सब्जियों के राजा की बात आये तो दिमाग में एकदम आलू का नाम आता है। अनोखे गुणों का धनी आलू विश्व के अधिकांश हिस्सों में प्रसिद्ध है। यदि इतिहास देखें तो कई देशों की जनसंख्या अकाल के दौरान आलू पर ही निर्भर थी। भारतीय अर्थव्यवस्था में भी आलू एक अहम भूमिका निभाता है। 5000-8000 ईसा पूर्व सर्वप्रथम आलू पेरू(Peru) में उगाया गया। आज हम बात करेंगे आलू के रोचक इतिहास और भारत में इसके आगमन के बारे में।
16वीं शताब्दी के दौरान आलू दक्षिण अमेरिका से विश्व के अन्य भागों में फैल रहा था, किंतु यूरोप के अधिकांश देशों में इसे संदिग्ध दृष्टि से देखा जा रहा था, यहां तक कि इसे कुष्ठ रोग का कारण माना जाता था। फ्रांस में तो आलू सूअरों को खिलाया जाता था। 18वीं सदी में एंटोनी-ऑगस्टिन परमेंटियर (फार्मासिस्ट) ने फ्रांस में आलू की छवि परिवर्तित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। युद्ध के दौरान ये तीन वर्ष तक जेल में रहे, जहां इन्हें भोजन के रूप में आलू दिया गया जेल से बाहर आने के बाद इनका झूकाव आलू की ओर हो गया तथा इन्होंने आलू पर अध्ययन कर लोगों की इसके प्रति मानसिकता बदली। इनके प्रयासों ने फ्रांस में आलू की खेती में क्रांति ला दी, यहां तक की यूरोप में आलू ने खाद्य आपूर्ति को दोगुना कर दिया। जो आकाल के दौरान लोगों के लिए अत्यंत सहायक सिद्ध हुआ। फ्रांस में एंटोनी-ऑगस्टिन परमेंटियर की आलू के साथ अनेक मूर्तियां बनाई गयी हैं।
यूरोप से आलू संपूर्ण एशिया में पहुंचा। अफ्रिका में आलू उपनिवेशों के साथ 16 वीं शताब्दी में पहुंचा, प्रारंभ में इसे जहरीला मानकर, यहां के स्थानीय किसानों द्वारा इसका विरोध किया गया। लेकिन धीरे धीरे यह यहां भी प्रसिद्ध हो गया। यहां तक कि यह रवांडा की प्रमुख फसलों में शामिल हो गया। भारत में सर्वप्रथम आलू (आयरिश आलू) की खेती अंग्रेजों द्वारा 1820 में मसूरी में की गयी। इसके लिए पहला प्रयास सिमूर बटालियन के संस्थापक फ्रेडरिक यंग के द्वारा किया गया। 200 वर्ष पूर्व जिस क्षेत्र (लंढोर) में इन्होंने सर्वप्रथम आलू उगाया, उसी क्षेत्र में इन्होंने अपना एक कॉटेज बनाया, जो आज लेखक और इतिहासकार गणेश सैली का घर है। भारत के अन्य क्षेत्रों में भी आलू का उत्पादन औपनिवेशिक काल के दौरान हुआ। जिसमें जौनपुर शहर भी शामिल है।
आज विश्व में आलू के अनगिनत व्यंजन तैयार किये जाते हैं। जिनमें से कई उबालकर मेश करके बनाए जाते हैं। इस प्रक्रिया का प्रारंभ भी फ्रांस से माना जाता है, जिसका श्रेय भी परमेंटियर को जाता है। मेश आलू की बात आती है, तो फ्रांस के रॉबुच्योन (Robuchon) का नाम आना स्वभाविक है। इन्होंने मध्यम-स्टार्च वाले आलुओं के स्टार्च को उबालते समय बचाने के लिए उन्हें बिना छिले उबाला तथा उबले आलुओं को छिलकर भोजन के रूप में उपयोग किया। औपनिवेशिक काल के दौरान भारत की गरीब जनता के लिए मेश आलू प्रमुख भोजन था। आज भारत के घरेलू भोजन, स्ट्रीट फूड, होटलों में मेश आलू से तैयार व्यंजन अत्यंत लोकप्रिय हैं। भारत के अनेक प्रसिद्ध भोजन आज आलू के बिना अधूरे हैं जिसमें वड़ा पाव (मुंबई का), पकोड़े, समोसे आदि शामिल हैं। विश्व की अनेक बड़ी-बड़ी स्नैक्स (चिप्स, आलू भुजिया, मेकेन्स इत्यादि) बनाने वाली कंपनियां आज आलू के दम पर चल रही हैं।
1.https://www.atlasobscura.com/articles/history-of-potatoes-parmentier?fbclid=IwAR0pC9iqGjfE8H7ZXPl-SkudEZO04mvnxobBz9NwMyaolRF5u53bWJF0sZg
2.https://economictimes.indiatimes.com/magazines/panache/the-many-journeys-of-marvellous-mashed-potato/articleshow/65544613.cms
3.https://coldnoon.com/magazine/news/travel-bulletin/the-first-potatoes-in-india-were-grown-in-mussoorie-in-the-1820s/
4.https://en.wikipedia.org/wiki/History_of_the_potato
© - 2017 All content on this website, such as text, graphics, logos, button icons, software, images and its selection, arrangement, presentation & overall design, is the property of Indoeuropeans India Pvt. Ltd. and protected by international copyright laws.