विभिन्न क्षेत्रों को वित्तीय सहायता प्रदान करते हैं।
आरआरबी को उसी क्षेत्र में कार्य करना होता है जिसके लिए वे स्थापित किए गये होते हैं। आरआरबी के कार्य पद्धति के क्षेत्र को नाबार्ड और प्रायोजक बैंकों के परामर्श से केंद्र सरकार द्वारा इस संबंध में जारी अधिसूचना के माध्यम से तय किया जाता है। प्रत्येक क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक को एक सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक द्वारा प्रायोजित किया जाता है। यह प्रायोजक बैंक का कर्तव्य है कि वह प्रायोजित किये गए आरआरबी की सहायता करें। एक प्रायोजक बैंक आरआरबी की सहायता निम्न रूप से करती हैं :
• उनके शेयर पूंजी की सदस्यता को ग्रहण करके।
• क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक के कर्मियों को प्रशिक्षण देना।
• आरआरबी को प्रबंधकीय और वित्तीय सहायता प्रदान करना।
एक प्रायोजक बैंक अपने कार्य पद्धति के पहले 5 वर्षों के दौरान इस तरह के प्रबंधकीय (स्टाफ) और वित्तीय सहायता प्रदान करती है। केंद्र सरकार स्वयं या नाबार्ड की सिफारिशों पर 5 वर्ष की अवधि का विस्तार कर सकती है। क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों की अधिकृत पूंजी रु 5 करोड़ को केंद्र सरकार, राज्य सरकार और प्रायोजक बैंक द्वारा 50:15:35 के अनुपात में योगदान दिया जाता है।
क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों के कार्य:
1. बैंकिंग विनियमन अधिनियम 1949 में परिभाषित है कि सभी क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक बैंकिंग के व्यवसाय को चलाने के लिए अधिकृत हैं।
2. आरआरबी छोटे और सीमांत किसानों, कृषि मजदूरों, सहकारी समितियों और कारीगरों, छोटे उद्यमियों और छोटे साधनों वाले व्यक्तियों को ऋण प्रदान करते हैं।
3. आरआरबी जनता से जमा स्वीकार करना, ऋण प्रदान करना, प्रेषण सेवाएं आदि जैसे सभी कार्य करते हैं।
4. वे सरकारी प्रतिभूतियों, बैंकों की जमा योजनाओं और वित्तीय संस्थानों में भी निवेश कर सकते हैं।
5. सभी आरआरबी डीआईसीजीसी योजना के अंतर्गत आते हैं और उन्हें आरबीआई के कैश रिजर्व रेश्यो और वैधानिक तरलता अनुपात के लिए आवश्यक शर्तों का पालन करना होता है।
क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों में आए संकट
आरआरबी की अवधारणा इस नीति पर आधारित थी कि ये बैंक केवल ग्रामीण समाज के कमजोर वर्गों को उधार देते हैं, कम ब्याज दर वसूलते हैं, दूरदराज और ग्रामीण क्षेत्रों में शाखाएं खोलते हैं और कम लागत वाली रूप-रेखा रखते हैं। लेकिन इनमें व्यावसायिक प्रेरणा अनुपस्थित थी। प्रारंभ में बैंकों का विस्तार हुआ और वर्ष 1985 के अंत तक आरआरबीएस ने 12606 शाखाएँ खोलीं। इस अवधि के दौरान उनका क्रेडिट डिपॉजिट रेसो (credit deposit Ratio) बहुत तीव्रता से बढ़ा। 1976 में यह 165% था और दिसंबर 1986 में धीरे-धीरे घटकर 104% हो गया। इसके बाद क्रेडिट डिपॉजिट रेश्यो में लगातार गिरावट आने लगी। बाद में, इन बैंकों की व्यवहार्यता के बारे में सवाल उठाए जाने लगे। वास्तव में वाणिज्यिक नीति के कारण बढ़ते घाटे से स्वयं आरआरबी भी अपनी स्थिति बनाये रखने में असमर्थ महसूस कर रहा था ऐसी स्थिति में 1989 की खुसरू समिति ने सुझाव दिया कि आरआरबी का प्रायोजक बैंकों के साथ विलय कर देना चाहिए। किंतु उस समय तक शाखा का नेटवर्क इतना फैल गया था कि सरकार के लिए प्रायोजित बैंकों के साथ आरआरबी का विलय राजनीतिक नासमझी होती।
आरआरबी के लिए संगठनात्मक संरचना प्रत्येक शाखाओं में भिन्न होती हैं और यह शाखा द्वारा किए गए व्यवसाय की प्रकृति और आकार पर निर्भर करती है। आरआरबी के प्रमुख कार्यालय में सामान्यतः तीन से सात विभाग होते हैं। निम्नलिखित एक क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक के अधिकारियों के पदानुक्रम इस प्रकार है :- निदेशक मंडल; अध्यक्ष एवं प्रबंध निदेशक; महाप्रबंधक; मुख्य प्रबंधक; वरिष्ठ प्रबंधक; अधिकारी।
हाल ही में सरकार ने सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के साथ-साथ आरआरबी के एकीकरण की प्रक्रिया भी शुरू करने जा रही है। सरकार का मकसद आरआरबी की मौजूदा संख्या को 56 से घटाकर 36 करने की है। वहीं इस बारे में केंद्र ने राज्यों के साथ विचार विमर्श शुरू कर दिया है, क्योंकि वे भी देश में आरआरबी के प्रायोजकों में से एक हैं। इसके अलावा प्रायोजक बैंक किसी एक राज्य के भीतर स्थित आरआरबी के आपस में विलय की रूपरेखा तैयार कर रहे हैं।
सितंबर के प्रारंभ में सरकार ने बैंक आफ बड़ौदा, विजया बैंक और देना बैंक का विलय करके एक वैश्विक आकार के बैंक को बनाने का निर्णय लिया था। और अब आरआरबी के प्रस्तावित एकीकरण के तहत आरआरबी की संख्या को 56 से घटाकर 36 पर लाया जाएगा। इससे आरआरबी की दक्षता और उत्पादकता बढ़ेगी और साथ ही इन बैंकों की वित्तीय स्थिति में सुधार, वित्तीय समावेशन को बेहतर और ग्रामीण इलाकों में कर्ज का प्रवाह बढाया जा सकेगा। इसके अलावा, इस कदम से आरआरबी के बढ़ते ऊपरी खर्चों को कम करने में मदद मिलेगी, प्रौद्योगिकी के उपयोग में सुधार आयेगा और पूंजी आधार तथा संचालन के क्षेत्र में वृद्धि होगी। क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों का गठन आरआरबी अधिनियम 1976 के तहत किया गया है।
इस अधिनियम में 2015 में संशोधन किया गया था, जिसके तहत इन बैंकों को केन्द्र, राज्य सरकारों और प्रायोजक बैंक के अलावा दूसरे स्रोतों से पूंजी जुटाने की अनुमति दी गई है। क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों के वित्तीय सुधार के लिये एकीकरण की पहल 2005 में चरणबद्ध तरीके से की गई थी। मार्च 2005 के अंत में इनकी संख्या 196 से घटकर 133 हो गई थी। और आगे के वर्षो में भी एकीकरण से इसकी संख्या को 56 तक लाया गया। इससे इन बैंकों की वित्तीय स्थिति सुधरी। 2016-17 में लगभग 21,200 शाखाओं के माध्यम से संचालित आरआरबी के शुद्ध लाभ में 17 प्रतिशत की वृद्धि के साथ 2,950 करोड़ रुपये का कारोबार किया गया था। जौनपुर में भी आरआरबी की शाखा काशी गोमती संयुक्त ग्रामीण बैंक के नाम से पवन प्लाजा, सिविल लाइं में स्थित है।
संदर्भ :-
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