परम्परा से नाता नहीं तोड़ा जा सकता है। अतीत का प्रभाव वर्तमान पर पड़ता ही है, फिर चाहे वो हमारे समाज पर हो या फिर भाषा पर। हमारी सबसे प्राचीन भाषा संस्कृत एक भाषा ही नहीं, दर्शनशास्त्र, इतिहास और साहित्य भी है। संस्कृत भाषा में कई साहित्य और नाटकों की रचना हुई है। इन साहित्यों के माध्यम से हमें अपने कल तथा उससे आज पर पड़े प्रभाव को जानने में सहायता मिलती है। ऐसा ही एक संस्कृत साहित्य है ‘मृच्छकटिकम्’ जिसमें उल्लिखित प्राकृत भाषा हमारी वर्तमान हिन्दी के लिए मार्ग प्रशस्त करती है। यह भाषा के विकास का एक रूप है, जो संस्कृत से प्राकृत की ओर अग्रसर हुआ और आगे चलकर पालि, अपभ्रंश बना और अंततः जिसने हिन्दी का स्वरूप धारण किया।
'मृच्छकटिकम्' यानी मिट्टी की गाड़ी संस्कृत साहित्य की सबसे प्रसिद्ध नाट्यकृतियों में से एक है, जिसे शूद्रक द्वारा रचित बताया जाता है। शूद्रक का जीवन-काल काफी विवाद का विषय रहा है। वे कौन थे, उनका जन्म कहां और कब हुआ, ऐसे तमाम सवालों के उत्तरों में संस्कृत साहित्य के विद्वान एकमत नहीं हैं। कुछ लोग उन्हें राजा शूद्रक के नाम से जानते हैं तो अन्य कुछ लोग का कहना है कि शूद्रक कोई था ही नहीं, वह एक कल्पित पात्र है।
एक मत के अनुसार यह नाटक किसी अन्य (महाकवि भास) ने लिखा था तथा इसका नाम ‘दरिद्र चारुदत्त’ है। दरिद्र चारुदत्त भाषा और कला की दृष्टि से ‘मृच्छकटिकम्’ से पुराना नाटक है, जो चार अंकों में लिखा था, बाद में उसी को दस अंकों में विकसित करके राजा शूद्रक के नाम से प्रचारित कर दिया गया, और निरन्तर सम्पादित होने से यह प्रसिद्ध हो गया। परन्तु पुराने समय में शूद्रक कोई राजा था इसका उल्लेख हमें कादम्बरी, कथासरित्सागर, हर्षचरित और राजतरंगिणी जैसी रचनाओं में मिलता है। मृच्छकटिकम् की प्रस्तावना में ऐसे तीन श्लोक दिए गए हैं, जिनमें नाट्यकार स्वयं अपना परिचय देता है और अपनी मृत्यु का वर्णन करता है। अत: इन्हें काल्पनिक नहीं कहा जा सकता।
शूद्रक द्वारा रचित मृच्छकटिकम् सामाजिक नाटकों में प्रमुख स्थान रखता है और अपने काल की सामाजिक स्थिति का प्रतिबिम्ब प्रस्तुत करता है। सदियों पुराना यह नाटक वास्तव में काफी रोचक है। मृच्छकटिकम् की शैली सरल है। इसमें प्राकृत भाषा की सभी शैलियों का प्रयोग मिलता है। शूद्रक ने राज परिवार को छोड़कर समाज के मध्यम वर्ग के लोगों को अपने नाटक का पात्र बनाया। इसके हिंदी अनुवादित नाटक का वीडियो आप नीचे देख सकते हैं। शूद्रक की नाट्य कला बड़ी प्रशंसनीय है।
यह नाटक उज्जयिनी के निवासी चारुदत्त नामक एक ब्राह्मण की कहानी पर आधारित है, जो अपनी उदारता के कारण निर्धनता की स्थिति में पहुंच जाता है। उसकी उदारता और मृदु व्यवहार पर एक गणिका (वैश्या) वसंतसेना, उसके प्रति आकर्षित हो जाती है। उक्त नाटक चारुदत्त तथा वसंतसेना के बीच के निःस्वार्थ तथा निश्छल प्रेम पर केंद्रित है। इसी के साथ आर्यक के राजा (पाकल) और उनके साले (शकार) की राजनीतिक कथा भी जुड़ी हुर्इ है। प्राचीन संस्कृत नाटकों में ‘विदूषक’ नाम का पात्र भी सामान्यतः मौजूद रहता था। वह प्रायः मुख्य पात्र नायक का मित्र होता था। उक्त नाटक में चारुदत्त का मित्र मैत्रेय विदूषक की भूमिका निभाता है। यह नाटक नागरिक जीवन का भी यथावत् चित्र अंकित करता है। इस विशेषता के कारण यह यथार्थवादी रचना संस्कृत और हिंदी साहित्य में अनोखी है। इसका अनुवाद हिंदी के साथ-साथ विविध भाषाओं में हो चुका है और भारत तथा अमेरीका, रूस, फ्रांस, जर्मनी, इटली, इंग्लैण्ड के अनेक रंगमंचों पर इसका सफल अभिनय भी किया जा चुका है।
संदर्भ:
1.https://sol.du.ac.in/mod/book/tool/print/index.php?id=1490http://sol.du.ac.in/mod/book/tool/print/index.php?id=1490
2.https://www.youtube.com/watch?v=x4nSANlb6CA
3.https://en.wikipedia.org/wiki/M%E1%B9%9Bcchakatika
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