शायद हम में से कई लोगों ने होली में ठंडाई में, लड्डूओं में या बर्फी में भांग का उपयोग तो जरूर किया ही होगा। भारत में होली के दिन रंग गुलाल, लज़ीज पकवानों के अलावा जो एक चीज़ सामान्य होती है वह है भांग। यहां भारत में तो भांग को शिवजी का प्रसाद माना जाता है, भगवान शिव का नाम लेते हुए लोग खूब मजे से भांग के गिलास के गिलास पी जाते हैं। बहुत से लोगों को तो भांग और गांजे की लत भी होती है। लेकिन वे लोग इस बात से अनजान होते हैं कि यह उन्हें कितना नुकसान पहुंचा रही है। हम में से कई लोग तो ऐसे भी होंगे जिन्हें ये लगता है कि भांग और गांजा एक ही होता है। परन्तु ऐसा नहीं है। भांग के नर पौधे के पत्तों को सुखाकर भांग तैयार की जाती है और मादा पौधों की रालीय पुष्प व आसपास के पत्तों को सुखाकर गांजा तैयार किया जाता है।
गांजा (कैनाबिस या मारिजुआना), एक मादक पदार्थ है जो कैनाबिस (Cannabis) अर्थात मादा भांग के पौधे से बनाया जाता है। मादा भांग के पौधे के फूल, आसपास की पत्तियों एवं तनों को सुखाकर गांजा बनाया जाता है। इस मादा पौधे के फूल में रेजिन (राल के समान पदार्थ) का उत्पादन होता है जिसमें बहुत अधिक मात्रा में टीएचसी (टेट्राहाइड्रोकाइनबिनोल)- Tetrahydrocannabinol (THC) होता है। मादा पौधे के फूल के रेजिन से केवल गांजा ही नहीं बल्कि हैश ऑयल, चरस आदि उद्योगोपयोगी द्रव्य भी प्राप्त किए जाते हैं। परंतु टीएचसी का स्तर गांजे की तुलना में चरस में अधिक होता है।
यदि भांग की बात की जाये तो यह नर पौधे की पत्तियों व अन्य हिस्सों से प्राप्त किया जाता है। भांग का भी सक्रिय घटक टीएचसी ही होता है परंतु इसका स्तर गांजे की तुलना में कम होता है। भांग, पौधे की पत्तियों को पीस कर तैयार की जाती है। भारतवर्ष में भांग के पौधे सभी जगह पाये जाते हैं। उत्तर भारत में इसका प्रयोग बहुतायत से स्वास्थ्य, हल्के नशे, दवाओं मनोरंजक पेय पदार्थों जैसे ठंडाई आदि के लिए किया जाता है।
परंतु क्या आप यह बात जानते हैं कि मारिजुआना, गांजा और भांग ये सब ही मादक पदार्थ है और एनडीपीएस 1985 अधिनियम के कार्यान्वयन में इन सभी मादक पदार्थों को गैरकानूनी बताया है, लेकिन अधिकारियों के अनुसार भांग का उपयोग औषिधी के रूप में किया जा सकता है। भारत में भांग से कई सामाजिक और धार्मिक आस्थाएं जुड़ी हुई हैं और इस पर पूरी तरह से प्रतिबंध नहीं लगाया जा सकता।
मारिजुआना, गांजा और भांग आदि इन सभी को कैनबिस के नाम से जाना जाता है यह भांग के पौधे से तैयार किया जाता है जिसे एक प्सैकोएक्टिव ड्रग (psychoactive drug) या औषधि के रूप में उपयोग किया जाता है। कैनबिस का उपयोग सदियों से आध्यात्मिक और धार्मिक उद्देश्यों से होता आया है, यह सिर्फ हिंदुओं में ही नहीं बल्कि अनेकों धार्मिक संस्कृतियों में एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है। यदि इसके इतिहास की बात की जाये तो प्रचीन काल में इसका उपयोग मनुष्य अपना मस्तिष्क बदलने के लिए, अपने उद्देश्य, अर्थ, और ज्ञान के लिए एक मार्गदर्शन के रूप में किया करते थें। इसका उपयोग अभी भी दुनिया भर की संस्कृतियों द्वारा किया जा रहा है। कुछ धर्मों में ये अभिन्न भूमिका निभाता है।
कैनाबिस के उपयोग के शुरुआती उदाहरणों में से एक चीनी के 4वीं शताब्दी ईसा पूर्व के ताओ धर्म में भी पाया जाता है। प्रारंभिक ताओवादी ग्रंथों में अनुष्ठानों में धूप में कैनाबिस के उपयोग का उल्लेख किया गया है, जहां इसका उपयोग स्वार्थी इच्छाओं को खत्म करने और प्राकृतिकता की स्थिति प्राप्त करने के लिए किया जाता था। हिंदुत्व में भी कैनबिस का उल्लेख 3000 साल पुराने अथर्ववेद (हिंदू धर्म के प्राचीन वैदिक ग्रंथों में से एक है) में मिलता है। वेदों के मुताबिक, कैनबिस पांच पवित्र पौधों में से एक है और वेदों में इसको जड़ी बूटी तथा मुक्तिदाता के स्रोत के रूप में संदर्भित किया है जो इंद्रियों को प्रसन्न और भय को खत्म करता है। कहा जाता है की कैनाबिस शिव की ही देन है, उन्होने ही स्वयं के शरीर से कैनबिस उत्पन्न किया था ताकि जीवन रूपी अमृत को शुद्ध किया जा सके। भांग को भगवान शिव की पसंदीदा जड़ी-बूटियों के रूप में माना जाता है और शायद यही वजह है कि शिवरात्रि पर भगवान शिव को यह भांग चढ़ाई जाती है। ये हिंदू संस्कृति का अभिन्न अंग बन गया। यह सदियों से भारत के आध्यात्मिक, सामाजिक, सांस्कृतिक और धार्मिक समाज का हिस्सा रहा है।
बुद्ध धर्म में भी कैनाबिस का उल्लेख मिलता है। गौतम बुद्ध को कभी-कभी कैनाबिस पत्तियों को पकड़े हुए चित्रित किया जाता है। कहा जाता है की उनके जीवन में प्रबुद्धता के मार्ग पर प्रतिदिन एक भांग बीज के अलावा कुछ और नहीं रहता था। यदि पूर्वी धर्मों में कैनाबिस के उपयोग की बात करें तो यहां भी ईसाई धर्म में कैनाबिस के उपयोग पर कुछ सबूत संकलित किए गए हैं। इतना ही नहीं प्राचीन ग्रीक धर्म, रस्ताफ़ारी धर्म आदि में भी कैनाबिस के धार्मिक उपयोगों का वर्णन मिलता है।
भांग का भारत में एक समृद्ध इतिहास रहा है। इसका प्रयोग धार्मिक समारोहों के साथ-साथ आयुर्वेदिक चिकित्सा में किया जाता है। भांग में कई शक्तिशाली औषधीय गुण भी होते हैं आयुर्वेदिक चिकित्सा में सहस्राब्दी से इस पर शोध किये जा रहे है। यह पाचन समस्याओं, सिरदर्द, और माइग्रेन के साथ-साथ सभी प्रकार के दर्द और बुखार के इलाज में कारगर सिद्ध हो रहा है। परंतु इसके सेवन के कुछ दुष्प्रभाव भी होते हैं जैसे- गर्भवती महिलाओं, स्तनपान कराने वाली माताओं और बच्चों के लिए ये हानिकारक होता है, इसके अलावा हृदय रोग या उच्च रक्तचाप वाले लोगों को भी इससे दूर रहना चाहिए, ज्यादा सेवन से इसकी लत भी पड़ जाती है जो की आपके शरीर को काफी हानि पंहुचा सकती है।
संदर्भ:
1.https://www.quora.com/What-is-the-difference-between-marijuana-weed-ganja-and-bhaang
2.https://www.quora.com/In-India-bhang-is-legal-but-cannabis-is-not-Why
3.https://www.quora.com/Is-bhang-bad-for-health-Why-How-different-it-is-from-Alcohol
4.https://www.royalqueenseeds.com/blog-what-is-bhang-and-how-is-it-made-n683
5.https://www.royalqueenseeds.com/blog-a-brief-history-of-cannabis-use-in-world-religions-n624
6.https://goo.gl/LZ7X3z
7.https://goo.gl/scjGZW
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