प्राचीन काल से ही मनुष्य की तीन मूलभूत आवश्यकता रही हैं- रोटी, कपड़ा और मकान। जिसकी आपूर्ति के लिये मनुष्य प्रारंभ से ही विभिन्न प्रयास करता आ रहा है। प्राचीन काल से जैसे-जैसे सभ्यता का विकास होता गया, वैसे-वैसे वस्त्रों का भी विकास हुआ। भारत, चीन, और मिस्र संभवतः पहले ऐसे देशों में से हैं जहां वस्त्र उत्पादन हुआ। भारत में प्राचीन काल से ही हस्तनिर्मित वस्त्रों की अपनी एक अलग पहचान रही है। शताब्दियों से हमारे बुनकर परम्परागत वस्त्रों का निर्माण करते आ रहे हैं। हस्तनिर्मित वस्त्रों की बात करें तो म्यांमार में दूर-दराज़ के क्षेत्रों में बसे समुदाय के कुशल कारीगर अपने करघे पर बैठते हैं और दुनिया के सबसे महंगे और बेहतरीन वस्त्र बनाते हैं। यह वस्त्र कमल के रेशों से बने होते हैं।
जी हां कमल के रेशों से बने वस्त्र, जिनकी प्रशंसा विश्वभर में होती आ रही है। इस कपड़े की कीमत 400 अमेरिकी डॉलर प्रति मीटर (लगभग ₹ 28,464/मीटर) से भी अधिक है। म्यांमार में इनले झील खूबसूरत पहाड़ियों के बीच पॉव खोन गांव में एक विशाल (20 किलोमीटर लंबी और 10 किलोमीटर चौड़ी) ताजे पानी की झील है जो कि खेतों से घिरी हुई है। लगभग 100 वर्षों पूर्व इनले झील की महिलाओं ने यहां पर उगने वाले कमल के तनों के रेशों का उपयोग कर के विभिन्न पैटर्न (Pattern) वाले वस्त्रों की बुनाई शुरू कर दी। शायद यह बात बहुत कम लोगों को ज्ञात होगी कि कमल के तंतुओं के मिश्रण से बने हुए रेशे अविश्वसनीय रूप से उच्च गुणवत्ता वाले कपड़े का उत्पादन करते हैं। शायद यही कारण है कि विदेशी पर्यटकों को यहां के विभिन्न पैटर्न वाले वस्त्रों ने अपनी ओर आकर्षित कर लिया है। इस वीडियों में आप बुनकरों द्वारा प्राचीन तकनीक से इस कपड़े को बनाते हुए देख सकते हैं:
इस कपड़े के एक वर्ग मीटर कपड़े को तैयार करने में कम से कम 20,000 कमल के तनों के फाइबर का उपयोग होता है। जिसका उत्पादन एक कुशल कारीगर द्वारा 40 दिनों में किया जाता है। यहां कहा जा सकता है कि परंपरागत तरीकों से एक छोटा सा स्कार्फ (Scarf) बनने में 3,000 कमल के तनों के फाइबर लग जाते हैं। इन फाइबरों को एक चाकू का उपयोग करके हाथ से निकाला जाता है। फिर एक साथ इकट्ठा कर के पुरानी साइकिल के पहियों द्वारा धागों की कताई की जाती है। इन धागों को रंगने के लिए विभिन्न रंगों का उपयोग किया जाता है और शुष्क होने के लिए बाहर लटका दिया जाता है। इन्हीं धागों से ये बहुमूल्य वस्त्र तैयार किये जाते हैं। कमल के रेशों को रेशम, कपास आदि रेशों के साथ मिश्रित करके भी वस्त्र तैयार किये जाते हैं, परंतु इनकी कीमत शुद्ध कमल के रेशों से बने वस्त्रों की तुलना में कम होती है।
म्यांमार एशिया में आर्थिक रूप से सबसे कमज़ोर देशों में से एक है, लेकिन कमल से बने इन कपड़ों ने इनले झील के लोगों की आर्थिक स्थिति में तेजी से एक अवांछनीय विकास किया है और साथ ही साथ इस कुटीर उद्योग को बढ़ावा देने में भी मदद की है। यही नहीं इस कपड़े की मांग फैशन की दुनिया में भी बहुत है। इस कपड़े से बनाई गयी एक जैकेट की कीमत लगभग 5,600 अमेरिकी डॉलर है। अब आप सोच रहे होंगे कि कमल तो जौनपुर क्षेत्र में भी बहुतायत में उगते हैं, तो क्या इस तकनीक को सीखना हमारे लिए संभव है? हालांकि कमल केवल वातानुकूलित जलीय क्षेत्रों में ही खिलते हैं परंतु फिर भी इस आधुनिक दुनिया में कुछ भी असंभव नहीं है। यदि आप चाहें तो उचित वातावरण और सही तकनीक से इस उद्योग को भी अपना सकते हैं।
इस कपड़े का व्यापारिक ही नहीं अपितु आध्यात्मिक महत्व भी बहुत है, खासकर बौद्ध धर्म में। बौद्ध भिक्षु कमल को शुद्धता और पवित्रता का प्रतीक मानते हैं इसलिये कमल के तंतुओं से बने परिधान उनके लिये सबसे योग्य वस्त्र हैं, नतीजन बौद्ध त्यौहारों के दौरान इन वस्त्रों की बिक्री भी बहुत बढ़ जाती है।
संदर्भ:
1.https://wander-lush.org/lotus-fabric-myanmar-inle-lake-weaving/
2.https://www.channelnewsasia.com/news/asia/lotus-stem-weaving-myanmar-khit-sunn-yin-10033996
3.https://mpora.com/travel/gallery-lotus-weavers-burma#fqzzo6iU1OUky0h6.97
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