औपनिवेशिक काल के दौरान भारतीय सेना को दिए गए पदक

जौनपुर

 12-11-2018 04:00 PM
उपनिवेश व विश्वयुद्ध 1780 ईस्वी से 1947 ईस्वी तक

11 नवंबर 1918 को उस वैश्विक महाभारत का अंत हुआ था जिसमें हजारों भारतीय सैनिक हताहत हुए थे। 28 जुलाई 1914 को छिड़े प्रथम विश्वयुद्ध में भारतीय सेना (जिसे ब्रिटिश भारतीय सेना भी कहा जाता है) ने यूरोप, फ्रांस, मिस्र, फिलिस्तीन, गैलीपोली, पूर्वी अफ्रीका, मेसोपोटामिया, भूमध्यसागरीय तथा मध्य पूर्व के युद्ध क्षेत्र सहित दुनिया भर में अपना योगदान दिया था। लाखों भारतीय सैनिकों ने विदेशों में अपनी सेवाएं दी थीं जिनमें से 62,000 सैनिक मारे गए थे और अन्य 67,000 घायल हो गए थे। युद्ध के दौरान कुल मिलाकर 74,187 भारतीय सैनिकों की मौत हुई थी। और जो जीवित घर लौट पाए वे अपने साथ टूटी हुई हड्डियों, घायल शरीर और अपनी बहादुरी के लिये सम्मानित पदकों को साथ लाये थे। इस विशाल युद्ध में शहीद हुए वीरों की याद में हर वर्ष 11 नवम्बर को युद्धविराम दिवस या आर्मिसटाइस डे (Armistice Day) के रूप में जाना जाता है।

सभी भारतीय सैनिकों ने इस भयानक युद्ध में अपनी सेवा के लिए एक, दो, यहां तक कि तीन अलग-अलग अभियान पदक अर्जित किए थे। अपनी बहादुरी के कारण हजारों पदक अर्जित करने के अलावा भारतीय सैनिकों ने 11 विक्टोरिया क्रॉस (Victoria Cross) भी प्राप्त किये थे। इस संघर्ष में विक्टोरिया क्रॉस (वी.सी.) के पहले भारतीय प्राप्तकर्ता का सम्मान खुदादद खान को मिला था। ब्रिटिश साम्राज्य के अधिकारियों, अन्य पदों और असैनिक अधिकारियों को दिए गए पदक व्यक्तिगत रूप से प्राप्तकर्ता को नामित किए गए थे, जिससे प्रत्येक पदक अनूठा और अक्सर शोध योग्य होता था। आइये जानते हैं इन विभिन्न पदकों के बारे में:

1914 स्टार:

1914 स्टार, जिसे आमतौर पर ‘मॉन्स स्टार’ (Mons Star) के नाम से जाना जाता है, से उन सभी को सम्मानित किया गया जिन्होंने 5 अगस्त से 22 नवंबर 1914 तक फ्रांस और बेल्जियम में अपनी सेवा प्रदान की थी। ये वे सैनिक थे जो पश्चिमी मोर्चे पर शुरुआती महीनों के दौरान सबसे पहले पहुंचे थे। 1914 स्टार के प्राप्तकर्ताओं को ब्रिटिश वॉर पदक (British War Medal) और विजय पदक से भी सम्मानित किया गया था। इस पदक का स्टार कांस्य से बना था और इसके रिबन (Ribbon) में लाल, सफेद और नीले रंग की सीधी पट्टियां थीं। परंतु ब्रिटिश सेना के सम्मानित लोगों के पदकों और भारतीय सेना के पदकों के बीच अंतर था, भारतीय पदक पीछे से सपाट थे किंतु ब्रिटिश सेना के नहीं। ग्रेट ब्रिटेन में कुल मिलाकर 3,78,000 1914 स्टार पदक जारी किए गए थे।

1914-15 स्टार:

1914-15 स्टार से उन सभी को सम्मानित किया गया था जिन्होंने 5 अगस्त 1914 और 31 दिसंबर 1915 के बीच युद्ध में किसी भी प्रकार की सेवा प्रदान की थी, और 1914 स्टार के लिए अर्हता प्राप्त नहीं की थी। यह पदक 1914 स्टार के काफी समान है, बस इसमें "AUG" और "NOV" सूचीपत्र नहीं था और 1914 सूचीपत्र को 1914-15 सूचीपत्र के साथ बदल दिया गया था परंतु रिबन समान ही थी। 1914 के स्टार की तरह, 1914-15 स्टार के धारक को भी ब्रिटिश वॉर पदक और विजय पदक से सम्मानित किया गया था, इसे भी कभी अकेले नहीं दिया जाता था।

ब्रिटिश वॉर पदक:

1914-18 के दौरान ब्रिटिश, राज्यसंघ या शाही सैन्य गठन और कुछ मान्यता प्राप्त स्वयंसेवी संगठनों में सेवा करने वाले किसी भी व्यक्ति को ब्रिटिश वॉर पदक से सम्मानित किया गया था। कुछ पदक 1919-20 के बीच रूस में सेवा करने वालों और 11 से 30 नवंबर 1919 के बीच खान-समाशोधन अभियान में शामिल होने वालों के लिये भी जारी किये गये थे। अधिकांश ब्रिटिश वॉर पदक चांदी से बने हुए थे, भारतीय सेना को भी चांदी से बने हुए पदक से सम्मानित किया गया था। परंतु 1,10,000 पदक कांस्य से बने हुए थे जिनसे चीनी, माल्टीज़ और अन्य श्रमिक सैन्य-दल को सम्मानित किया गया था। इसके रिबन में मध्य में नारंगी पट्टी और दोनों तरफ सफेद, काली, और नीली रंग की सीधी पट्टियां थी।

विजय पदक:

यह पदक स्वचालित रूप से उन व्यक्तियों को दिया गया था जिन्होंने 1914 स्टार या 1914-15 स्टार प्राप्त किया था। विजय पदक से 19वें लैंसर्स (19th Lancers) के जेमादार जुम्मा खान, को सम्मानित किया गया। 5 अगस्त 1914 और 11 नवंबर 1918 के बीच युद्ध के किसी भी क्षेत्र में भाग लेने वाले को विजय पदक से सम्मानित किया गया था।

भारतीय मेधावी सेवा पदक (IMSM):

भारतीय मेधावी सेवा पदक (IMSM) उन भारतीय वारंट अधिकारियों और वरिष्ठ एन.सी.ओ. को दिया गया था, जिन्होंने अपने अठारह साल मेधावी सेवा में कार्यरत रह कर पूरे किये थे।

भारतीय विशिष्ट सेवा पदक (IDSM):

भारतीय विशिष्ट सेवा पदक ब्रिटिश भारतीय सेना के दो विशिष्ट भारतीय बहादुरी पुरस्कारों में से एक था। यह ब्रिटिश साम्राज्य के सैन्य पदक में उच्च स्थान पर है। इसका सम्मान आज़ादी के बाद के वीर चक्र और ब्रिटिश सेना के विशिष्ट आचरण पदक (डी.सी.एम.) के बराबर था। प्रथम विश्व युद्ध में कुल मिलाकर 5,600 भारतीय विशिष्ट सेवा पदक जारी किए गए थे।

भारत सामान्य सेवा पदक; अकवार-अफगानिस्तान 1919:

वैश्विक संघर्ष के परिणामस्वरूप 1919 में तीसरे अफगान युद्ध में कई भारतीय सैनिक शामिल हुए थे। यह पदक उन लोगों को दिया गया जिन्होंने जनरल सर ए.ए. बार्राट के तहत सेवा दी थी।

विशिष्ट फ्लाइंग क्रॉस (DFC):

युद्ध में दुश्मन के खिलाफ सक्रिय संचालन में उड़ान भरने के दौरान बहादुरी के कार्यों के संबंध में आर.ए.एफ. के अधिकारियों और वारंट अधिकारियों के लिए प्रतिष्ठित फ्लाइंग क्रॉस (डी.एफ.सी.) की स्थापना की गई थी। प्रथम विश्व युद्ध में इस पदक से सम्मानित किये जाने वाले एकमात्र भारतीय लेफ्टिनेंट इंद्र लाल रॉय थे।

विक्‍टोरिया क्रॉस:

शत्रु के विरूद्ध सेना में सर्वश्रेष्‍ठ प्रदर्शन के लिए ब्रिटिश सरकार द्वारा विक्‍टोरिया क्रॉस प्रदान किया जाता था। 1856 में स्‍थापित इस सम्‍मान के लिए 1911 तक भारतीय सेना को योग्‍य नहीं माना गया था। तब तक इंडियन ऑर्डर मेरिट (Indian Order Merit) सम्‍मान को ही भारतीय सेना के लिए विक्‍टोरिया क्रॉस सम्‍मान के बराबर माना जाता था। प्रथम विश्‍व युद्ध में भारतीय सैनिकों को पहली बार इस सम्‍मान से नवाज़ा गया।

ऑर्डर ऑफ ब्रिटिश इंडिया (Order of British India):

भारतीय सैनिकों को उनकी लम्‍बी सेवा के दौरान दिखाई गयी वफादारी के सम्‍मान के लिए 1837 में ब्रिटिश सरकार द्वारा ऑर्डर ऑफ ब्रिटिश इंडिया सम्‍मान की स्‍थापना की गयी। जिसे वर्गानुसार वितरित किया जाता था, सरदार बहादुर यह सम्‍मान प्राप्‍त करने वाले पहले भारतीय बने।

इंडियन ऑर्डर ऑफ मेरिट (Indian Order of Merit):

इंडियन ऑर्डर ऑफ मेरिट सम्‍मान भारतीय सेना के लिए सर्वश्रेष्‍ठ सम्‍मान था। 1912 तक यह विक्‍टोरिया क्रॉस के समान ही था। यह सेना नायक को पदानुसार वितरित किया जाता है। यह मरणोपरांत भी प्रदान किया जा सकता था। इसे रूस के सर्वश्रेष्‍ठ सैन्‍य सम्‍मान ऑर्डर ऑफ सेंट जॉर्ज (Order of St. George) से प्रेरित होकर तैयार किया गया था।

सैन्‍य कॉस:

1914 में स्‍थापित सैन्‍य कॉस शत्रु के विरूद्ध चलने वाले अभियान के दौरान सैनिक द्वारा सक्रिय भूमिका निभाने के लिए प्रदान किया जाता था। प्रथम विश्‍व युद्ध के दौरान 106 भारतियों को इस सम्‍मान से नवाज़ा गया। अगस्‍त 1916 से एक सैनिक एक से अधिक सैन्‍य क्रॉस प्राप्‍त कर सकता था।

संदर्भ:
1.https://www.livemint.com/Leisure/hxr9Fg4qIX0hYqfDFaw1hM/Stars-and-stripes.html
2.http://indiaww1.in/Gallantry-and-Meritorious-Service-Awards.aspx
3.http://indiaww1.in/Campaign-Medals.aspx
4.http://indiaww1.in/MILITARIA.aspx



RECENT POST

  • नटूफ़ियन संस्कृति: मानव इतिहास के शुरुआती खानाबदोश
    सभ्यताः 10000 ईसापूर्व से 2000 ईसापूर्व

     21-11-2024 09:24 AM


  • मुनस्यारी: पहली बर्फ़बारी और बर्फ़ीले पहाड़ देखने के लिए सबसे बेहतर जगह
    पर्वत, चोटी व पठार

     20-11-2024 09:24 AM


  • क्या आप जानते हैं, लाल किले में दीवान-ए-आम और दीवान-ए-ख़ास के प्रतीकों का मतलब ?
    वास्तुकला 1 वाह्य भवन

     19-11-2024 09:17 AM


  • भारत की ऊर्जा राजधानी – सोनभद्र, आर्थिक व सांस्कृतिक तौर पर है परिपूर्ण
    आधुनिक राज्य: 1947 से अब तक

     18-11-2024 09:25 AM


  • आइए, अंतर्राष्ट्रीय छात्र दिवस पर देखें, मैसाचुसेट्स इंस्टिट्यूट ऑफ़ टेक्नोलॉजी के चलचित्र
    वास्तुकला 1 वाह्य भवन

     17-11-2024 09:25 AM


  • आइए जानें, कौन से जंगली जानवर, रखते हैं अपने बच्चों का सबसे ज़्यादा ख्याल
    व्यवहारिक

     16-11-2024 09:12 AM


  • आइए जानें, गुरु ग्रंथ साहिब में वर्णित रागों के माध्यम से, इस ग्रंथ की संरचना के बारे में
    विचार I - धर्म (मिथक / अनुष्ठान)

     15-11-2024 09:19 AM


  • भारतीय स्वास्थ्य प्रणाली में, क्या है आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस और चिकित्सा पर्यटन का भविष्य
    विचार 2 दर्शनशास्त्र, गणित व दवा

     14-11-2024 09:15 AM


  • क्या ऊन का वेस्ट बेकार है या इसमें छिपा है कुछ खास ?
    नगरीकरण- शहर व शक्ति

     13-11-2024 09:17 AM


  • डिस्क अस्थिरता सिद्धांत करता है, बृहस्पति जैसे विशाल ग्रहों के निर्माण का खुलासा
    शुरुआतः 4 अरब ईसापूर्व से 0.2 करोड ईसापूर्व तक

     12-11-2024 09:25 AM






  • © - 2017 All content on this website, such as text, graphics, logos, button icons, software, images and its selection, arrangement, presentation & overall design, is the property of Indoeuropeans India Pvt. Ltd. and protected by international copyright laws.

    login_user_id