जौनपुर एक कृषि प्रधान राज्य है, यहां पर विभिन्न प्रकार की फसलों का उत्पादन किया जाता है। आपकी इन स्थानीय फसलों को अलग-अलग देशों में भिन्न-भिन्न नामों से बुलाया जाता है। अलग-अलग देशों की तो छोड़िये अपने देश की ही बात करें तो अलग-अलग राज्यों में एक फसल को विभिन्न नामों से जाना जाता है, उदाहरण के लिये तोरई, तोरी या तुरई को भारत के कुछ राज्यों में ‘झिंग्गी’ भी कहा जाता है। यह भारत में ही नहीं अपितु कई देशों में उगाई जाती है और विभिन्न नामों से जानी जाती है। इसी समस्या का निवारण करने हेतु वैज्ञानिकों ने सभी जीव-जंतु और वनस्पतियों को वैज्ञानिक नाम दिये, जो कि संपूर्ण विश्व के लिये समान हैं।
इस नामकरण को द्विपद नामपद्धति कहते हैं। कार्ल लीनियस नामक एक स्वीडिश वनस्पतिशास्त्री, चिकित्सक और जीव वैज्ञानिक ने सबसे पहले इस दो नामों की नामकरण प्रणाली का उपयोग किया। उन्होंने इसके लिए पहला नाम वंश का और दूसरा प्रजाति विशेष के नाम को चुना था। यह नाम कोई साधारण नाम नहीं है। वनस्पतियों के वैज्ञानिक नाम का निर्धारण वर्गीकरण प्रणाली से होता है। आज पेड़-पौधों को समझने का काम वर्गीकरण के जरिए ही किया जाता है। इसलिये भारत में हर किसान को वर्गीकरण प्रणाली के बारे में पता होना चाहिए। अब आप सोच रहे होंगे वर्गीकरण प्रणाली है क्या और किसानों को इसके बारे में क्यों पता होना चाहिये? वर्गीकरण, विज्ञान का वह हिस्सा है जो जीवों के नामकरण और वर्गीकरण या उन्हें समूहबद्ध करने पर केंद्रित है।
यदि वनस्पतियों का वर्गीकरण न हुआ होता तो आज उनका अध्ययन करना अत्यंत ही जटिल होता। दुनिया में लाखों करोड़ों पौधों की प्रजातियां हैं। बारी-बारी करके प्रत्येक के बारे में जानना तो असंभव है। इसलिये वर्गीकरण व्यवस्था के जनक कार्ल लिनियस ने एक अत्यंत प्रतिभाशाली तरीके की खोज की, जिसमें जंतुओं और वनस्पतियों को आकारिकी, आकृतिविज्ञान, क्रियाविज्ञान, परिस्थितिकी, और आनुवंशिकी, शारीरिक विशेषताओं के आधार पर विभिन्न समूहों में बांटा गया। जिससे जंतुओं और वनस्पतियों के अध्ययन में सुविधा मिली, लिनियस द्वारा दी गई वर्गीकरण व्यवस्था कृषि जगत में भी काफी मददगार साबित हुई। पेड़-पौधों के इस वर्गीकरण के आधार पर बहुत सी जानकारियां प्राप्त की जा सकीं। जैसे कि बात करें अगर पादप कुल लेग्युमिनोसे (Leguminosae) की तो इस कुल में लगभग 400 वंश तथा 1250 जातियाँ मिलती हैं जिनमें से भारत में करीब 900 जातियाँ पाई जाती हैं, जैसे कि शीशम, काला शीशम, कसयानी, मसूर, खेसारी, मटर, उड़द, मूँग, सेम, अरहर, मेथी आदि। मात्र एक कुल के बारे में जानने से आपको 900 जातियों के जीवन चक्र, वातावरण तथा आकारिकी के बारे में जानकारी प्राप्त हो जाती है।
कार्ल लीनियस (1707 से 1778) ने द्विपद नामकरण की आधुनिक अवधारणा की नींव रखी और इन्हें आधुनिक वर्गिकी (वर्गीकरण) के पिता के रूप में भी जाना जाता है। इन्होंने ही प्रजातियों के द्विपद नामकरण और पदानुक्रम वर्गीकरण प्रणाली को विकसित किया। अपने जीवनकाल के दौरान, लीनियस ने पौधों, जानवरों और सीपियों के लगभग 40,000 नमूने एकत्र किए। उनका मानना था कि प्रजातियों का वर्गीकरण और नामकरण एक मानक तरीका है जिससे हम उनके बारे में अधिक जान सकते है। उन्होंने 1735 में, सिस्टेमा नेच्युरे (Systema Naturae) का अपना पहला संस्करण प्रकाशित किया, यह एक छोटी-सी पुस्तिका थी जिसमें प्रकृति के वर्गीकरण की अपनी नई प्रणाली को समझाते हुए लीनियस ने पशु प्रजातियों और पौधों की प्रजातियों को नामित किया और समूहबद्ध किया। इसके दशम संस्करण (1758) तक पहुंचते हुए 4400 से अधिक जंतुओं की प्रजातियों एवं 4400 से अधिक पादपों की प्रजातियों का वर्गीकरण किया गया था।
लीनियस ने अपनी वर्गीकरण प्रणाली को तीन जगत में वर्गीकृत किया था- जन्तु, पादप और खनिज। इन्होंने जगत को वर्गों में बांटा और फिर इस वर्ग को कई गणों में बांटा। जिसको आगे चल कर वंश और फिर जाति में बांटा गया आज भी हम इसी प्रणाली का उपयोग कर रहे हैं। समय के साथ इसमें अधिक परिशुद्ध व्याख्या के लिए इन श्रेणियों को भी विभाजित कर अन्य श्रेणियाँ बनाई गई हैं और कुछ श्रेणियाँ जोड़ी भी गई हैं।
संदर्भ:
1.https://study.com/academy/lesson/carolus-linnaeus-classification-taxonomy-contributions-to-biology.html
2.https://aajtak.intoday.in/education/story/carl-linnaeus-birthday-facts-23-may-history-1-930929.html
3.https://www.insa.nic.in/writereaddata/UpLoadedFiles/IJHS/Vol49_1_4_SKJain.pdf
4.https://goo.gl/GSXjwn
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