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जौनपुर जो ‘शिराज़-ए-हिंद’ के नाम से भी प्रसिद्ध है, वाराणसी (भूतपूर्व बनारस) से 58 कि.मी. दूर उत्तरप्रदेश का एक प्रमुख ऐतिहासिक और धार्मिक शहर है। इस शहर की स्थापना 1360 में दिल्ली के सुल्तान फिरोज़ तुगलक ने अपने चचेरे भाई जौना खान की याद में की थी। इसी कारण इस शहर का नाम जौनपुर रखा गया, जो उनके पूर्वी (शर्क) प्रांत के शासक थे। यह मस्जिद फिरोज शाह के भाई बारबक खान द्वारा बनवाया गया था| किला अब भी यहाँ पर मौजूद है। इसके बाद 1397 के आस-पास मलिक सरवर ने जौनपुर को शर्की साम्राज्य के रूप में स्थापित किया और 1476 तक इन्होंने शासन किया था। आज हम जौनपुर के एक महत्वपूर्ण वास्तुकला के उदहारण झांझरी मस्जिद के विषय में श्री सैय्यद अनवर अब्बास द्वारा लिखे गए एक पेपर के अध्ययन से कुछ रोचक तथ्य जानेंगे।
कहा जाता है कि शर्की शासकों के काल में कला को बहुत महत्व दिया जाता था। उनके कार्यकाल में यहां पर अनेक मकबरों, मस्जिदों और मदरसों का निर्माण किया गया। इसलिये यह शहर मुस्लिम संस्कृति और कलाकृतियों के केन्द्र के रूप में भी जाना जाता है। यहां की अनेक ऐतिहासिक और खूबसूरत इमारतें अपने अतीत की कहानियां खुद बयां करती हैं। ऐसी ही एक इमारत गोमती नदी के किनारे बनी हुई है जिसको ‘झांझरी मस्जिद’ के नाम से जानते हैं। यह मस्जिहद पुरानी वास्तुीकला का एक अनोखा नमूना है। इसे इब्राहिम शाह शर्की (1401-1040) द्वारा 1408 के आस-पास हज़रत सैद सदर जहान अजमाली के सम्मान में बनवायी गई थी। उसी समय उन्होंने अटाला मस्जिद का निर्माण भी पूरा करवाया था, जिसका निर्माण कार्य 1376 में फिरोज़ शाह तुगलक द्वारा शुरू किया गया था।
झांझरी मस्जिद जौनपुर की विशिष्ट वास्तुकला शैली में बनायी गयी थी जिसमें संरचनाओं के अग्र भागों के बीच में एक बड़ा सा प्रवेश द्वार था। परंतु इसे सिकन्दजर लोदी ने शर्की सलतनत पर आक्रमण के दौरान ध्वपस्त करवा दिया था। लेकिन फिर भी उसका एक हिस्सा बचा हुआ रह गया और यह हिस्सा आज भी अस्तित्व के रूप में देखा जाता है। लोग इस मस्जिद को झांझरी उसकी नक्काशीदार जालियों या झांजीरी, अर्थात छिद्रित स्क्रीनिंग (Screening) के कारण भी कहते हैं। साथ-ही-साथ में 15वीं शताब्दी के अरबी भाषा की तुघरा शैली में की गयी अलंकरण की सजावटत भी इसमें मौजूद है। घुमाव दार किनारों में तुघरा अक्षरों की ऊंचाई लगभग 30 से.मी. है। आधार की तरफ ये और भी बड़े हैं, जो हस्तालिपिक शिला लेखों की एक क्षैतिज पट्टी है तथा मेहराब के सिरों से मिलती है।
इन घुमावदार किनारों के शिलालेखों में कुरान के सूरा-II के लिखित पद्य हैं और क्षैतिज पट्टी में हदीस (पैग़म्बर मुहम्मद के कथनों, कार्यों और आदतों का वर्णन करने वाले विवरण को हदीस कहते हैं) उद्धरण है, जिसमें ईश्वर के पैग़म्बर ने कहा है, “जो ईश्वर और सिर्फ ईश्वर के सम्मान में एक मस्जिद बनाता है, तथा उसकी पूजा करता है, ईश्वर स्वर्ग में उसके लिए एक महल बनाता है।” वर्तमान में झांझरी मस्जिैद भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ए.एस.आई.) की देखभाल में एक संरक्षित ऐतिहासिक स्थल है।
संदर्भ:
1.https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B9%E0%A4%A6%E0%A5%80%E0%A4%B8
2.https://www.academia.edu/12291208/15th_C_calligraphic_framing_in_Jhanjhiri_Masjid_Jaunpur_U.P._India