बौद्ध धर्म के संस्थापक गौतम बुद्ध ने हमेशा से ही लोगों को धर्म का मार्ग दिखाया है। उनका जन्म वैशाख माह की पूर्णिमा के दिन नेपाल के लुम्बिनी में 563 ईसा पूर्व को हुआ था। और इसी दिन 80 वर्ष की आयु में उनका स्वर्गवास हो गया। वैसे तो बुद्ध के कई प्रतीक और मूर्तियां विश्व भर में स्थापित हैं, परंतु उनके जीवन के अंतिम क्षणों की मुद्रा का प्रतिनिधित्व करती हुई एक प्रतिमा बौद्ध धर्म में विशेष महत्व रखती है, वह है बुद्ध की लेटी हुई प्रतिमा। बौद्ध धर्म में इसे महापरिनिर्वाण (इसका अर्थ है मुक्ति या शरीर को त्यागना) के रूप में जाना जाता है।
यह एक प्रतिमा है जिसमें बुद्ध को लेटे हुए या विश्राम की आवस्था में दिखाया जाता है। यह प्रतिमा बौद्ध धर्म की एक मूर्ति-कला या प्रतिमाविद्या का उत्कृष्ट उदाहरण है। इस प्रतिमा में उनका दाहिना हाथ उनके सिर को सहारा देता हुआ दिखाई देता है, जिससे यह लगता है कि वे विश्राम की आवस्था में हैं। यदि दाहिना हाथ शरीर के बगल में होता है (जैसा कि ऊपर दिए चित्र में है।) तो कहा जा सकता है कि बुद्ध निर्वाण में प्रवेश कर चुके हैं। उनका बायां पैर दाएं पैर के ऊपर स्थित है, और उनका लबादा इस प्रकार दिख रहा है जैसे कि वे खड़े हैं। जब उनका बायां हाथ उनके शरीर के ऊपर स्थित है, तब बुद्ध की इस विशेष स्थिति को बौद्ध धर्म में महापरिनिर्वाण कहा जाता है।
महापरिनिर्वाण का निर्णय लेते हुए बुद्ध ने अपने शरीर को छोड़ने का फैसला किया और फिर उन्होंने यूपी के कुशीनगर में दो साल के पेड़ों के बीच अपने प्राण त्याग दिये। उनकी मृत्यु के बाद ये सवाल कि उन्होंने अपने आखिरी भोजन के रूप में क्या खाया था बड़ी बहस का विषय बन गया। कुछ लोगों का मानना था कि अपना आखिरी भोजन, जिसे उन्होंने कुन्डा नामक एक लोहार से एक भेंट के रूप में प्राप्त किया था, वह भोजन मांसाहारी था। कुछ समय के बाद बौद्ध धर्म भिक्षुओं में इन्हीं मतभेद के चलते दो समूहों हीनयान और महायान (दलाई लामा/नागार्जुन स्कूल) में विभाजित हो गया।
बौद्ध धर्म की एक कथा के अनुसार एक दानव असुरिंद्राहू, बुद्ध को देखना चाहता था, परंतु वो उनके सामने झुकना नहीं चाहता था। उसे बुद्ध ने लेटे हुए महापरिनिर्वाण स्थिति में पहले अपना विशाल रूप दिखाया और फिर स्वर्ग का क्षेत्र और वहां की कुछ मूर्तियों के दर्शन कराए जो दानव असुरिंद्राहू से भी बड़ी थीं। जिसके बाद दानव का बड़े होने का अहंकार टूट गया और वो विनम्र प्रवृत्ति का हो गया और बुद्ध की आराधना करने लगा।
उनके अंतिम प्रत्यक्ष शिष्य सुभद्दा थे। जिन्होंने उनके अंतिम उपदेश को ग्रहण किया। बुद्ध की मृत्यु के बाद, उनके अनुयायियों ने उनके अंतिम उपदेश का प्रचार किया और उनकी इस विशेष स्थिति की प्रतिमा बनाने का फैसला किया, और दशकों बाद उनकी ये प्रतिमा बनाई गई। वाट फॉ (Wat Pho) में भी बुद्ध की महापरिनिर्वाण स्थिति की एक भव्य और विशाल प्रतिमा है, जिसके दोनों चरणों के तलवों में बुद्ध की 108 विशेषताओं को प्रदर्शित किया गया है। सारनाथ (जहां उन्होंने अपना पहला उपदेश दिया) और जौनपुर क्षेत्र के बीच में भी ऐसी कई प्राचीन बुद्ध की मूर्तियां पाई गई हैं।
संदर्भ:
1.http://www.buddha-images.com/reclining-buddha.asp?fbclid=IwAR3nnqs-NqJsocZL2igTcy0xCXk4y7PKgAsPQDgywvPC4jlLbTvlrmAf7sk
2.https://www.facebook.com/photo.php?fbid=10153210819721239&set=a.10150426417856239&type=3&theater
3.https://aajtak.intoday.in/gallery/ten-famous-temple-of-lord-buddha-11-10351.html
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