वर्तमान समय में बाज़ार में नये-नये और शक्तिशाली कीटनाशक प्रतिवर्ष आते रहते हैं। परंतु क्या आपने गौर किया है कि समय के साथ, पहले के कीटनाशक जल्द ही निष्प्रभावी होते जा रहे हैं या उनमें रासायनिक पदार्थों की डोज़ (Dose) प्रतिवर्ष बढ़ती जा रही है। जिसके परिणाम स्वरूप फिर से नये कीटनाशक की तलाश शुरू हो जाती है। यह गंभीर चिंता का विषय है क्योंकि यदि इसी तरह से कीटनाशकों के विरूद्ध कीट प्रतिरोधिकता बढ़ती रही तो वह दिन दूर नहीं जब फसलों में कीट प्रबंधन असंभव हो जाएगा। अत: समय रहते विशेष रूप से किसानों, वैज्ञानिकों एवं सरकार को सचेत होने की आवश्यकता है।
कीटों में कीटनाशक प्रतिरोधिकता एक जैविक प्रक्रिया है जो कि पीढ़ी दर पीढ़ी अनुवांशिक परिवर्तन के कारण होती है। कीट में मौजूद जीन (Gene) कीटनाशक की विषाक्तता के विरूद्ध स्वयं को परिवर्तित कर लेते हैं। इस कारण कीटनाशक प्रभावहीन हो जाते हैं। यदि यह कीटनाशक बार-बार प्रयोग किया जाता है, तो कीट की आगे की पीढ़ी में प्रतिरोधी कीटों की संख्या बढ़ती जाती है। पूर्व समय (1940) में DDT (डाइक्लोरो डाइफिनाइल ट्राइक्लोरोईथेन/ Dichloro Diphenyl Trichloroethane) और अन्य प्रभावशाली कीटनाशकों का उपयोग कीटों के विरूद्ध प्रयोग किया गया था। उस समय में कीटों से निजात पाने के लिये इनकी कम मात्रा भी पर्याप्त होती थी, और ये मात्रा मनुष्यों तथा अन्य जीवों के लिये हानिकारक भी नहीं होती थी। परंतु समय के साथ देखा गया कि कम डोज़ इन कीटों पर अप्रभावी होती जा रही है और डोज़ बढ़ाने पर ये रसायन हमारे लिये ही नहीं अपितु प्रकृति के लिये भी हानिकारक बनते जा रहे हैं। साथ ही साथ यह भी देखा गया कि कीटों की ये कीटनाशक प्रतिरोधिकता एक से अधिक कीटनाशकों के लिये भी विकसित होती जाती है।
सर्वप्रथम इसका पता घरेलू मक्खी में चला था और बाद में DDT के अधिक प्रयोग से अनेक क्षेत्रों में मच्छर भी इसके प्रतिरोधी हो गए थे। दरसल कीटों में कुछ ऐसे एंज़ाइम (Enzyme) होते हैं जो इन रसायनों को नुकसान न करने वाले सापेक्ष पदार्थ में तोड़ देते हैं। यह प्रक्रिया बिल्कुल वैसी ही है जैसे एंटीबायोटिक (Antibiotic) के लगातार इस्तेमाल से बैक्टीरिया में उत्परिवर्तन के कारण एक प्रतिरोध क्षमता पैदा हो जाती है। कालांतर बैक्टीरिया पर एंटीबायोटिक दवाओं का असर कम होने लगा है या हम ये भी कह सकते हैं कि बिल्कुल खत्म होने लगा है।
कीटनाशक प्रतिरोधिकता बढ़ने के कारण
1. अनुवांशिक परिवर्तन:- किसी भी कीट के विरूद्ध एक कीटनाशक के प्रयोग से कीट उस रसायन के विरूद्ध अपने अन्दर अनुवांशिक परिवर्तन कर लेते हैं। जिसके कारण पीढ़ी दर पीढ़ी कीटों के मरने का प्रतिशत कम हो जाता है।
2. उच्च प्रजनन क्षमता:- आमतौर पर कीटों में उच्च प्रजनन क्षमता होती है अर्थात उनमें अण्डे देने की क्षमता अधिक होती है। जो कीट रसायनों का वार नहीं झेल पाते, वे तो मर जाते हैं परंतु प्रतिरोधी कीट जीवित रहते हैं और अगली पीढ़ी में न मरने वाले कीटों की संख्या बहुत अधिक हो जाती है।
3. एक कीटनाशक का बार-बार प्रयोग:- हर कीटनाशक की निश्चित समय तक असर करने की अवधि होती है। यदि एक कीटनाशक का बार-बार छिड़काव करते हैं तो कीट में प्रतिरोधिकता बढ़ना स्वाभाविक है।
इस प्रतिरोध के विकास से बचने का एक तरीका शायद स्पष्ट दिखता है: विभिन्न कीटनाशकों का उपयोग करें, केवल एक कीटनाशक पर निर्भर न रहें। एक ही कीटनाशक का लगातार प्रयोग करने से कीट प्रतिरोधिकता बढ़ती है। अत: एक छिड़काव के बाद दूसरा छिड़काव अन्य समूह के कीटनाशक से किया जाना चाहिए।
संदर्भ:
1.https://www.colonialpest.com/how-do-insects-become-resistant-to-insecticides/
2.https://en.wikipedia.org/wiki/Pesticide_resistance
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