पुरातन चित्र पोस्टकार्ड एकत्रित करने की कला और उनका इतिहास

संचार और सूचना प्रौद्योगिकी उपकरण
30-11-2018 12:37 PM
पुरातन चित्र पोस्टकार्ड एकत्रित करने की कला और उनका इतिहास

पोस्टकार्ड एकत्रित करना टिकटों और धन इकट्ठा करने के बाद, सबसे आम शौक है और इसे दुनिया में कहीं भी किया जा सकता है। पोस्टकार्ड के अध्ययन और संग्रह को देल्टियोलोजी (Deltiology) के नाम से जाना जाता है। पोस्टकार्ड एक मोटे कागज या पतले गत्ते से बना एक आयताकार (Rectangular) टुकड़ा होता है जिसे संदेश लिखने के लिए प्रयोग किया जाता है, पोस्टकार्ड को पहली बार 19वीं शताब्दी में मुद्रित किया गया था, लेकिन इसे लोकप्रियता हासिल करने में कुछ समय लग गया। उस समय यह कुछ लोगों को पंसद भी नहीं आये थे क्योंकि इस पर लिखे संदेश को कोई भी पढ़ सकता था। परंतु आज के समय में पोस्टकार्ड का प्राचीन और पुराना संग्रह अत्यंत मूल्यवान बन गया है।

इसमें काफ़ी पैसा भी कमाया जाता है। वर्तमान में दुर्लभ पोस्टकार्डों की कीमत लाखों रुपयों में होती है। परंतु पुराने पोस्टकार्डों की कीमत उनकी स्थिति, दुर्लभता, आयु और विषय वस्तु सहित कई कारकों पर निर्भर है। यदि पोस्टकार्ड पर किसी प्रकार की खराबी अर्थात उसमें दाग धब्बे हो या कहीं से फटा हो तो इसकी कीमत पर असर पड़ता है। पोस्टकार्ड कितना पुराना है इस बात का भी उसकी कीमत पर असर पड़ता है, 2002 में लंदन स्टाम्प एक्सचेंज (London Stamp Exchange) नीलामी में 1840 में पोस्ट किये गये पोस्टकार्ड की कीमत 50,000 अमेरीकी डॉलर थी। इतना ही नहीं पोस्टकार्ड पर किस विषय वस्तु पर आधारित प्रिंट है उसका भी पोस्टकार्ड कीमत पर असर पड़ता है यहां तक की पोस्टकार्ड पर कलाकार का हस्ताक्षर शामिल है या नहीं यह किस देश में बना, तथा यह मुद्रित है या फोटो कार्ड है ये कारक भी पोस्टकार्डों की कीमत निर्धारित करते हैं।


दुर्लभ पोस्टकार्डों की बात की जाये तो क्या आप जानते हैं कि पोस्टकार्ड का आविष्कार आस्ट्रिया (Austria) में 1869 में हुआ था। ऑस्ट्रियाई पोस्ट-कार्ड प्रशासन ने 1 अक्टूबर, 1869 को कॉरेस्पोन्डज़ कार्टे (Correspondz Karte) के नाम से जाना जाने वाला दुनिया का पहला सरकारी पोस्ट-कार्ड अधिकृत किया था। वह इतना लोकप्रिय साबित हुआ कि तीन महीने में ही 30 लाख पोस्टकार्ड बिक गए। इसके बाद मानों पोस्टकार्डों का प्रचलन सा चल गया। जब फ्रांसीसी जर्मन युद्ध 1870 में हुआ, तो प्रशियाईओं ने अपनी सफलता के साथ अपना स्वयं का फील्ड सर्विस पोस्टकार्ड जारी किया था। उसके बाद 1872 में रूस, चिली, फ्रांस और अल्जीरिया ने तथा 1873 में फ्रांस, सर्बिया, रोमानिया, स्पेन और जापान के साथ संयुक्त राज्य अमेरिका ने भी पोस्टकार्ड जारी किये थें। आज इन पोस्टकार्डों की कीमत लाखों करोड़ो रूपयों में है।


रत्नेश माथुर और संगीता माथुर द्वारा लिखित और नियोगी बुक्स द्वारा प्रकाशित की गई “पिक्चरेस्क इंडिया: अ जर्नी इन अर्ली पिक्चर पोस्टकार्डस” (Picturesque India: A Journey In Early Picture Postcards (1896-1947)) में आप भारत के दुर्लभ और कीमती पोस्टकार्डों का संग्रह भी देख सकते हैं। ये पोस्टकार्ड औपनिवेशिक भारत से यूरोपीय लोगों द्वारा भेजे गये थें। इस किताब में कुल 500 पोस्टकार्ड्स के तशवीरें हैं जो भारत के हर राज्य के इतिहास और समय के साथ उनके विकास को दर्शाता है। ये दुर्लभ और ऐतिहासिक पोस्टकार्ड औपनिवेशिक भारत की कहानी बयां करते हैं।


आज लोगों में पोस्टकार्ड संग्रह करने का उत्साह इतना बढ़ गया है कि लोग इनके लिये हजारों मीलों की दूरी भी तय करने को तैयार है। ऐसा ही एक दुर्लभ संग्रह “पेपर ज्वेल्स: पोस्टकार्ड फ्रोम द राज” (Paper Jewels: Postcards from the Raj) में भारत, पाकिस्तान और श्रीलंका के 1892 से 1947 तक के दृश्यों के रंगीन छवियों वाले 500 विंटेज पोस्टकार्ड शामिल है। इन पोस्टकार्डों में चित्रकार एम. वी. धुरंधर, रवि वर्मा प्रेस (मुंबई), विदेशी लिथोग्राफरों और फोटोग्राफर आदि के काम भी शामिल हैं।

संदर्भ:
1.https://antiques.lovetoknow.com/Value_of_Old_Postcards
2.https://www.indiatoday.in/education-today/gk-current-affairs/story/correspondz-karte-world-first-postal-card-1353332-2018-10-01
3.https://qz.com/india/1464829/picture-postcards-capture-colonial-indias-bombay-bangalore/
4.https://www.thehindu.com/books/books-authors/paper-jewels-tracking-postcards-from-the-raj/article24531684.ece