भारत की अमूर्त सांस्कृतिक विरासत कई साल पुरानी सभ्यता से चली आ रही है। भारत ने अधिकांश एशिया के धार्मिक जीवन को गहन रूप से प्रभावित किया है और प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से विश्व के अन्य भागों पर भी अपना प्रभाव छोड़ा है। आज हम आपको ऐसे ही संबंध के बारे में बताएंगे, जिसमें दो देशों के बीच व्यापारिक सम्बन्ध ही नहीं, बल्कि पारिवारिक सम्बन्ध भी देखने को मिलता है।
‘अयोध्या’ जिसे हम भगवान राम की जन्म भूमि के नाम से जानते हैं। परंतु क्या आप जानते हैं कि अयोध्या का कोरिया के शाही खानदान से एक ऐतिहासिक रिश्ता है। और यह सम्बन्ध कोई आज का नहीं बल्कि 2000 साल पुराना है। एक किंवदंती के अनुसार अयोध्या नगरी की राजकुमारी सुरीरत्ना दो हजार साल पहले कोरिया जाकर वहीं बस गईं थी। वहां उन्होंने कोरिया के कारक वंश के राजा सुरो से शादी की और उसके बाद वो कभी वापस अयोध्या नहीं आईं। कोरिया में उन्हें रानी हेओ-ह्वांग-ओक के नाम से जाना जाता है और उनकी मृत्यु 157 साल की उम्र में हो गयी थी। कोरिया के लोगों का मानना है कि सुरीरत्ना ने ही कोरिया में राजघरानों की स्थापना की थी। अयोध्या में सरयू नदी के किनारे, प्राचीन कोरियाई राज्य कारक की महारानी हेओ-ह्वांग-ओक का स्मारक भी बनाया गया है।
कोरिया के पौराणिक दस्तावेज ‘सामगुक युसा’में राजा सुरो और सुरीरत्ना के विवाह की कहानी भी शामिल है, जिसके अनुसार प्राचीन कोरिया में कारक वंश को स्थापित करने वाले राजा सुरो की पत्नी यानी सुरीरत्ना मूल रूप से ‘आयुत’ की राजकुमारी थी। और कुछ नृतत्व शास्त्रियों के अनुसार ‘आयुत’ वास्तव में अयोध्या ही था। कुछ चीन के पौराणिक दस्तावेजों में उल्लिखित कथा के अनुसार अयोध्या की राजकुमारी के पिता के स्वप्न में स्वयं भगवान ने उन्हें राजा किम सुरो से शादी करवाने के लिए अपनी 16 वर्षीय बेटी को समुद्र के रास्ते दक्षिण कोरिया में भेजने का आदेश दिया था।
दरअसल राजकुमारी ने कोरिया की यात्रा नाव से तय की थी और अपनी नाव को संतुलन में रखने के लिए एक जुड़वा मछली का पत्थर लेकर अयोध्या से कोरिया आयी थी। कोरिया में आज भी यह पत्थर है। माना जाता है कि जिसे राजकुमारी अपने साथ लेकर आयी थी यह पत्थर अयोध्या का प्रतीक चिह्न है। और ये चिह्न कोरिया के किमहाए शहर में राजा सुरो के शाही स्मारक पर भी बना हुआ है।
आज की तारीख में इतिहासकारों का कहना है कि कोरिया में कारक वंश के तकरीबन 60 लाख लोग हैं जो स्वयं को राजा सुरो और अयोध्या की राजकुमारी का वंशज बताते हैं। इन लोगों की आबादी दक्षिण कोरिया की कुल आबादी का एक दसवां भाग है।
सिर्फ एक यही ऐतिहासिक कड़ी नहीं है जो कोरिया और भारत के मध्य संबंध को दर्शाती है। यदि आप इतिहासकार डी.पी. सिंघल की "इंडिया एंड वर्ल्ड सिविलाइज़ेशन वॉल्यूम 2” (India And World Civilization Vol. 2) देखें तो आपको कई अन्य ऐतिहासिक लिंक देखने को मिलेंगे जिनमें भारत के कोरिया से प्राचीन संबंधों को दर्शाया गया है। इसमें बताया गया है कि चौथी शताब्दी के उत्तरार्ध में बौद्ध धर्म कोरिया तक पहुंचा था। उस समय कोरिया तीन साम्राज्यों में विभाजित था और इसी समय भारतीय/तिब्बती भिक्षु मारनंदा 384 ईस्वी में पेकचे में आए थे जिन्होंने वहां बौद्ध धर्म का प्रचार प्रसार किया था। पेकचे भी निश्चित रूप से कोगुर्यु और सिल्ला के साथ प्राचीन कोरिया के तीन साम्राज्यों में से एक था। इन तीनों साम्राज्यों में बौद्ध धर्म का इतिहास अलग- अलग है।
मध्य एशिया और चीन में बौद्ध धर्म का एक दृढ़ आधार था, यहीं से पूर्वी एशिया व दक्षिण पूर्व एशिया में बौद्ध धर्म को बहुत बढ़ावा मिला। इतना कि बौद्ध धर्म कोरिया, जापान और मंगोलिया आदि देशों तक पहुँच गया था। माना जाता है कि बौद्ध सिद्धांतों का अध्ययन करने के लिए कई कोरियाई भिक्षु चीन गए थे, और यहां तक कि कुछ भिक्षु भारत भी आये थे। इत्सिंग के अनुसार पांच कोरियाई भिक्षुओं ने सातवीं शताब्दी के दौरान भारत का दौरा किया था। एक प्रमुख कोरियाई भिक्षु प्रजनावरमन ने समुद्र द्वारा चीन में फुकियन तक यात्रा की थी और फिर उन्होंने ग्रेट फेथ (Great Faith) के मठ में दस वर्षों तक संस्कृत सीखी और बौद्ध धर्म का अध्ययन किया। उसके बाद वे एक चीनी भिक्षु के साथ में भारत चले गए।
इस प्रकार पौराणिक उल्लेखों में कई बार भारत और अन्य देशों के बीच ऐतिहासिक रिश्ता-नाता देखने को मिलता है। यह संबंध समाजों एवं संस्कृतियों के बीच सांस्कृतिक एवं सभ्यतागत वार्ता को बनाए रखने में मदद करता है और अंतर्राष्ट्रीय समुदाय के बीच विकास एवं शांति का सशक्त माध्यम भी बन सकता है।
संदर्भ:
1.https://www.bbc.com/news/world-asia-india-46055285?SThisFB&fbclid=IwAR0jxoquAhKQBcv6WlNT-x0tgGbblUYTqVdjyTiEya42URlhUVN_uXixx9Y
2.https://www.speakingtree.in/blog/lord-rams-ayodhya-and-the-korean-royal-family-have-a-connection
3.https://archive.org/details/in.ernet.dli.2015.147645/page/n11
© - 2017 All content on this website, such as text, graphics, logos, button icons, software, images and its selection, arrangement, presentation & overall design, is the property of Indoeuropeans India Pvt. Ltd. and protected by international copyright laws.