भारत की वास्तुकला (Architecture) अपने इतिहास, संस्कृति और धर्म में निहित है। भारतीय वास्तुकला ने समय के साथ प्रगति की लेकिन आज भी कई एतिहासिक इमारतें हैं, जिसमें हमें अद्भुत वास्तुकला देखने को मिलती है। चलिए आपको बताते है सिपाह मोहल्ले में गोमती नदी के उत्तरी तट पर बनी एक ऐसी ही इमारत के बारे में। जहां आपको पत्थरों पर की जाने वाली नक्काशी का सुंदर दृश्य देखने को मिलेगा।
दिल्ली के सुल्तानों ने ईरान और मध्य एशिया के पैटर्न का उपयोग अपनी इमारतों के निर्माण में करने की कोशिश की थी। इसको मुस्लिम आर्किटेक्ट्स द्वारा डिजाइन भी किया गया, लेकिन हिंदू कारीगरों द्वारा इसका निर्माण करने की वजह से इन इमारतों में भारत-इस्लामी वास्तुकला का संयोजन देखने को मिलता है। ऐसे ही वास्तुकला का एक उदाहरण उत्तर प्रदेश राज्य के जौनपुर नगर में स्थित एक प्राचीन “झंझीरी मस्जिद” (Jhanjhari Masjid) है। इसका निर्माण 1430 ई. में इब्राहीम शाह शार्की द्वारा करवाया गया था। इसका उपयोग सेना द्वारा अपने हाथी, ऊंट और घोड़े रखने के लिए किया जाता था। इस मस्जिद के भीतर पुरालेखों के बेहद खूबसूरत "झांजारी" भी हैं। लेकिन अब यह मस्जिद खण्डहर अवस्था में है। क्योंकि सिकंदर लोढ़ी द्वारा इस मस्जिद को ध्वस्त कर दिया गया था, और इसे ध्वस्त करने के बाद इसके बहुत सारे पत्थरों का उपयोग शाही पुल में किया गया। वहीं इसे बाढ़ से भी काफी नुकसान पहुंचा, लेकिन इतने नुकसानों के बाद भी आज यह मस्जिद प्रारंभिक वास्तुकला का एक बहुत ही सुंदर उदाहरण है।
आपको पता है इसमें सबसे सुंदर एवं आकर्षक वास्तुकला है पत्थरों पर की जाने वाली नक्काशी। जो हमें नीचे दिए फोटो के माध्यम से झंझीरी मस्जिद के झरोखों की जालियों में देखने को मिलती है। इन जालियों को पहले पत्थरों में नक्काशी करके आमतौर पर ज्यामितीय (geometric) पैटर्न में बनाया जाता था। जबकि बाद में मुग़लों ने ताजमहल में बहुत पतले नक्काशीदार तथा पौधे पर आधारित डिजाइनों का इस्तेमाल किया था और पीट्रा ड्यूरे (pietra dura) कला का भी उपयोग किया था। वे अक्सर संगमरमर और अर्द्ध कीमती पत्थरों का उपयोग करके इसको बनाते थे। यह जाली छेदों के माध्यम से हवा को संपीड़ित (compress) करके तापमान को कम करने में मदद करती थी। आज भी गुजरात और राजस्थान के घरों की खिड़कियों में यह जाली देखने को मिलती है। गुजरात और राजस्थान के शुष्क जलवायु क्षेत्रों की तुलना में केरल और कोकण जैसे आर्द्र क्षेत्रों में इसके छेद थोड़े बड़े होते हैं।
आज की आधुनिकता में घरों में गोपनीयता और सुरक्षा की वजह से इन जालियों का निर्माण कम हो गया है, लेकिन ये आज भी राजस्थान और ओडिशा राज्यों में बनवाई जाती हैं।
संदर्भ:
1. http://www.historydiscussion.net/history-of-india/characteristics-of-the-architecture-during-the-sultanate-period/2726© - 2017 All content on this website, such as text, graphics, logos, button icons, software, images and its selection, arrangement, presentation & overall design, is the property of Indoeuropeans India Pvt. Ltd. and protected by international copyright laws.